जिन नीतिश कुमार ने जीतन राम मांझी को अपनी भूल बताया था, और जिन मांझी ने नीतीश के लिए कहा था कि वो उन्हें कठपुतली सीएम के तौर पर देखना चाहते थे, वो दोनों अब एक फिर से एक होने की राह पर दिख रहे हैं. जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा यानी HAM महागठबंधन से अलग हो गई है. कहा जा रहा है कि वो NDA में शामिल हो सकती है. तो आखिर मांझी की कहानी क्या है? दरअसल मांझी की नौका कब किस घाट पर आकर लगेगी, सिर्फ वो ही जानते हैं.
नीतीश से रार, अब जागा प्यार
याद कीजिए 2014 का लोकसभा चुनाव. नीतीश की पार्टी जेडीयू सिर्फ 2 सीटें जीत पाई. नीतीश ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद छोड़ दिया और मांझी को अपना विश्वासपात्र मान कर उन्हें सीएम बना दिया. उनका कार्यकाल नवंबर 2015 यानी विधानसभा चुनाव तक होना था लेकिन मांझी ने ऐसे पैंतरे दिखाए कि नीतीश कुमार ने उन्हें वक्त से पहले ही उनसे सीएम की कुर्सी छीन ली. साथ ही उन्हें पार्टी से भी निकाल दिया. इसके बाद मांझी ने अपनी अलग पार्टी बना ली. नाम रखा HAM.
2015 विधानसभा चुनावों में मांझी ने NDA से गठबंधन किया लेकिन प्रदर्शन इतना खराब रहा कि वो इससे अलग हो गए और महागठबंधन का हिस्सा बन गए. इस दौरान मांझी ने नीतीश और नीतीश ने मांझी को न जाने क्या-क्या कहा. लेकिन अब मांझी आरजेडी-कांग्रेस वाले महागठबंधन में अनदेखी का आरोप लगाते हुए अलग हो गए हैं. पूरी उम्मीद है कि वो फिर से नीतीश के नेतृत्व वाले NDA का दामन थामेंगे.
घाट-घाट लगी मांझी की नौका
1944 में जन्मे मांझी गया कॉलेज से ग्रेजुएट हैं. राजीनीति से पहले मांझी ने गया टेलीफोन एक्सचेंज में काम किया. उनकी पांच बेटियां और दो बेटे हैं. मुशहर जाति से आने वाले मांझी बिहार में महादलितों के नेता माने जाते हैं. मुशहर जाति के राज्य में करीब दो परसेंट वोट हैं.
1990 तक मांझी कांग्रेस में थे. फिर उन्होंने RJD ज्वाइन की. कांग्रेस पार्टी के टिकट पर वो 1980 से 1990 तक विधायक रहे फिर RJD के टिकट पर 1996 से 2005 तक विधानसभा रहे. 2005 में उन्होंने जेडीयू ज्वाइन की और इसमें अगले दस साल रहे. यानी 2015 में पार्टी से बर्खास्त किए जाने तक.
विवादित बयानों के लिए भी मशहूर
2008 में मांझी ने कहा था कि खाने की किल्लत है तो चूहे खा लो. वो जिस जाति से आते हैं उसमें कई लोग चूहों को पकड़ कर खाते हैं. एर बार वो ये भी कह चुके हैं कि अगली जातियों के लोग विदेशी हैं
नीतीश सरकार में मंत्री रहने से पहले मांझी बिंदेश्वरी दुबे, चंद्रशेखर सिंह, जगन्नाथ मिश्रा, सत्येंद्र नारायण सिंह, लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की सरकारों में मंत्री रहे.
अब किधर मांझी की नांव?
अब कहा जा रहा है कि एनडीए में शामिल होने के लिए मांझी 16 सीटें मांग रहे हैं. खबर ये भी है कि 11 सीटों पर बात बन सकती है. HAM का कहना है कि उसने महागठबंधन से अलग होने का फैसला इसलिए लेने का फैसला किया क्योंकि वहां उपेक्षा हो रही थी. मांझी काफी समय से मुद्दा समन्वय समिति बनाने की मांग कर रहे थे लेकिन तेजस्वी यादव ने बात नहीं मानी. वैसे जानकार बताते हैं कि श्याम रजक के जेडीयू से बाहर जाने के बाद मांझी को जेडीयू-एनडीए में अपने लिए महादलित राजनीति का चेहरा बनने की संभावना दिख रही है. अपने बूते उनका चुनावों में कुछ खास प्रदर्शन करना मुश्किल है, लेकिन एनडीए के साथ जाकर जरूर कुछ कामयाबी मिल सकती है.
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