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RSS कनेक्शन, ब्राह्मण चेहरा... हरियाणा चुनाव से पहले मोहन लाल बडौली को BJP ने क्यों बनाया अध्यक्ष?

मोहन लाल बडौली ने 2024 का लोकसभा चुनाव सोनीपत सीट से लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

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भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने मोहन लाल बडौली (Mohan Lal Badoli) को हरियाणा (Haryana) का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. बडौली ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की जगह ली है, जो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे थे. हरियाणा में कुछ महीनों बाद विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, इससे पहले ये नियुक्ति अहम मानी जा रही है.

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नायब सिंह सैनी अक्टूबर 2023 में हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त हुए थे. उसके बाद लोकसभा चुनाव से पहले मार्च में प्रदेश में बड़ा राजनीतिक फेर बदल देखने को मिला. बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला की जेजेपी से गठबंधन तोड़ लिया और इसके साथ ही मनोहर लाल खट्टर ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री बने. सीएम पद की कमान संभालने के बाद से ही उनकी जगह पार्टी अध्यक्ष के लिए नए चेहरे की तलाश शुरू हो गई थी.

बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह की ओर से जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया कि "यह नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू होगी."

कौन हैं बडौली?

साल 1963 में विख्यात कवि पंडिक काली राम कौशिक के घर जन्मे मोहन लाल बडौली राजनीति में आने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े हुए थे.

उनके हालिया चुनावी हलफनामे के अनुसार, उनका प्राथमिक पेशा कृषि और बिजनेस है- वह सोनीपत में एक पेट्रोल पंप के मालिक भी हैं. उनके पास 16.3 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है. सक्रिय राजनीति में आने से पहले बडौली सोनीपत के बहालगढ़ चौक के पास कपड़ा मार्केट में दुकान चलाते थे. बडौली की कुंडली बताने से पहले थोड़ा हरियाणा की राजनीति और बीजेपी के इस नए समीकरण को समझते हैं.

गैर जाट वोट बैंक को साधने की कोशिश

हरियाणा की राजनीति जाट और गैर-जाट वोट के इर्द-गिर्द घूमती है. किसान आंदोलन, पहलवानों के प्रदर्शन के बाद से जाट बीजेपी से नाराज बताए जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ बीजेपी गैर-जाटों को साधने की कोशिश में जुटी है. बडौली को प्रदेश अध्यक्ष बनाना भी इसी कवायद का हिस्सा माना जा रहा है.

ब्राह्मण समुदाय से संबंध रखने वाले मोहन लाल बडौली वर्तमान में राई सीट से विधायक हैं.

क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "इसमें कुछ भी नया या अनापेक्षित नहीं है. हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति का मूल मंत्र- गैर जाट राजनीति है."

इसके साथ ही वे कहते हैं,

"बीजेपी ने अपना मुख्यमंत्री ओबीसी समुदाय से बनाया है. प्रदेश अध्यक्ष बडौली ब्राह्मण समुदाय से हैं. प्रदेश में 7.5% ब्राह्मण और करीब 21 फीसदी ओबीसी हैं. सतीश पूनिया को प्रदेश प्रभारी बनाया गया है, जो जाट समुदाय से हैं. इसके जरिए पार्टी ने गैर जाट और जाट का एक कॉम्बिनेशन बनाने की कोशिश की है."
हेमंत अत्री, वरिष्ठ पत्रकार

प्रदेश में करीब 27% जाट आबादी है, जो 90 विधानसभा सीटों में से करीब 40 पर प्रभाव रखते हैं. वहीं अनुसूचित जाति की आबादी करीब 19.35% है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कौशल कहते हैं, "बडौली को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने एक संदेश देने की कोशिश की है. पार्टी पर ब्राह्मण समाज की अनदेखी के आरोप लग रहे थे. बहुत अरसे से कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं मिली थी. प्रदेशाध्यक्ष भी नहीं, केंद्र में मंत्री भी नहीं और न ही मुख्यमंत्री का पद. ऐसे में बीजेपी ने जातिगत समीकरण संतुलित करने के लिए बडौली को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है."

बता दें कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने प्रदेश में मुख्यमंत्री बदला था. नायब सिंह सैनी को सीएम बनाकर बीजेपी ने पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों को साधने की कोशिश की थी.

हालांकि, लोकसभा चुनावों में बीजेपी को इसका फायदा नहीं मिला. प्रदेश की 10 सीटों में से पार्टी को 5 सीटें ही मिली, जबकि 2019 में बीजेपी ने सभी 10 सीटों पर कब्जा जमाया था. वहीं पिछली बार के मुकाबले करीब 12 फीसदी वोट शेयर भी गिरा है. जबकि, कांग्रेस ने करीब 15 फीसदी वोट शेयर में उछाल के साथ 5 सीटें हासिल की हैं.

2024 लोकसभा चुनाव में बडौली की हुई थी हार

वहीं हरियाणा में बीजेपी के ब्राह्मण चेहरा बने बडौली ने सोनीपत सीट से 2024 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, हालांकि उन्हें कांग्रेस के ब्राह्मण उम्मीदवार सतपाल ब्रह्मचारी से हार का सामना करना पड़ा. बडौली 21,816 वोटों से चुनाव हार गए थे. सतपाल ब्रह्मचारी को 5,48,682 वोट मिले थे. वहीं बडौली को 5,26,866 वोट मिले.

नए प्रदेश अध्यक्ष से पार्टी में क्या बदलेगा?

बडौली 1989 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े और 1995 में वे बीजेपी में शामिल हो गए. उन्हें मुरथल का मंडल अध्यक्ष चुना गया, इसके बाद वह जिला परिषद के लिए चुने गए. बडौली मुरथल से जिला परिषद चुनाव जीतने वाले पहले बीजेपी नेता बने.

2020 में बडौली को सोनीपत जिला अध्यक्ष नियुक्त किया और उसके अगले साल उन्हें पार्टी महासचिव नियुक्त किया गया और प्रदेश बीजेपी की कोर टीम में शामिल किया गया. इस साल उन्हें फिर से पार्टी महासचिव नियुक्त किया गया. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बडौली को प्रदेश बीजेपी की चुनाव समिति में शामिल किया गया था.

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "हरियाणा के अंदर जो भारतीय जनता पार्टी है, वो बीजेपी नहीं है, वो 'मनोहर भाजपा' है. प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा तो बदल गया है, लेकिन सरकार की चाल और चरित्र नहीं बदली है. आपने मुख्यमंत्री भी उन्हीं का बना दिया और अध्यक्ष भी उन्हीं के शिष्य को बना दिया. फिर क्या बदला?"

वहीं आरएसएस को लेकर वे कहते हैं, "हरियाणा सरकार, पूरा तंत्र, सबकुछ आरएसएस के चंगुल में है. हरियाणा के अंदर आरएसएस का पूरा चरित्र बदल दिया गया है. भर्ती, तबादलों से लेकर सभी काम आरएसएस के जिम्मे है."

लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए भी अत्री आरएसएस को जिम्मेदार मानते हैं.

प्रदेश में कुछ महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. जानकारों की मानें तो बडौली के सामने ये बड़ी चुनौती होगी. लोकसभा चुनाव के झटके से पार्टी को निकालकर विधानसभा के लिए तैयार करना उनके लिए किसी परीक्षा से कम नहीं होगी.

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क्या बीजेपी लगा पाएगी जीत की हैट्रिक?

पिछले 10 सालों से बीजेपी प्रदेश की सत्ता में काबिज है. इस बार पार्टी की नजर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने पर है. इसके लिए बीजेपी जातिगत समीकरण साधने में जुटी है. लेकिन एंटी इनकंबेंसी, किसान आंदोलन, जाटों की नाराजगी जैसे मुद्दे हावी दिख रहे हैं.

2014 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 33.2% वोट शेयर के साथ 47 सीटों पर कब्जा जमाया था. पार्टी के वोट शेयर में 24.16% की बढ़ोतरी हुई थी. वहीं 2019 के चुनाव में पार्टी के वोट शेयर में 3.39% की बढ़ोतरी तो हुई लेकिन 7 सीटें कम हो गई. पार्टी अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पाई. इसके बाद बीजेपी ने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. हालांकि, इस साल लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन टूट गया.

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री के मुताबिक, "बीजेपी का इस बार विधानसभा चुनावों में सूपड़ा साफ होने वाला है."

"हरियाणा की 67% आबादी गांवों में रहती है. लोकसभा चुनाव के दौरान लोगों ने बीजेपी को गांव में घुसने नहीं दिया. ये स्थिति तब दिखी जब पार्टी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही थी. जब पीएम मोदी के नाम पर गांव में घुसने नहीं दिया तब नायब सिंह सैनी और मनोहर लाल के नाम पर कौन घुसने देगा."

हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कौशल अलग राय रखते हैं. उनका कहना है, "विधानसभा चुनाव के दौरान बहुत सारी चीजें बदली हुई होंगी. पूरा का पूरा लोकसभा वाला सीन विधानसभा चुनाव के दौरान रहेगा, ऐसा मुझे नहीं लगता है. इसमें परिवर्तन होगा."

इसके साथ ही वे कहते हैं कि "लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के भीतर की अंतर्कलह उतनी मुखर नहीं थी. क्योंकि बड़े नेताओं के बीच सिर्फ अपनी-अपनी सीट पर चुनाव लड़ने की बात थी. लेकिन अब राज्य में सरकार बनाने की बात है- कौन मुख्यमंत्री की दौड़ में होगा, कौन सबसे ज्यादा विधायक लगाएगा. वो जो अंतर्कलह है, ऐसी संभावना है कि वो और अधिक दिखाई देगी."

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