Jignesh Mevani Interview: गुजरात के वडगाम से कांग्रेस समर्थित मौजूदा विधायक और दलित एक्टिविस्ट जिग्नेश मेवाणी का कहना है, “आज के भारत में भगत सिंह को भी संघर्ष करना पड़ता. विचारधारा से प्रेरित व्यक्ति होने के नाते उन्होंने हजारों लोगों को विचारों से ओतप्रोत किया होता और जनता को अपने संवैधानिक और मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष करने को सड़कों पर उतरने के लिए राजी किया होता.’
2017 के विधानसभा चुनावों (Gujarat Assembly Election) से पहले मेवाणी, अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल की तिकड़ी एक ताकत बनी थी. हार्दिक पटेल के पाटीदार आंदोलन, अल्पेश ठाकोर के नेतृत्व में ओबीसी आंदोलन ने भारतीय जनता पार्टी के वोट और वोट शेयर में भारी सेंध लगाने में कामयाबी हासिल की थी और कांग्रेस को इससे बहुत फायदा हुआ.
अब जरा साल 2022 पर आते हैं. पटेल और ठाकोर दोनों कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं. हालांकि, मेवाणी एक निर्दलीय विधायक से गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए.
द क्विंट के साथ बातचीत में, मेवाणी ने राज्य में आगामी चुनावों में कांग्रेस की संभावनाओं के बारे में बात की. साथ ही हार्दिक पटेल के भाजपा में जाने व उनके साथ अपने रिश्ते, और एक्टिविज्म से मुख्यधारा की राजनीति में आने की अपनी यात्रा के बारे में बताया.
एक्टिविज्म से स्वतंत्र विधायक और अब कांग्रेस नेता. आप जैसे चीजें करते हैं, उस प्रक्रिया के ऊपर इससे क्या बदलाव आया है?
‘निश्चित रूप से यह मुश्किल है. जब आप एक एक्टिविस्ट के रूप में 7-8 साल तक काम करते हैं, तो आप चीजों को करने के लिए, एक खास तरह की मानसिकता से प्रेरित प्रक्रिया अपनाते हैं. जब आप मुख्यधारा की राजनीति की दुनिया में प्रवेश करते हैं, तो बहुत सी चीजें बदल जाती हैं. आपको अपने बारे में बहुत सी चीजों को बदलना पड़ता है, आपको व्यवहारिक बनना पड़ता है. विचारों से मजबूत रहकर भी व्यवहारिकता के साथ चीजों को करने की प्रक्रिया मैं सीख रहा हूं. मैं निर्दलीय विधायक बनकर अपने एक्टिविज्म का दायरा बढ़ाना चाहता था. मुख्यधारा की राजनीति मेरे लिए मेरी एक्टिविज्म का विस्तार है. लेकिन मुझे कहना होगा, यह एक कठिन काम है. मैं अभी भी इसे समझ रहा हूं.
क्विंट - साल 2017 में, आप निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीतने वाले कुछ विधायकों में से एक थे. कांग्रेस से जुड़ने की जरूरत क्यों पड़ी?
मुझे एक बड़ा कैनवास चाहिए था. इसके अलावा, पार्टी में शामिल होने से पहले राहुल गांधी के साथ मेरी और कन्हैया की जो बातचीत हुई, उससे हमने सोचा कि उनकी विचारधारा के साथ हमारा मेल है. मुझे लगता है कि राहुल जी वैचारिक रूप से मजबूत हैं, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता जैसे मुद्दों पर उनमें बहुत साफगोई है. मैंने उन्हें वास्तव में उदार और लोकतांत्रिक पाया. मुझे किसी से जुड़ने के लिए सबसे सही राहुल ही लगे. कांग्रेस एक लोकतांत्रिक पार्टी है. कांग्रेस इतनी लोकतांत्रिक है कि पार्टी के भीतर भी जी-23 भी मौजूद हो सकता है. मुझे कांग्रेस के भीतर एक लिबरल स्पेस मिला. मैं गुजरात के भीतर अपने आधार का विस्तार करना चाहता था.
क्विंट – राहुल गांधी के साथ आपके संबंध कैसे हैं ?
राहुल गांधी युवा और पुराने नेताओं के कामकाज में तालमेल बिठाने के लिए काम करते हैं. वह सभी तरह के विचारों को सुनने-समझने के लिए तैयार हैं. वो किसी भी आलोचना से भागते नहीं और उन तक पहुंचा जा सकता है. उनसे बातचीत में मुझे एक बात समझ में आई- वह झूठ नहीं बोलते. वो जो कुछ भी हैं वो असली हैं .वह लोगों के लिए, लोकतंत्र के लिए और देश के लिए कुछ करना चाहते हैं.
क्विंट – भारत जोड़ो यात्रा पर आपकी क्या राय है ?
यह एक अभूतपूर्व अवधारणा है. एक नेता का 1,500 किलोमीटर चलना बड़ी बात है. जिस तरह से वह लोगों से मिलते हैं, उनके साथ बातचीत करते हैं, उनसे हाथ मिलाते हैं – इसमें कोई बूढ़ा व्यक्ति होता है तो कोई महिला तो कभी कोई बच्चा तो कभी कोई युवा. दरअसल भारत को अभी एक ऐसी ही संस्कृति की जरूरत है. यह गौतम बुद्ध, संत रविदास, संत नामदेव, संत तुकाराम, सूफी संतों और भक्ति आंदोलन के संतों की भूमि है, यह देश उन्हीं जैसे लोगों का है. लेकिन आज हम जितनी हिंसा और नफरत देख रहे हैं वह अभूतपूर्व है. दलितों की हत्या, मुसलमानों को निशाना बनाना, आरएसएस-भाजपा लोग जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं - यह हमारी संस्कृति नहीं है. भारत जोड़ो यात्रा ऐसे ही जख्मों को भरने की कोशिश कर रही है. आंदोलन लोगों को एक साथ ला रहा है और लोगों को हिंदू-मुस्लिम और दलित-गैर-दलितों के विचारों से ऊपर भारतीय होने की याद दिला रहा है.
भारत जोड़ो यात्रा एक राजनीतिक आंदोलन है. आखिर यह तर्क क्यों दिया जा रहा है कि यह चुनावी आंदोलन नहीं है.
जब भी कोई राजनीतिक दल कोई आंदोलन शुरू करता है तो उसे चुनावी फायदा होता है. कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी सांसद या विधायक बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है.लेकिन वे 10-15 साल तक एक आंदोलन चलाते रहते हैं. अगर मैं एक नेता के तौर पर आंदोलन शुरू करता हूं, तो मुझे इससे चुनावी फायदा होगा. बाबासाहेब अम्बेडकर अपनी बुद्धिमत्ता और विद्वता के लिए जाने जाते थे, लेकिन महाड सत्याग्रह का भी क्रेडिट उनको है. महात्मा गांधी एक महात्मा थे, लेकिन उन्हें दांडी मार्च के लिए भी जाना जाता था. यह राहुल गांधी के लिए महाड जैसा क्षण है.
क्विंट- आपको नहीं लगता कि इसे गुजरात से होकर गुजरना चाहिए था?
अगर यह गुजरात में शुरू हुआ होता, तो मीडिया इसे चुनावी फायदे के लिए शुरू किए गए आंदोलन के रूप में रंग देता. वोट बटोरने के मकसद से यह आंदोलन कभी शुरू नहीं हुआ.
क्विंट- 2017 के दौरान, यह कहा गया था, "जिग्नेश, अल्पेश, हार्दिक प्रधानमंत्री मोदी नी भारी पड़ गया" (जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल की तिकड़ी की पीएम मोदी पर भारी पड़ गई). 2022 के आने तक क्या हुआ?
मैं वहीं हूं जहां मैं था. जो साथी भाजपा में जाना चाहते थे, वे जा चुके हैं. वे स्वेच्छा से गए हैं. मेरी एक स्पष्ट वैचारिक स्थिति है. मैं इस बात पर अटल हूं कि मैं सार्वजनिक जीवन भले ही छोड़ दूं लेकिन इस जिंदगी में भाजपा-आरएसएस से कभी समझौता नहीं कर सकता.
क्विंट - क्या आप हार्दिक पटेल से बात करते हैं ?
हां. हम करते हैं बातचीत. हम दोस्त हैं ..और दोस्ती चलती रहती है.
क्विंट - क्या आपने हार्दिक पटेल से बात की है जब से वो कांग्रेस छोड़कर गए हैं?
हां, मैंने एक–दो दफे उनसे बातचीत की है. हमने एक दूसरे के हालचाल लिए हैं.
क्विंट - राजनीति को एक तरफ रखते हुए, भाजपा में उनके कदम के प्रति आपका पेशेवर दृष्टिकोण क्या रहा है?
मैं मीडिया में पहले भी खुलकर कह चुका हूं और मैं अब भी उस पर कायम हूं- उन पर केस किए गए. मेरे सूत्रों के अनुसार, अगर उन्हें देशद्रोह के मामले में दोषी ठहराया गया, तो वह 15-20 साल के लिए सलाखों के पीछे होंगे. यह मेरी समझ है. लेकिन, कार्यकारी अध्यक्ष होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद और विशेष रूप से राहुल गांधी के खिलाफ उन्होंने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया, वह नहीं करना चाहिए था, वो अच्छा नहीं था.
क्विंट- 2017 चुनाव के पहले कहा जाता था कि विपक्ष के पीछे काफी मजबूत ताकत थी?
यह सच है कि वह ताकत अब नहीं है, क्योंकि हम तीनों अब साथ नहीं हैं.
तो, आपको क्या लगता है कि कांग्रेस के पास 2017 की तरह बीजेपी का मुकाबला करने के लिए इस बार कुछ है ?
पहली बात - 27 वर्षों में पहली बार, विशेषकर पिछले पूरे वर्ष में, मैंने देखा है कि भाजपा के कार्यकर्ता भी बहुत उत्साहित या ऊर्जावान नहीं हैं. दूसरी बात देश में बेरोजगारी और महंगाई बड़ा मुद्दा है. तीसरा बात यह कि चूंकि हमारी तिकड़ी (जिग्नेश-अल्पेश-हार्दिक) अब एकजुट नहीं है, कोई जन आंदोलन नहीं है, इसलिए कांग्रेस ने चुनावों के लिए सचेत और सावधानीपूर्वक योजना बनाई है. पार्टी बड़ी रैलियां नहीं कर रही है. यह मीडिया में नहीं दिख रही है.. लेकिन हम नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं, ग्रामीण स्तर पर जनता तक पहुंच रहे हैं - यहां तक कि पीएम मोदी ने भी इसे माना है. हमारे पास इस बार अधिक संगठित तरीके से काम करने वाली सक्रिय बूथ समितियां, कम्यूनिटी इन्फ्लुएंसर और जमीनी स्तर के एक्टिविस्ट हैं. 2017 में हमारी यही कमी थी
क्विंट- नैरेटिव की बात करें, तो यह कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के आधार पर कब्जा कर रही है. आप इससे कितना सहमत हैं?
AAP का राज्य में कोई सांगठनिक आधार नहीं है. उनका कहना है कि आप कांग्रेस का वोट खा रही है. अगर कोई इस पर यकीन भी कर ले तो इसका मतलब यह होगा कि फासीवाद के खिलाफ खड़े होने के लिए संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में कोई नहीं बचेगा. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा.दूसरा, 2-4 महीने के अंतराल में यहां एक नई पार्टी का आना और हर तहसील, जिले और राज्य के लगभग 18,000 गांवों में घुसपैठ और नेटवर्क बनाना - यह असंभव है. सालों की मेहनत लगती है. सोशल मीडिया पर अपना दबदबा बना लेना एक बात है लेकिन ग्राउंड जीरो पर बिल्कुल अलग बात है.
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