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कोलकाता निकाय चुनाव: हिंसा के आरोपों के बीच TMC का परचम, BJP के लिए बड़ा झटका

तृणमूल कांग्रेस ने Kolkata Corporation election में कुल 144 सीटों में से 135 सीटों पर जीत हासिल की

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पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने कोलकाता नगर निगम चुनाव (Kolkata Corporation election) में कुल 144 सीटों में से 93% या 135 सीटों पर जीत हासिल की है. आश्चर्जनक रूप से इस चुनाव में एक खास बात रही कि वाम मोर्चे (Left Front) ने बीजेपी (BJP) को तीसरे स्थान पर धकेलते हुए मुख्य विपक्ष के दर्जे पर अपना दावा किया है.

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हालांकि सीटों के लिहाज से बीजेपी ने तीन सीटें जीतीं, जबकि वाम मोर्चा और कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं. बावजूद इसके वोट शेयर के मामले में वाम मोर्चे को 12% वोट मिले जबकि बीजेपी का वोट शेयर घटकर 9% रह गया.

2021 की राज्य विधानसभा में TMC 132 वार्डों में आगे चल रही थी, जबकि बीजेपी को 11 वार्डों और वाम मोर्चा को 1 वार्ड में बढ़त मिली थी. लेकिन करीब छह महीने में विपक्ष के समीकरण का स्वरूप बदल गया. कोलकाता निगम चुनाव में वाम मोर्चा ने 66 वार्डों में दूसरा स्थान हासिल किया, जबकि बीजेपी को केवल 47 वार्ड और कांग्रेस ने 16 वार्डों में जीत हासिल की है.

TMC ने इस बार 6 विधायक और एक सांसद को पार्षद पद के लिए मैदान में उतारा था. इन सभी ने अपने-अपने वार्ड से भारी अंतर से जीत हासिल की है. मालूम हो कि TMC पहली बार वार्ड 98 जीतने में कामयाब रही, जो पिछले 36 सालों से वामपंथी उम्मीदवारों का गढ़ था.

चुनाव परिणामों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए, सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि “चुनाव एक त्योहार की तरह आयोजित किया गया था, यह लोकतंत्र की जीत है.”

“हम मां, माटी और मानुष के आभारी हैं. मैं लोगों के सामने सिर झुकाती हूं और हम विनम्रता और विनम्रता के साथ विकास कार्यों को करना जारी रखेंगे. कोलकाता देश के बाकी हिस्सों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा”
सीएम ममता बनर्जी

चुनाव परिणाम के कुछ खास आंकड़े

वार्ड संख्या 66 में, फैज अहमद खान ने 62 हजार से अधिक वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की और वार्ड में 88% से अधिक वोटों को अपने नाम किया.

इसी तरह वार्ड संख्या 109 में अनन्या बनर्जी ने 37 हजार से अधिक वोटों से सीट जीता और वार्ड में पड़े कुल वोटों में से 89% से अधिक अपने पाले में किया.

विपक्ष को बनाया गया निशाना

चुनाव के दिनों में सुबह से ही वोटरों को डराने-धमकाने, हिंसा और धांधली को लेकर शिकायतें सामने आने लगीं. सियालदह के ताकी बॉयज स्कूल के पास बम फेंके गए, जिसमें तीन वोटर घायल हो गए. यहां तक ​​कि बेलेघाटा और खन्ना इलाके में भी बम फेंके गए. इस पर कोलकाता पुलिस ने कहा कि इसके पीछे अज्ञात बदमाशों का हाथ है.

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19 दिसंबर की तड़के सुबह पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी के आवास को पुलिस ने घेर लिया था, जबकि उनका आवास दूसरे जिले में स्थित है. हैरानी की बात है कि पुलिस ने इस तरह की कार्रवाई के लिए कोई बयान जारी नहीं किया या कोई कारण भी नहीं बताया.

वोटिंग के दिन Kyd स्ट्रीट पर 7 बीजेपी विधायक MLA हॉस्टल के अंदर फंस गए क्योंकि कोलकाता पुलिस ने मेन गेट को बंद कर दिया था.

वोटिंग समाप्त होने के बाद देर रात हाटीबागान क्षेत्र के वार्ड 16 से कांग्रेस प्रत्याशी रवि साहा को सड़क पर पटक दिया गया, उनके कपड़े उतार दिए गए और उनके साथ बेरहमी से मारपीट की गयी.

वार्ड 45 में एक पोलिंग सेंटर के अंदर कांग्रेस प्रत्याशी संतोष पाठक के चुनाव एजेंट अमिताभ चक्रवर्ती के साथ मारपीट की गई. बागबाजार क्षेत्र के वार्ड नंबर 23 में मारवाड़ी बालिका विद्यालय नाम के एक स्कूल में लोगों के एक समूह ने मतदान केंद्र पर धावा बोल दिया, ईवीएम में धांधली की. फाइलों को फाड़ दिया और भाग निकले.

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विपक्ष ने दावा किया है कि ज्यादातर मामलों में अपराधी स्थानीय नहीं लगते थे. बंगाली टीवी चैनलों ने ऐसे कई उदाहरणों की सूचना दी जहां एक झूठे वोटर या व्यक्ति वोट देने के बाद दोबारा वोट डालने के लिए दूसरी बार कतार में खड़ा होते कैमरे में कैद हो गया.

ये सब 23 हजार पुलिस कर्मियों की तैनाती के बावजूद हुआ. लेकिन मतदान के दिन कोलकाता पुलिस ने कोई खास कार्रवाई नहीं की और अपराधियों के खिलाफ कम ही एक्शन लिए गए.

ये विडंबना ही है कि TMC, जिसने 25 नवंबर को त्रिपुरा निकाय चुनावों में बड़े पैमाने पर हिंसा और धांधली के लिए बीजेपी पर आरोप लगाया था, उस राज्य में बेहतर तस्वीर पेश नहीं कर सकी जिसमे वो सत्तारूढ़ है.

TMC सांसद और राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी, जब वोट डालने आए. तो उन्होंने आरोपों का जवाब दिया और कहा, “जब वोटों का प्रयोग करने की बात आती है तो त्रिपुरा और बंगाल के बीच नरक और स्वर्ग का अंतर होता है.

“त्रिपुरा में हमने देखा है कि कैसे उम्मीदवारों को खुद वोट देने की अनुमति नहीं थी और यहां लोग खुलेआम लोकतंत्र का त्योहार मना रहे हैं. मैं सार्वजनिक रूप से ऑन रिकॉर्ड कह रहा हूं कि अगर तृणमूल कार्यकर्ता के खिलाफ कोई सबूत है, तो हम सुनिश्चित करेंगे कि उस पर कार्रवाई की जाए”
अभिषेक बनर्जी
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जब पत्रकारों ने केएमसी चुनाव में हिंसा पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सवाल किया तो बनर्जी ने कहा “कोई 144 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ सकता, तो वे नाटक करेंगे. उन्हें नजरअंदाज करना ही बेहतर है. खुशी है कि चुनाव शांतिपूर्ण रहा."

दूसरी तरफ CPI(M) नेता सुजान चक्रवर्ती ने राज्य के प्रशासन और चुनाव आयोग पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में विफल रहने का आरोप लगाया है.

बीजेपी- बंगाल में कम हुई ताकत

इस पूर्वी राज्य में 2021 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी कमजोर हो गई है. हाल ही में हुए उपचुनावों में भगवा पार्टी TMC से सभी 7 सीटों पर हार गई थी.

कार्यकर्ता, नेता, विधायक, सांसद बीजेपी को अधर में छोड़कर जा रहे हैं. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व, जिन्होंने पार्टी की दैनिक गतिविधियों पर लगभग नजर रखी थी और राज्य चुनाव से पहले निर्णय लिए थे, पीछे हाथ खींच चुकी है.

विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों को उम्मीदवार घोषित करने के बाद भी केंद्रीय बीजेपी नेता इस बार केएमसी चुनाव से काफी हद तक दूर रहे. स्मृति ईरानी और गिरिराज सिंह जैसे केंद्रीय मंत्री जो नगर निकाय चुनाव के स्टार प्रचारक थे, वो भी नहीं आए.

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राज्य बीजेपी नेताओं ने भी समान रूप से पार्टी को विफल किया. ऐसे उदाहरण थे जहां भगवा पार्टी के कुछ उम्मीदवारों के पास प्रचार के दौरान नारे लगाने वाले कार्यकर्ता भी नहीं थे. उदाहरण स्वरुप बीजेपी के एक उम्मीदवार ने अपनी पत्नी के साथ अकेले प्रचार किया, क्योंकि कोई भी उनके साथ पीछे शामिल नहीं हुआ.

जहां एक तरफ टीएमसी ने सबसे आक्रामक अभियानों में से एक चलाया, मुख्यमंत्री ने खुद जनसभाएं कीं और भतीजे अभिषेक ने कई रोड शो किए, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने एक कमजोर चुनाव अभियान चलाया. केएमसी चुनाव प्रचार जब चरम पर था, बीजेपी राज्य नेतृत्व सिंगूर में 80 किलोमीटर तक विरोध प्रदर्शन कर रहा था.

लेकिन दूसरी तरफ चुनाव को कोर्ट तक घसीटने में बीजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. चुनाव के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती के लिए बीजेपी ने कलकत्ता हाई कोर्ट का रुख किया.

हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया तो बीजेपी ने डिवीजन बेंच का रुख किया. डिवीजन बेंच ने भी इसे खारिज कर दिया. राज्य बीजेपी ने तब हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

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