कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के आए नतीजों ने बहुत कुछ साफ कर दिया है. 35 साल की रवायत कायम है. सत्ता परिवर्तन हुआ है और कांग्रेस पूर्ण बहुमत से भी कहीं ज्यादा आगे है. 'ऑपरेशन कमल' की कोई गुंजाइश नहीं बची है. किंगमेकर के रूप में दावा करती आई JD(S) के भी 'पर' जनता ने कतर दिए हैं. बीजेपी के लिए दक्षिण का द्वार रहा कर्नाटक उसके हाथ से फिसल गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक अंतिम चरण में पीएम मोदी ने कर्नाटक में 22 रैलियों को संबोधित किया था, लेकिन नतीजा आपके सामने है. बीजेपी 104 से खिसकर 63 सीटों पर आकर सिमट गई है. हिंदुत्व का मुद्दा बीजेपी का USP रहा है, लेकिन कर्नाटक की जनता ने उसे ढेर कर दिया. वहीं, बजरंगदल का बजरंगबली से तुलना बीजेपी के लिए महंगा पड़ा है. ऐसे ही कुछ और कारण रहे जो बीजेपी की हार की वजह बने.
पहला, सत्ता विरोधी लहर
कर्नाटक में बीजेपी की हार की मुख्य वजहों में सत्ता विरोधी लहर सबसे ज्यादा प्रभावी रही. बसवराज बोम्मई सरकार से जनता नाराज चल रही थी. जानकारों का मानना है कि इसके संकेत लोकल नेता कई बार बीजेपी आलाकमान को दे चुके थे. इसके बाद आलाकमान ने दिल्ली में मीटिंग भी की थी, लेकिन नतीजा कोई नहीं निकला. यही वजह रही की बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव मैदान में उतरी. हालांकि, सत्ता विरोधी लहर की रवायत पिछले 35 सालों से चल रही है, जो इस चुनाव में भी कायम दिखी.
दूसरा, नेशनल मुद्दों पर लोकल मुद्दे भारी
कांग्रेस ने शुरुआत में ही जनता की नब्ज को टटोल लिया था. पार्टी ने लोकल मुद्दों को सर्वोपरि रखा. इसमें भ्रष्टाचार जैसा मुद्दा कांग्रेस की तरफ से बड़े जोर-शोर से उठाया गया. जानकारों का मानना है कि सत्ता विरोधी लहर पर कांग्रेस के लोकल मुद्दे आग की घी का काम किए, जो आज नतीजों में तब्दील हुए हैं. वहीं, बीजेपी नेशनल मुद्दों पर चुनाव मैदान में अड़ी रही. बीजेपी ने केंद्रीय मुद्दों को तरजीह दी और पीएम मोदी को आगे रखकर और उनके कामों पर जनता के बीच गई, जिसको जनता ने नकार दिया.
तीसरी वजह, येद्दयुरप्पा को दरकिनार करना पड़ा भारी
बीजेपी की हार में जो सबसे मुख्य वजह रही उसमें येद्दुरप्पा को दरकिनार करना सबसे बड़ा मुद्दा रहा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कर्नाटक में येद्दुरप्पा बीजेपी के सबसे बड़े नेता थे. प्रदेश में जीत हार तय करने वाले लिंगायत समुदाय से आने वाले येद्दुरप्पा को मार्गदर्शन मंडल में डालना सुमदाय को लोगों को नागवार गुजरा. यही नतीजा रहा कि लिंगायत बहुल इलाका महाराष्ट्र-कर्नाटका में जहां पिछले चुनाव में बीजेपी को 30 सीटें हासिलि हुई थी, वह अब घटकर 14 से भी नीचे आ गई हैं. हालांकि, बसवराज बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं, लेकिन उनका प्रभाव उतना बड़ा नहीं है, जो येद्दयुप्पा का है. जगदीश शेट्टार भी लिंगायत से आते हैं, लेकिन अब वह बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, और कांग्रेस टिकट पर हुबली धारवाड़ सेंट्रल सीट से मैदान में हैं.
चौथी वजह, ध्रुवीकरण की राजनीति को जनता ने नकारा
कर्नाटक चुनाव में ध्रुवीयकरण की राजनीति को जनता ने नकार दिया. बजरंगदल से बजरंगबली की तुलना बीजेपी को भारी पड़ी. कांग्रेस ने अपने मेनीफेस्टो में कहा था कि अगर वह कर्नाटक की सत्ता में वापसी करती है तो बजरंगदल को बैन करेगी. इस मुद्दे को बीजेपी ने खूब उछाला, पीएम मोदी खुद हर रैलियों में बजरंगदल की तुलना बजरंगबली से करते आए, लेकिन नतीजा आपके सामने है. चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने आरक्षण कार्ड भी खेला. उसने अल्पसंख्य मुस्लिम समुदाय का 4 फीसदी आरक्षण काटकर लिंगायत और वोक्कालिंगा में 2-2 फीसदी बांट दिया. यही नहीं बीजेपी की तरफ से फिल्म केरल स्टोरी का भी खूब मुद्दा उठाया गया और इसके पीछे कांग्रेस राज को जिम्मेदार ठहराया गया. लेकिन, इन सारे मुद्दों को कर्नाटक की जनता ने हवा हवाई कर दिया.
पांचवीं और आखिरी वजह, BJP की गुटबाजी
हालांकि, गुजबाजी का मुद्दा बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस में भी था, लेकिन कांग्रेस ने उसको समय रहते संभाल लिया. बीजेपी में येद्दुरप्पा के साइडलाइन के बाद गुटबाजी का मुद्दा और बढ़ गया. चुनाव से कुछ दिन पहले ही येद्दुरप्पा अपने करीबी और लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे, लेकिन येद्दुरप्पा के पावर कट के बाद उन्होंने पाला पलट लिया और कांग्रेस से हाथ मिला लिया. बीजेपी से ऐसे कई नेता थे, जो बीजेपी छोड़कर कांग्रेस और JD(S) में शामिल हुए.
कर्नाटक चुनाव के आए नतीजों से एक बात तो साफ हो गई है कि जनता को बांटने की राजनीति बिलकुल पसंद नहीं है उसके काम करने वाली पार्टी और नेतृत्व की जरूरत है, जो उनकी उम्मीदों पर खरा उतरे. हालांकि, ये आने वाला वक्त ही बताएगा कि कांग्रेस कर्नाटक की जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरती है.
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