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झारखंड राज्यसभा चुनाव: BJP की 'जाति', हेमंत सोरेन 'हावी', पॉलिटिकल मैसेज का खेल

Jharkhand में राज्यसभा की कुल 6 सीटे हैं और इस बार दो सीटों पर चुनाव होने हैं.

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राज्यसभा चुनाव (RajyaSabha Election) को लेकर भले ही झारखंड में राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया हो लेकिन माहौल गर्म है. जहां एक तरफ सत्ता में बैठी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और गठबंधन की पार्टी कांग्रेस (Congress) के रिश्ते में खटास की खबरें हैं. तो वहीं सत्ता से बाहर रहने के बावजूद बीजेपी अपने गठबंधन के साथियों के सहारे एक सीट जीतने की उम्मीद में है.

झारखंड (Jharkhand) में राज्यसभा की कुल 6 सीटे हैं और इस बार दो सीटों पर चुनाव होने हैं, एक पर बीजेपी का दावा है तो दूसरे पर जेएमएम का. आइए समझते हैं छोटे से राज्य झारखंड में राज्यसभा का चुनाव इतना बड़ा क्यों बन गया है.

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क्यों है ये चुनाव चर्चा में?

दरअसल, झारखंड में दो राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है. एक हैं केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और दूसरे महेश पोद्दार. दोनों ही बीजेपी से हैं. और दोनों का कार्यकाल 7 जुलाई 2022 को पूरा हो रहा है, बता दें कि साल 2016 के राज्यसभा चुनाव में झारखंड की सत्ता में मौजूद बीजेपी गठबंधन ने दोनों ही सीट जीत ली थी. लेकिन 2019 विधानसभा चुनाव में हार के बाद हालात बदल गए हैं.

दो सीटों के लिए हो रहे चुनाव में एक उम्मीदवार को जीतने के लिए करीब 27 वोटों की जरूरत होगी. बता दें कि 81 विधानसभा सीटों वाली झारखंड विधानसभा में बीजेपी के पास 25 विधायक हैं, वहीं झारखंड मुक्ता मोर्चा (JMM) के पास 30, गठबंधन की कांग्रेस के पास 17 और आरजेडी ने एक सीटों पर जीत दर्ज की थी. एक सीट पर उपचुनाव होने हैं.

हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा और बीजेपी की ओर से एक-एक उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में उतर रहे हैं. ऐसे में मतदान की नौबत नहीं आने की उम्मीद है और दोनों दलों के प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिए जा सकते हैं. अब भले ही जीत-हार को लेकर सस्पेंस ज्यादा ना हो, लेकिन किस पार्टी ने किसे प्रत्याशी बनाया है और क्यों बनाया है, कौन कितना कॉन्फीडेंट है ये आगे की राजनीति के लिए काफी अहम है. ये चुनाव राजनीतिक संदेश और रणनीति के हिसाब से भी दिलचस्प है.

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हेमंत सोरोन ने मारी बाजी

पिछले कुछ दिनों से लगातार हेमंत सोरेन गठबंधन समेत विपक्षी पार्टियों के निशाने पर हैं. स्टोन चिप्स के लीज मामले से लेकर आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल (Pooja Singhal) के जेल जाने के मामले में मुख्यमंत्री घिरे हुए हैं. लेकिन इसी बीच हेमंत सोरेन राजनीतिक रूप से बाजी मारते हुए दिख रहे हैं.

कांग्रेस के साथ रिश्ते में खटास की खबरों के बीच हेमंत सोरेन राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारने को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंच गए. मीटिंग हुई, मीटिंग के अगले दिन हेमंत सोरेन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. लेकिन उम्मीदवार के नाम को लेकर कोई राज नहीं खोले. दिल्ली से लौटते ही हेमंत सोरेन ने राज्यसभा उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया. महुआ माजी का नाम सबके सामने था. मतलब कांग्रेस के हाथ खाली रह गया और एक बार फिर हेमंत हावी दिखे. इस एक चुनाव के जरिए हेमंत सोरेन ने गठबंधन के साथियों को भी ये संदेश दिया है.

महुआ माजी के जरिए क्या संकेत देना चाहते हैं हेमंत

महुआ माजी हिंदी की वरिष्ठ साहित्यकार और जेएमएम की महिला मोर्चा की केंद्रीय अध्यक्ष हैं. इससे पहले वो राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष के तौर पर भी काम कर चुकी हैं. वह जेएमएम महिला इकाई की प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. महुआ माजी रांची विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ चुकी हैं हालांकि इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

महुआ माजी पढ़ी लिखी हैं, समाजशात्र में पीएचडी हैं. महुआ माजी के जरिए हेमंत सोरेन ने बताने की कोशिश की है कि गठबंधन में उनका कद संख्या के हिसाब से ऊंचा है. साथ ही उन्होंने ये भी परिवारवाद के आरोपों पर भी एक तरह का हमला बोला है, और तो और महिला उम्मीदवार के जरिए आधी आबादी को भी संदेश देना चाहा है.
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बीजेपी की मैसेजिंग पॉलिटिक्स

बीजेपी ने आदित्य साहू को राज्यसभा चुनाव का उम्मीदवार बनाया है. आदित्य साहू झारखंड प्रदेश बीजेपी के महामंत्री हैं. इससे पहले न ही विधानसभा चुनाव लड़ा है न ही लोकसभा. लेकिन फिर भी पार्टी ने राज्यसभा चुनाव में उतारा है.

साहू के जरिए बीजेपी ने संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में स्थानीय नेता और आम कार्यकर्ता की अहमियत है. किसी नेता-कार्यकर्ता का प्रोफाइल बड़ा ना भी हो तो उसे उसकी ईमानदारी और मेहनत का फल मिल सकता है.

रांची के रहने वाले साहू आरटीसी कॉलेज, ओरमांझी में बतौर प्रोफेसर 2019 तक सेवा दे चुके हैं.

लेकिन साहू की सिर्फ ईमानदारी ही नहीं पार्टी ने जाति समीकरण पर भी नजर डाला है. साहू वैश्य समाज से आते हैं और पार्टी की नजर वैश्य समाज के वोटरों पर हैं.

जानकार बताते हैं कि राज्य की 81 में से 50 से जयादा विधानसभा सीटों पर वैश्य समाज की आबादी अहम है. साथ ही बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी इसी समाज से आते हैं.

एक तरफ खबर आई थी कि रघुबर दास ने राज्यसभा जाने को लेकर इनकार कर दिया था ऐसे में पार्टी को एक और वैश्य समाज के नेता की जरूरत थी, जिसे देखते हुए आदित्य साहू को उम्मीदवार बनाया गया है. साहू रघुवर दास के बेहद करीबी रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ ये भी कहा जाता है कि रघुवर दास को बीजेपी राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाकर बीजेपी रिस्क नहीं लेना चाहती थी. क्योंकि निर्दलीय विधायक सरयू राय, अमित यादव और आजसू पार्टी विधायक सुदेश महतो और लंबोदर महतो रघुवर दास के नाम पर शायद सहमत ना होते. बता दें कि इन चारो विधायकों ने मिलकर पिछले बजट सत्र में झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा का गठन किया था. ऐसे में बीजेपी को एक सीट जीतने के लिए इन लोगों के समर्थन की जरूरत है, और पार्टी इन्हें नाराज कर कोई खतरा नहीं मोल सकती है.

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