कुलदीप बिश्नोई (Kuldeep Bishnoi) ने आखिरकार कांग्रेस (Cingress) का हाथ छोड़कर कमल थाम लिया है. हालांकि इसमें महीनों लग गए, लेकिन फाइनली वो फिर से उस पार्टी में आ गए हैं जिस पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए 2014 में गठबंधन तोड़ा था. दरअसल कुलदीप बिश्नोई का राजनीतिक जीवन भी अपने पिता की तरह ही अलग-अलग पार्टियों और बनते-टूटते गठबंधनों के बीच रहकर ही चला है. कितना चला है वो अलग बात है. बहरहाल अब ऑफिशियली कुलदीप बिश्नोई का हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल (Manohar Lal Khattar) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) में स्वागत कर दिया है.
कुलदीप बिश्नोई के इस फैसले से हरियाणा की राजनीति में तीन सवाल उपजे हैं. पहला कि बीजेपी को कितना फायदा होगा? दूसरा कि कांग्रेस को कितना नुकसान होगा? और तीसरा कि कुलदीप बिश्नोई के हाथ क्या लगा?
दोनों पार्टियों के बीच एक चीज कॉमन है और वो हैं कुलदपीप बिश्नोई तो उनसे ही शुरुआत करते हैं कि कुलदीप बिश्नोई के लिए ये फैसला कैसा है?
कुलदीप बिश्नोई का आगे प्लान क्या है?
कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस छोड़ते ही कहा कि, हुड्डा ने मुझे चुनौती दी थी कि पार्टी छोड़कर दिखाऊं तो मैंने पार्टी छोड़ दी अब मैं उन्हें चुनौती देता हूं कि वो आदमपुर से चुनाव लड़कर दिखाएं. उम्मीद ये की जा रही है कि, आदमपुर से उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई लड़ेंगे. क्योंकि कुलदीप बिश्नोई ने 2019 का लोकसभा चुनाव भी हिसार से भव्य को लड़वाया था लेकिन वो हार गए. इसलिए अपने पारिवारिक गढ़ से कुलदीप बिश्नोई अब भव्य बिश्नोई को राजनीति में उतारना चाहते हैं.
अगर ऐसा होता है तो बहुत मुमकिन है कि कुलदीप बिश्नोई पीछे से ही अपने बेटे को सहारा देते नजर आयें. क्योंकि बीजेपी में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो एक परिवार में दो पद रखते हैं. चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अपने बेटे को लोकसभा का चुनाव लड़वाया था तो पहले मंत्री पद से इस्तीफा दिया था. तो क्या कुलदीप बिश्नोई ने ये मान लिया है कि राजनीति में उनका अब हो गया है और अपने बेटे को वो बची खुची सियासी विरासत सौंप रहे हैं.
फिर भी उनका पहला इम्तिहान आदमपुर विधानसभा उपचुनाव है. जहां सबसे पहले उन्हें जीत हासिल करनी है और खुद को बीजेपी में शामिल करना है. इसके बाद आगे के इम्तिहान हैं.
कांग्रेस को कितना नुकसान?
कुलदीप बिश्नोई अपने बेटे और पत्नी के साथ बीजेपी में शामिल हुए हैं. फिलहाल वो आदमपुर विधानसभा से विधायक थे जहां अब उपचुनाव होना है. कांग्रेस को इस एक सीट का सीधा नुकसान अभी दिख रहा है लेकिन अगर भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस सीट पर कोई उलटफेर करने में सफल रहे तो ये कोई बहुत बड़ा झटका कांग्रेस के लिए नहीं होगा. क्योंकि निकलते वक्त में, और पिछले कुछ चुनावों के नतीजों से ये दिख रहा था कि कुलदीप बिश्नोई का असर आदमपुर तक सीमित हो गया था. हालांकि आदमपुर अभी भी उनका गढ़ ही है. जो 2005 से ही कांग्रेस से दूर रहा, जब से भजनलाल ने कांग्रेस से दूरी बनाई.
सीटों के नजरिए से भले ही ये कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान फौरी तौर पर नजर ना आ रहा हो लेकिन जाट और नॉन जाट के बीच झूलती हरियाणा की राजनीति में कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस को अंदरूनी संतुलन देते थे जो कुमारी सैलजा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने के बाद से डगमगा रहा था. क्योंकि कांग्रेस इस वक्त हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथों में नजर आती है. और इसी बात से कुलदीप बिश्नोई को दिक्कत थी.
कुलदीप बिश्नोई के जाने पर कांग्रेस ने क्या कहा?
कुलदीप बिश्नोई के पार्टी छोड़ने पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष उदयभान ने कहा कि, कुलदीप ने राजनीतिक स्वार्थ, अपरिपक्तवता, आयकर-ईडी की कार्रवाई और दलित विरोधी मानसिकता के चलते कांग्रेस छोड़ने का फैसला लिया है. इस फैसले में दूर-दूर तक जनता, जनहित और विचारधारा नजर नहीं आती.
उन्होंने आगे कहा कि,
बिश्नोई कांग्रेस के भीतर रहकर लगातार उसे कमजोर करने की कोशिशों में लगे हुए थे. पार्टी के भीतर रहकर उसे खोखला करने वाले लोग अगर बाहर जाते हैं, तो इससे संगठन को नुकसान होने के बजाय मजबूती मिलेगी. बिश्नोई के लिए पार्टी छोड़ना, पाला बदलना और अपने बयानों से पलटी मारना कोई नई बात नहीं है.
बीजेपी को कितना फायदा?
हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सियासी धुरी गैर जाट राजनीति पर टिकी है. जिसके अगवा फिलहाल मनोहर लाल खट्टर हैं जो संघ से सीएम की कुर्सी तक पहुंचे हैं तो उनकी ताकत पर किसी को संशय नहीं होना चाहिए. दरअसल पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत से थोड़ा दूर रह गई और बहुत मुमकिन है कि विधानसभा चुनाव से पहले जेजेपी के साथ उनके गठबंधन का भी अंत हो जाये. ऐसे में उन्हें कुछ ऐसे लोगों की जरूरत है जिनके पास अपनी कुछ ताकत हो और 1 और 1 को मिलाकर ग्यारह बना सकें. कुलदीप बिश्नोई वही एक हैं, जिससे बीजेपी ग्यारह बनाने की फिराक में है.
क्योंकि आदमपुर बिश्नोई परिवार का गढ़ और आसपास के कई हलकों में भी थोड़ा बहुत उनका असर है. जिसे बीजेपी अपना बनाने की कोशिश में कदम बढ़ रही है. इसके अलावा बीजेपी की सोच कुलदीप बिश्नोई को राजस्थान में भी इस्तेमाल करने की होगी. क्योंकि बिश्नोई समाज में इनके परिवार का रुतबा है और राजस्थान में करीब 20 सीटों पर बिश्नोई समाज खासा असर रखता है.
कुलदीप बिश्नोई जब बीजेपी में शामिल हुए तो हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टरने कहा कि, कुलदीप बिश्नोई का बिश्नोई सभा में अपना एक स्थान है और वो बिना शर्त बीजेपी में शामिल हुए हैं.
जिस बीजेपी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया उसी पार्टी में क्यों शामिल हुए ?
ये भी एक बड़ा सवाल है कि कुलदीप बिश्नोई जिस पार्टी पर लागातार विश्वासघात का आरोप लगाते रहे उसी में क्यों शामिल हुए. क्योंकि एक वक्त था जब वो बीजेपी के बराबर सामने टेबल पर बैठते थे. इसका जवाब कुलदीप बिश्नोई के सियासी करियर में छिपा है, जो कम ही छपा है.
दरअसल भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई अपने बड़े भाई चंद्रमोहन के राजनीतिक तौर पर हाशिये पर चले जाने के बाद से पिता की विरासत को ढोने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उनका जनाधार लगातार कम हुआ है. एक वक्त में कांग्रेस के लिए प्रदेश में सर्वे सर्वा कहे जाने वाले भजनलाल ने जब 2007 में कांग्रेस छोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाई थी तो 2009 के चुनाव में पार्टी के 6 विधायक जीतकर आये, लेकिन उनमें से पांच कांग्रेस में चले गए. इसके बाद 2009 में भजनलाल का निधन हो गया. दोनों भाइयों में पिता की विरासत के लिए लड़ाई भी हुई लेकिन उसमें कुलदीप बिश्नोई ने आसानी से चंद्रमोहन को मात दे दी.
पार्टी की कमान हाथ में लेने के बाद कुलदीप बिश्नोई ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बड़ी सफलता मिली और कुलदीप बिश्नोई अपने हिस्से में आई दोनों लोकसभा सीटें हार गए. जबकि बीजेपी ने 8 में से 7 सीटें जीती. लिहाजा विधानसभा चुनाव से पहले दोनों पार्टियों के बीच सीटों को लेकर मतभेद हो गए.
दरअसल कुलदीप बिश्नोई कहते रहे कि बीजेपी ने उन्हें आधी सीटें और सीएम पद देने का वादा किया था. लेकिन दोनों का गठबंधन टूट गया. इसके बाद उन्होंने विधानसभा चुनाव के लिए हरियाणा जनचेतना पार्टी से गठबंधन किया. जो उन्हीं कार्तिकेय शर्मा के पिता विनोद शर्मा की पार्टी थी जिनके लिए कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस के खिलाफ राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग की. उनकी पार्टी की इस चुनाव में बुरी तरह हार हुई और दो ही सीटें जीत पाई. वो भी कुलदीप बिश्नोई खुद और उनकी पत्नी विधानसभा पहुंच सके.
लगातार गिरते जनाधार को देखते हुए कुलदीप बिश्नोई ने 6 साल पहले अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया. 2019 में अपने बेटे भव्य बिश्नोई को लोकसभा चुनाव लड़ाया लेकिन हार गए. फिर कांग्रेस की तरफ से वो खुद आदमपुर से विधायक बने. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के साथ उनके पुराने रिश्ते की यादें कुछ अच्छी नहीं रही हैं. इसीलिए शायद उन्हें फैसला लेने में देरी हो रही थी. लेकिन अब वो बीजेपी में आ गये हैं. जाहिर है लगातार गिरते जनाधार ने उन्हें ये फैसला लेने पर मजबूर किया होगा. क्योंकि उनका अपना तो जो होना था वो तो हो चुका अब बेटे का भविष्य दांव पर है.
आदमपुर में बिश्नोई को चुनौती दे पाएंगे हुड्डा?
कुलदीप बिश्नोई ने आदमपुर विधानसभा उपचुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनाव लड़ने की चुनौती दी है. लेकिन ये तय है कि इस उपचुनाव में उम्मीदवार का चयन भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही करेंगे. जिससे एक बात साफ है कि मुकाबला इन दोनों में ही होगा. हां अगर आम आदमी पार्टी ने कोई अच्छा उम्मीदवार ढूंढ लिया तो समीकरण बदल सकते हैं. क्योंकि अभी तक आदमपुर में वोटिंग का एक ट्रैंड दिखता है कि या तो लोग बिश्नोई परिवार के साथ हैं या फिर उनके खिलाफ. और जो ये खिलाफ वाले हैं वो तभी वोट डालने निकलते हैं जब उन्हें लगता है कि सामने वाला उम्मीदवार इस परिवार को टक्कर दे सकता है.
मजे की बात ये भी है कि इस सीट पर करीब 28 हजार बिश्नोई वोटर है और 58 हजार जाट मतदाता फिर भी 1968 से लेकर अब तक भजनलाल परिवार करीब 15 चुनाव यहां से जीत चुका है. हां काग्रेस के लिए एक मुफीद आंकड़े ये हो सकते हैं कि पिछले कुछ चुनावों में आदमपुर से बिश्नोई परिवार की जीत का मार्जन कम हुआ है. जिसे मिडिल में रखकर कांग्रेस पासा पलटने की कोशिश कर सकती है.
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