Karnataka Election Result: लिंगायत समुदाय ने 2023 के कर्नाटक चुनावों में किसे वोट दिया है? इसका संकेत हमें तीन सीटों - शिकारीपुरा, अथानी, और हुबली-धारवाड़ सेंट्रल- के रुझानों से मिल रहा है, जहां तीन लिंगायत उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. जहां बीजेपी के बीवाई विजयेंद्र शिकारीपुरा में 11008 वोटों से जीत गए हैं, वहीं अथानी में कांग्रेस के लक्ष्मण सावदी 76122 वोटों से जीत गए हैं. हुबली-धारवाड़ में कांग्रेस के जगदीश शेट्टार 34,000 से अधिक वोटों से हारे हैं.
रुझानों में कांग्रेस ने कर्नाटक में 120 से अधिक सीटों पर स्पष्ट बहुमत हासिल करते हुए चुनाव जीत लिया है.
कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत है और राजनीतिक रूप से यह प्रमुख वर्ग है. कांग्रेस नेताओं के नेतृत्व में समुदाय के एक वर्ग ने इस चुनाव में कांग्रेस के लिए समुदाय के समर्थन का वादा किया था.
'इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया' एग्जिट पोल के अनुसार, कांग्रेस को बीजेपी के नुकसान पर लिंगायत वोटों का कम से कम 4 प्रतिशत हासिल करने का अनुमान लगाया गया था. बीजेपी को हमेशा इस शक्तिशाली समुदाय का समर्थन प्राप्त रहा है.
अगर संक्षेप में कहें, अभी तक के रुझान को देखते हुए, लिंगायत वोट कांग्रेस के पक्ष में उतना नहीं आया है, जैसा कि पार्टी को उम्मीद थी. लेकिन जातिगत संबद्धता या अफिलिएशन से परे दूसरे फैक्टर्स की वजह से कई सीटों पर लिंगायत वोट बंट गए जिसका फायदा कांग्रेस को हुआ है. वजह हम आपको यहां बताते हैं.
अथानी में लक्ष्मण सावदी ने बाजी कैसे मारी और इसका क्या मतलब है?
कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री और लिंगायत नेता लक्ष्मण सावदी ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था क्योंकि उन्हें भगवा पार्टी ने टिकट नहीं दिया था. अथानी में, उन्होंने बीजेपी के महेश कुमथल्ली के खिलाफ चुनाव लड़ा और 76122 वोटों से जीत हासिल की है. कुमथल्ली के बारे में माना जाता है कि उन्हें एक अन्य बीजेपी उम्मीदवार रमेश जरकिहोली का समर्थन प्राप्त था, जो पूर्व कांग्रेस नेता और अनुसूचित जाति की सूची में आने वाले वाल्मीकि जाति से आते हैं.
एक लिंगायत नेता ने द क्विंट को बताया, "हमने विशेष रूप से कुमाथल्ली के खिलाफ अभियान चलाया क्योंकि हम रमेश जरकिहोली के प्रभाव को छोटा करना चाहते थे."
द क्विंट से बात करने वाले लिंगायत नेताओं के अनुसार, लिंगायत समुदाय की एक पिछड़ी जाति पंचमसाली लिंगायत ने कुमाथल्ली के ऊपर सावदी का पक्ष लिया है. रमेश जरकिहोली जिन्हें 2021 में एक कथित सेक्स स्कैंडल में फंसने के बाद अपना मंत्री पद छोड़ना पड़ा था, एक गन्ना व्यवसायी हैं और उनका साम्राज्य मुंबई कर्नाटक के बेलागवी में फैला हुआ है.
रमेश जरकिहोली के भाई सतीश जारकीहोली एक कांग्रेस नेता हैं, जिन्होंने यमकानमाद्री निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा है. वे एक बड़े अंतर से आगे चल रहे हैं. गोकक निर्वाचन क्षेत्र में रमेश जरकीहोली 25412 वोटों के जीत गए हैं. उनकी यह जीत वाल्मीकि (एसटी) वोटों की बदौलत है, जो उनके साथ बने हुए हैं.
रमेश जरकीहोली और कुमाथल्ली के खिलाफ गुस्सा लिंगायतों के बीच उस आम समझ पर आधारित है कि 10 लाख रुपये से अधिक के सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर के कॉन्ट्रैक्ट को जीतने की बात आने पर रमेश जरकिहोली ने एकछत्र राज किया है.
एक लिंगायत नेता ने कहा, “हमारा फैसला इस बात पर निर्भर था कि किस उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया था. लिंगायत समुदाय ने बीजेपी को नहीं छोड़ा है, लेकिन जिन सीटों पर विरोधी उम्मीदवार जाति के अलावा अन्य कारणों से हमारी पसंद के नहीं थे, हमने कांग्रेस को वोट दिया है.”
हुबली-धारवाड़ में जगदीश शेट्टार क्यों हारे?
विशिष्ट उम्मीदवारों के लिए और उनके खिलाफ लिंगायत समुदाय के मतदान करने की यह मौन समझ स्पष्ट रूप से हुबली-धारवाड़ सेंट्रल सीट पर दिखाई देती है जहां कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने महेश तेंगिंकाई के खिलाफ चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने शेट्टार को टिकट नहीं दिया और अपनी घरेलू सीट से चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस में शामिल हो गए.
हालांकि यहां जगदीश शेट्टार, जो बनजिगा लिंगायत नेता हैं, तेंगिंकाई के खिलाफ 34289 वोटों से हार गए हैं.. तेंगिंकाई आरएसएस द्वारा समर्थित पंचमसाली लिंगायत उम्मीदवार हैं.
एक लिंगायत नेता ने कहा, शेट्टार की जीत तभी होती जब उनके निर्वाचन क्षेत्र में लिंगायत वोट बंट जाते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि पंचमसालियों ने जाति संबद्धता को लेकर तेंगिकाई का समर्थन किया है.”
शेट्टार को बीजेपी में सबसे कम विवादास्पद और भ्रष्ट नेताओं में से एक के रूप में जाना जाता था. लेकिन उन्हें पंचमसाली लिंगायतों की नाराजगी तब झेलनी पड़ी जब उन्होंने पहले पिछड़ा वर्ग सूची के तहत समुदाय के लिए 2A श्रेणी के आरक्षण का विरोध किया था. पंचमसाली लिंगायत नेता ने खुलकर खुलासा किया, "हमें लगा कि समुदाय से एक नया उम्मीदवार तेंगिकाई हमें 2ए आरक्षण दिलाने में मदद कर सकता है."
मतलब, करीबी मुकाबले वाली सीटों पर, लिंगायत कांग्रेस के नेताओं के साथ खड़े थे, जो उनके विभिन्न मुद्दों पर मदद कर सकते थे. लेकिन केंद्रीय कर्नाटक में शिकारीपुरा जैसी प्रमुख सीटों पर समुदाय स्पष्ट रूप से बीजेपी की पुरानी ब्रिगेड के साथ खड़ा था.
शिकारीपुरा में विजयेंद्र ने बाजी क्यों मारी?
कर्नाटक में बीजेपी के उदय का श्रेय मोटे तौर पर तटीय क्षेत्र को दिया जाता है जहां आरएसएस मजबूत है. हालांकि, मध्य कर्नाटक वह जगह है जहां लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में भगवा पार्टी की जाति इंजीनियरिंग ने अतीत में अच्छा काम किया था. शिवमोग्गा से शुरू करते हुए, येदियुरप्पा ने 2000 के दशक की शुरुआत से पार्टी के लिए लिंगायत वोटों को पाले में किया और समुदाय को भगवा पार्टी के पीछे लामबंद कर दिया.
समुदाय येदियुरप्पा के साथ खड़ा है, जिन्होंने 2021 में बसवराज बोम्मई से मुख्यमंत्री पद हारने के बाद यह चुनाव नहीं लड़ा था. हालांकि, उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र ने शिकारीपुरा से चुनाव लड़ा और 11008 वोटों के अंतर से जीत हासिल कर ली है. 2018 के चुनावों में येदियुरप्पा के 35,000 से अधिक मतों के अंतर से जीते थे.
एक लिंगायत नेता ने कहा, “यहां, लिंगायतों के कुछ वर्गों ने निर्दलीय उम्मीदवार एसपी नागराज गौड़ा को वोट दिया है, जो सदर लिंगायत हैं. साथ ही, बंजारा (स्पृश्य दलित) के वोट इस उम्मीदवार को गए हैं."
'स्पृश्य' दलितों ने इस चुनाव में बीजेपी के खिलाफ मतदान किया क्योंकि वे अनुसूचित जातियों की सूची के भीतर उप-जाति आरक्षण के कार्यान्वयन से नाखुश थे. नागराज गौड़ा कांग्रेस से बागी उम्मीदवार हैं.
एक लिंगायत नेता ने कहा, "शिकारीपुरा में, लिंगायत सभा ने बीजेपी को एक मजबूत संदेश दिया है कि वे नेताओं के पुराने पायदान पर भी खड़े होंगे, अगर पार्टी समुदाय और उसके नेताओं की रक्षा करने का वादा निभाती रहेगी."
शिगाओ में, जहां पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने चुनाव लड़ा था, लिंगायतों की यह हिचकिचाहट दिखाई दी. भले ही उन्होंने यहां से अनुभवी नेता कांग्रेस के पठान यासिर अहमद खान को 35978 वोटों से हरा दिया है.
संक्षेप में, लिंगायतों ने, भले ही वे बीजेपी के साथ खड़े हैं, यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका समर्थन बिना शर्त नहीं है और भगवा पार्टी को बेहतर प्रदर्शन करना होगा.
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