वास्तविक चुनावी नतीजों से पहले आने वाले एग्जिट पोल हमेशा स्वास्थ्य संबंधी चेतावनियों के साथ आने चाहिए. इसकी वजह है कि चुनाव विश्लेषक अपनी कार्यप्रणाली के साथ-साथ सर्वे में बहुत गलत हो सकते हैं. लेकिन, यह कहने के बावजूद, अगर कर्नाटक में इस महीने के आखिर में कांग्रेस का मुख्यमंत्री नहीं बना, तो यह न केवल आधुनिक चुनाव विज्ञान की विफलता का मामला होगा, बल्कि इसे चुनावी विशेषज्ञों की विफलता भी मानी जाएगी.
ठोस ट्रैक रिकॉर्ड वाली सबसे विश्वसनीय पोलस्टर एजेंसियों में से तीन- एक्सिस माई इंडिया, टुडेज चाणक्य, और सीवोटर ने कमोबेश क्लीन स्वीप नहीं तो बीजेपी पर कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी की है.
'40% सरकार'
तो हम इसका श्रेय किसे दे सकते हैं? यदि पिछले सप्ताह के अंत में बैंगलोर में मूड कोई संकेत था, तो इस दक्षिणी राज्य में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का 26 किलोमीटर लंबा रोड शो एक तरह का जादू था. चुनावी कैंपेन बस वो ही छाए थे. रोड शो में फूलों की पंखुड़ियों के साथ पीएम मोदी की बयानबाजी समान सहजता से बह रही थी.
लेकिन देर से हुए स्विंग का शायद ही कभी पूरे मैच पर असर पड़ता है. ऐसा लगता है कि बहुत हद तक एडवांटेज कांग्रेस के पक्ष में था, जिसे इतनी आसानी से पूर्व स्थिति में नहीं भेजा जा सकता था.
अनुमान है कि वोटिंग प्रतिशत 75% के करीब रहा और इस तरह का हाई टर्नआउट आम तौर पर एक सत्ता-विरोधी मूड का संकेत देता है. यह स्पष्ट था कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई राज्य में प्रशासनिक विफलता के आरोपों को झेल रहे हैं. इसमें एक यह आरोप भी शामिल था कि वे "PayCM" सरकार या "40% सरकार" का नेतृत्व कर रहे हैं. बीजेपी के लिए यह बड़ी चुनौती थी क्योंकि किसी भी चुनाव अभियान में उसके दो सबसे बड़े बाण हैं- भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और हिंदुत्व का भगवा ध्वज.
एग्जिट पोल का अनुमान है कि मैंगलोर तटीय क्षेत्र, जहां भगवान श्रीकृष्ण का उडुपी मंदिर है और इस्लाम के प्रति युद्ध की भावना के साथ हिंदू संस्कृति की गूंज है- अभी भी बीजेपी का गढ़ बना हुआ है.
लेकिन पूरे राज्य में ओवरऑल 40 प्रतिशत वोट शेयर का अनुमान बताता है कि बीजेपी के लिए 40 एक अशुभ संख्या साबित हुई. लगता है कि बजरंग दल पर कांग्रेस की बैन की योजना का मुकाबला करने के लिए भगवान हनुमान के 40 श्लोकों का जाप भी काम नहीं किया है.
पीएम + सीएम फॉर्मूले का क्या हुआ?
लेकिन सबसे स्पष्ट बात यह है कि बीजेपी अपने पसंदीदा "डबल इंजन" विषय से धीरे-धीरे पीछे हट रही है. इसे वह आमतौर पर राज्य विधानसभा चुनावों में पेश करती है. उत्तर प्रदेश में जादू की तरह काम करने वाला "पीएम प्लस सीएम" फॉर्मूला कर्नाटक में हवा हो गया. चुनाव अभियान के अंतिम चरण में बीजेपी के अधिकांश अभियान में एक व्यक्तिगत नेता के रूप में बोम्मई पर जोरदार चुप्पी में इसे देखा जा सकता है.
एक वक्ता और प्रशासक दोनों के रूप में, बोम्मई, जिन्होंने दो साल से कम समय तक शासन किया, स्पष्ट रूप से बीजेपी के हाव-भाव, प्रशासनिक आडंबर और अलंकारिक भाषणों के हॉलमार्क मिश्रण से दूर दिखे.
सच कहें तो बोम्मई टॉप ऑर्डर के बिखरने के बाद क्रीज में आने वाले बल्लेबाज की तरह थे. वह पांच साल में राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री थे.
भ्रष्टाचार के दाग में लिपटे बी.एस. बोम्मई के साथी लिंगायत नेता येदियुरप्पा 2018 से दो चरणों में सीएम कुर्सी पर बैठे. जनता दल (सेक्युलर) के एच.डी. कुमारस्वामी बीजेपी को अपने दम पर सरकार बनाने के लिए मजबूर करने से पहले अस्थिर गठबंधन में मुख्यमंत्री बने.
क्या हिंदुत्व की राजनीति का जादू खत्म होने लगा?
लेकिन बोम्मई कोई जादूगर नहीं है. हम जानते हैं, है ना? लगता है कि अब पता चला कि पीएम मोदी भी नहीं हैं.
जैसा कि मैंने पहले एक आर्टिकल में तर्क दिया था, पीएम मोदी के व्यक्तित्व को हिंदुत्व और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की चाशनी में पेश करने को बीजेपी ने सबसे बड़ा रामबाण बनाया है. लेकिन यह दक्षिण के "द्रविड़ मॉडल" के सामने फीका दिखता है जो जाति समीकरण, जॉब कोटा और कल्याणकारी हैंडआउट्स पर काम करता है.
यह और इसके अपने 'हम-भ्रष्टाचार-लड़ते हैं' टैग की विफलता ने जाहिर तौर पर कांग्रेस की मदद की है. कांग्रेस की कर्नाटक में संगठनात्मक मशीनरी भारत के अधिकांश हिस्सों में पार्टी की क्षेत्रीय इकाइयों की तुलना में कहीं अधिक ऊर्जावान और कुशल है.
हम अगले प्रशासन के आकार सहित अन्य डिटेल्स की प्रतीक्षा करेंगे. लेकिन यह मानने की हर वजह मिल गयी है कि कर्नाटक वह जगह है जहां हिंदुत्व की दक्षिणी यात्रा एक बड़ी ईंट की दीवार से टकराती दिख रही है.
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार और कमेंटेटर हैं, जिन्होंने रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के लिए काम किया है. उनका ट्विटर हैंडल @madversity है. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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