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Karnataka Election: लगातार दूसरी बार फेल हुई AAP, क्यों हुआ NOTA से भी बुरा हाल?

224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक में आम आदमी पार्टी ने 208 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.

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राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने बाद अपने पहले चुनाव में ही आम आदमी पार्टी (AAP) को बड़ी शिकस्त झेलनी पड़ी. कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections) में पार्टी के द्वारा उतारे गए प्रत्याशियों की बुरी तरह से हार हुई है. कुल 208 में से केवल 72 उम्मीदवारों को 1 हजार या उससे ज्यादा वोट मिले हैं. कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता कलप्पा, जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर AAP का हाथ थाम लिए थे, उनको चिकपेट में सिर्फ 600 वोट मिले हैं.

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अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी ने पंजाब और दिल्ली मॉडल के नाम पर वोट मांगा था. कर्नाटक चुनाव में दिल्ली सीएम केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, सांसद राघव चड्ढा और संजय सिंह ने पार्टी के लिए प्रचार किया था.

NOTA से भी कम वोटिंग प्रतिशत

इस चुनाव में AAP को महज 0.58 प्रतिशत वोटों के साथ मन बहलाना पड़ा है, वहीं दूसरी ओर NOTA का वोटिंग शेयर 0.69 प्रतिशत है.

224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक में आम आदमी पार्टी ने 208 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में AAP का वोटिंग प्रतिशत

(फोटो-ECI)

अगर पिछले विधानसभा चुनाव से तुलना करें तो इस बार NOTA को कम वोट पड़े हैं. 2018 में कुल 3,13,696 लोगों ने NOTA को वोट किया था, जो कुल डाले गए वोटों का 0.86% था.

224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक में आम आदमी पार्टी ने 208 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में NOTA का वोटिंग प्रतिशत

(फोटो-ECI)

अलग-अलग इलाकों में कैसा रहा प्रदर्शन?

224 विधानसभा सीटों वाले राज्य कर्नाटक में आम आदमी पार्टी ने 208 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और कुल मिलाकर पार्टी को महज 2.25 लाख वोट मिले हैं. भ्रष्टाचार खत्म करने और कल्याणकारी शासन करने दावा करते हुए पार्टी का इरादा कर्नाटक को दक्षिण भारत का प्रवेश द्वार बनाने का था लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

आम आदमी पार्टी का सबसे अच्छा प्रदर्शन गडग जिले की विधानसभा सीट रॉन में रहा है. यहां पार्टी के कैंडिडेट अनेकल डोड्डैया को 8,839 यानी 4.96 प्रतिशत वोट मिला है. यहां पर वोट का कुल आंकड़ा 1,78,196 है.

शहरी इलाकों से AAP के तीन प्रमुख कैंडिडेट बृजेश कलप्पा, मोहन दसारी और मथाई को भी बुरी हार का सामना करना पड़ा. सीनियर लीडर बृजेश कलप्पा को चिकपेट विधानसभा सीट से केवल 600 वोट मिले.

The Hindu की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के विधानसभा चुनाव में AAP ने 28 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और पार्टी को कुल 23,468 यानी 0.06% वोट मिले थे.

  • बेंगलुरु के 28 विधानसभा क्षेत्रों में AAP को केवल 16 सीटों पर 1 हजार या इससे ज्यादा वोट मिले हैं. महादेवपुरा में, जहां पिछले साल भारी बाढ़ आई थी और पार्टी ने नागरिक मुद्दों पर केंद्रित एक अभियान चलाया था, वहां पर 3,34,616 वोटों में से सिर्फ 4,551 वोट मिले.

  • AAP को बेंगलुरु साउथ में 2,585 वोट, बीटीएम लेआउट में 1055, सीवी रमन नगर में 2,967, बोम्मनहल्ली में 1,989, बयातारायणपुरा में 1,271, दशरहल्ली में 4,46, हेब्बल में 1,026, केआर पुरम में 2,319, महालक्ष्मी लेआउट में 1,600, पद्मनाभनगर में 2,092 वोट मिले हैं.

  • AAP को आरआर नगर में 1,191, सर्वगणनगर में 1,488, शांतिनगर में 1,604, शिवाजीनगर में 1,634 और यशवंतपुर में 2,199 वोट मिले हैं.

  • अगर उत्तरी कर्नाटक की बात की जाए तो आम आदमी पार्टी ने 19 विधानसभा इलाकों में कुछ बेहतर प्रदर्शन किया है. इनमें से तीन सीटें ऐसी हैं, जहां पर पार्टी ने 3 हजार से अधिक वोट हासिल किया.

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AAP सभी सीटों पर क्यों नहीं लड़ी चुनाव?

Deccan Herald की रिपोर्ट के मुताबिक AAP के कर्नाटक अध्यक्ष पृथ्वी रेड्डी ने कहा कि लोग बीजेपी से छुटकारा पाना चाहते हैं इसलिए उन्होंने ऐसी पार्टी को चुना जिसके जीतने की सबसे ज्यादा उम्मीद थी. उनके अनुसार AAP ने सोचा कि उसके पास रॉन, बीदर दक्षिण, दशरहल्ली और सीवी रमन नगर में मौका है.

रेड्डी ने लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसले का बचाव किया और इसे "हमारी नैतिक जिम्मेदारी" बताया है. उन्होंने कहा कि

AAP बीबीएमपी, जिला पंचायत और तालुक पंचायत चुनावों पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है. उत्तर कर्नाटक में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा था.

पृथ्वी रेड्डी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि 208 उम्मीदवारों को बधाई, कोई शर्म वाली बात नहीं है. आपने सच्चाई और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी है. हम एक ईमानदार अभियान पर लड़े और दूसरों को हमारे शिक्षा और स्वास्थ्य के एजेंडे को अपनाने के लिए मजबूर किया. लड़ाई जारी रहेगी.

लगातार दूसरी बार मात खाने के क्या मायने?

गौर करने वाली बात ये है कि आम आदमी पार्टी के लिए यह लगातार दूसरा राज्य है, जहां पार्टी एक भी सीट हासिल करने में नाकाम रही है. पिछले साल दिसंबर के दौरान हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बेहद खराब प्रदर्शन किया था. वहां भी पार्टी अपना खाता खोलने में कामयाब नहीं हो सकी थी. अब सवाल ये भी है कि क्या कर्नाटक की जनता को दिल्ली-पंजाब मॉडल नहीं पसंद है या फिर लोगों ने सच में उस पार्टी को वोट किया, जिसकी जीतने की उम्मीद ज्यादा थी?

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