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Haryana Municipal Results: बीजेपी की जीत में भी हार? दिग्गजों के ‘किले’ दरके

पंजाब की जीत के बाद हरियाणा में उत्साहित AAP का सिर्फ खाता खुला.

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हरियाणा निकाय चुनाव के नतीजे (Haryana Municipal Election Result) आ गए हैं. विधानसभा चुनाव से पहले ये सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा था. जिसमें कांग्रेस (Congress) ने सिंबल पर चुनाव ना लड़ने का फैसला किया था और बीजेपी-जेजेपी (BJP-JJP) ने गठबंधन में चुनाव लड़ा. हालांकि पहले दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था. इस चुनाव की खास बात ये रही कि दिग्गजों ने अपने सियासी किले दरकते हुए देखे. सीएम मनोहर लाल (Manohar Lal) अपने गृह क्षेत्र में बीजेपी को नहीं जिता पाये, डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) भी अपने गृह क्षेत्र में पार्टी उम्मीदवार को जितवाने में नाकाम रहे और भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) भी अपने इलाके में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को नहीं रोक पाये.

इसके अलावा आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए ये चुनाव कुछ खास उत्साहजनक नहीं रहा. हालांकि उनका खाता जरूर खुला है, लेकिन इससे ज्यादा की उम्मीद आप कर रही थी. अब सवाल ये है कि पार्टियों ने जो निकाय चुनाव में प्रदर्शन किया उसके क्या मायने हैं और आगामी विधानसभा चुनाव का उस पर क्या असर पड़ेगा.
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क्या वाकई बीजेपी को जीत का जश्न मनाना चाहिए?

भारतीय जनता पार्टी ने पहले ऐलान किया था कि वो अपने गठबंधन पार्टनर जेजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन चुनाव से ठीक तीन दिन पहले दोनों पार्टियों के सीनियर नेताओं ने तय किया कि गठबंधन में ही चुनाव लड़ा जाएगा. 14 नगर परिषद में बीजेपी ने अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था, जिसमें से उन्होंने 10 में जीत दर्ज की. इसके अलावा 28 नगर पालिकाओं में से बीजेपी ने 14 में अध्यक्ष पद का चुनाव जीता.

जिसको लेकर सीएम मनोहर लाल ने कहा कि, अग्निपथ के विरोध का कोई असर नहीं हुआ और हमने जीत दर्ज की. लेकिन कांग्रेस ने ये चुनाव सिंबल पर नहीं लड़ा तो मैदान में बीजेपी और जेजेपी तो साथ ही चुनाव लड़ रहे थे. इसके अलावा आम आदमी पार्टी और इनेलो थी, जिसमें आप अपना जनाधार बनाने की कोशिश कर रही है और इनेलो अपना जनाधार गंवा चुकी है. तो एक तरीके से गठबंधन अकेला ही दौड़ में निर्दलीयों से बाजी ले रहा था और उसमें भी वो कोई सूपड़ा साफ तो नहीं कर पाए.

सीएम के गृह क्षेत्र में हारी बीजेपी

मुख्यमंत्री मनोहर लाल के जिले करनाल में 4 नगरपालिकाओं में चुनाव थे. जिनमें से बीजेपी 3 में हार गई और उनके हाथ केवल घरौंडा नगर पालिका हाथ लगी. उसमें भी उनका कैंडिडेट मात्र 31 वोट से जीत सका. बाकी असंध में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी ने जीत दर्ज की और 2 नगर पालिकाओं में निर्दलीय अध्यक्ष चुने गए.

पिछली बार के मुकाबले बीजेपी का प्रदर्शन खराब हुआ

पिछले चुनाव के मुकाबले अगर इस चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन देखें तो पिछली बार बीजेपी के 14 नगर परिषद अध्यक्ष और 21 नगर पालिका अध्यक्ष बने थे. लेकिन इस बार बीजेपी 10 नगर परिषद और 16 नगर पालिका अध्यक्ष ही जिताने में कामयाब रही. जबकि अबकी बार उन्होंने जेजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा.

जेजेपी के लिए कैसा रहा निकाय चुनाव?

जननायक जनता पार्टी का ये पहला नगर निकाय चुनाव था जिसमें उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा और 4 नगर परिषद अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी ठोकी. जिसमें उन्हें एक सीट पर जीत मिली. जबकि दो नगर पालिकाओं में जेजेपी अपना अध्यक्ष बनाने में कामयाब रही. हालांकि जननायक जनता पार्टी को जिस प्रदर्शन की उम्मीद थी ये उससे काफी कम है क्योंकि वो सत्ता में भागीदार हैं और अपने गढ़ में उन्हें मात मिली है.

डिप्टी सीएम के गढ़ में हारी जेजेपी

  • जन नायक जनता पार्टी को डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के गढ़ में हार का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं जेजेपी के मंत्रियों को भी इस चुनाव में झटका लगा है.

  • दुष्यंत चौटाला जींद जिले की उचाना विधानसभा से विधायक हैं लेकिन उचाना नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में जेजेपी समर्थित उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहा.

  • दुष्यंत चौटाला का गृह जिला सिरसा है. जिसके अंतर्गत आने वाली डबवाली नगर परिषद के अध्यक्ष पद के चुनाव में जेजेपी उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहा और यहां इनेलो ने जीत दर्ज की. जबकि डबवाली से दुष्यंत की माता नैना चौटाला विधायक हैं.

  • हिसार जिले की बरवाला विधानसभा से जेजेपी के जोगीराम सिहाग विधायक हैं. लेकिन बरवाला नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव निर्दलीय ने जीता.

सुभाष बराला का ‘बदलापुर’

फतेहाबाद के टोहाना में गठबंधन सहयोगियों के बीच अजीब सा मुकाबला देखने को मिला. दरअसल पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला ने टोहाना नगर पालिका अध्यक्ष के लिए निर्दलीय नरेश बंसल का समर्थन किया और उन्होंने जेजेपी के उम्मीदवार को हरा दिया. दरअसल 2019 में सुभाष बराला को जेजेपी के देवेंद्र बबली ने टोहाना में विधानसभा चुनाव हराया था. जिसका बदला उन्होंने निकाय चुनाव में ले लिया. हालांकि बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन है और ये सीट जेजेपी के हिस्से में आई थी.

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कांग्रेस को निकाय चुनाव से क्या मिला?

राज्यसभा चुनाव में बुरी हार झेलने वाली हरियाणा कांग्रेस ने निकाय चुनाव सिंबल पर नहीं लड़ा. लेकिन उनके नेताओं ने अपने-अपने इलाकों में प्रत्याशियों को समर्थन दिया था. जिनकी हालत कुछ खास नहीं रही. कांग्रेस ये कह सकती है कि उन्होंने ये चुनाव सिंबल पर नहीं लड़ा लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अपने गढ़ में बीजेपी-जेजेपी की जीत उनको चुभेगी.

  • रोहतक की महम नगरपालिका अध्यक्ष पद के लिए बीजेपी-जेजेपी समर्थित प्रत्याशी भारती पंवार ने जीत दर्ज की.

  • झज्जर से हुड्डा की करीबी गीता भुक्कल विधायक हैं वहां से नगर परिषद अध्यक्ष के लिए चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी जिले सिंह नैन ने जीत दर्ज की.

  • कैथल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला का गृह क्षेत्र है. वहां सुरजेवाला ने निर्दलीय आदर्श कुमारी को समर्थन दिया था लेकिन वो हार गईं और बीजेपी की सुरभि गर्ग ने जीत दर्ज की.

  • चीका नगरपालिका में रणदीप सुरजेवाला समर्थित प्रत्याशी ऊषा रानी को हार का सामना करना पड़ा. यहां जेजेपी उम्मीदवार ने जीत दर्ज की. जबकि इस चुनाव में खुद रणदीप सुरजेवाला भी प्रचार करने पहुंचे थे.

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आम आदमी पार्टी के लिए कैसा रहा निकाय चुनाव?

आम आदमी पार्टी पंजाब में जीत के बाद जोश से लबरेज हरियाणा के निकाय चुनाव में कूदी थी. खुद अरविंद केजरीवाल ने प्रचार में दम फूंका था, कई नेताओं ने भी चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ज्वाइन की. जिसमें कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर भी शामिल थे. लेकिन हरियाणा के मतदाताओं ने AAP को निराश किया.

आम आदमी पार्टी ने 46 निकाय में से 45 में अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार उतारे थे और 133 पार्षद उम्मीदवारों को टिकट दिया था. लेकिन आम आदमी पार्टी के 45 अध्यक्ष उम्मीदवारों में से केवल एक ही जीत दर्ज कर सका और 133 पार्षद उम्मीदवारों में से मात्र 5 को जीत हासिल हुई. आम आदमी पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. यहां तक कि अशोक तंवर अपने गृह क्षेत्र सिरसा में भी पार्टी को नहीं जिता सके.
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हरियाणा निकाय चुनाव से इनेलो के हाथ क्या लगा ?

इंडियन नेशनल लोकदल अपनी खोई सियासी जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है. पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. उनका केवल एक विधायक है और निकाय चुनाव में भी उनको एक ही अध्यक्ष पद हाथ लगा. हालांकि इनेलो इस बात से खुश हो सकती है कि उन्होंने ये एक सीट अपनी चिर प्रतिद्वंदी पार्टी जेजेपी को हराकर जीती है.

आम आदमी पार्टी और इनेलो से कहीं बेहतर प्रदर्शन निर्दलीय उम्मीदवारों ने किया. कांग्रेस ने चुनाव सिंबल पर नहीं लड़ा लेकिन माहौल जरूर आंका होगा. अब सब राजनीतिक दलों की नजर विधानसभा चुनाव पर होगी क्योंकि सेमाफाइनल भले ही कोई जीता हो. फाइनल जीतना अभी भी डेढ़ी खीर है.

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