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असम का अगला CM कौन? सोनोवाल और सरमा के बीच चुनने की नौबत क्यों आई?

क्यों अच्छा प्रदर्शन करने वाले सर्बानंद सोनोवाल के अगले कार्यकाल में भी सीएम रहने की घोषणा बीजेपी नहीं कर पा रही है?

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असम में भले ही बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली हो, लेकिन पार्टी अब भी अपने मुख्यमंत्री के नाम का फैसला नहीं कर पाई है. फिलहाल मौजूदा मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और वरिष्ठ नेता हिमंता बिस्वा सरमा के नाम पर पेंच फंसा हुआ है.

सर्बानंद सोनोवाल और हिमंता बिस्वा सरमा ने दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पर मुलाकात की. मुलाकात के बाद सरमा ने कहा, “बीजेपी विधायक दल की बैठक कल गुवाहाटी में हो सकती है. सभी प्रश्नों के उत्तर उस बैठक के बाद बाहर आएंगे.” माना जा रहा था कि इस बैठक में अंतिम नाम पर मुहर लग सकती है.

लेकिन सवाल यह है कि दोनों के बीच चुनाव की नौबत क्यों आई. आखिर क्यों अच्छा प्रदर्शन करने वाले सीएम को दूसरा कार्यकाल मिलने में दिक्कत आ रही है.

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सर्बानंद सोनोवाल: जनजातीय ऊपरी असम के वोटों को बीजेपी से जोड़ा

सर्बानंद सोनोवाल ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई है. जनता के बीच भी उनकी छवि साफ-स्वच्छ राजनेता की है. सोनोवाल जनजातीय कछारी समुदाय से आते हैं. असल के ऊपरी हिस्से से ताल्लुक रखने वाले सर्बानंद सोनोवाल असम की क्षेत्रीय भावनाओं वाले वोटर को बीजेपी के पाले में लाने के लिए जाने जाते हैं.

लेकिन उनके मौजूदा सीएम होने के बावजूद चुनाव के दौरान बीजेपी ने कह दिया था कि पार्टी का सीएम कैंडिडेट तय नहीं है. दरअसल पार्टी हिमंता बिस्वा सरमा को दूर करना नहीं चाहती थी, हिमंता की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा किसी से छुपी नहीं है.

लेकिन बीजेपी के पास फिलहाल ऐसी कोई वजह भी नजर नहीं आती कि वह सर्बानंद सोनोवाल को हटाकर किसी और को गद्दी पर बैठाए.

हिमंता बिस्वा सरमा की ताकतवर चुनौती

हिमंता बिस्वा सरमा नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के कंवेंनर रहे हैं. इस गठबंधन ने ही बीजेपी का सत्ता तक का रास्ता तय किया है. सरमा ताकतवर नेता माने जाते हैं, असम के शहरी क्षेत्रों में उनकी मजबूत पकड़ है.

सरमा, पिछली सरकार में स्वास्थ्यमंत्री थे. कोरोना के दौरान उनका कार्यकाल भी अच्छा रहा है. ऊपर से उनकी दूसरी पार्टियों में भी अच्छी पहचान और वफादारी है. सरमा खुद कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे.

इन स्थितियों में असम में नए मुख्यमंत्री का चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. यह देखना भी अहम रहेगा कि इस चुनाव से बीजेपी में गुजबाजी को हवा मिलती है या नहीं.

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