ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार लोकसभा चुनाव 2024: दूसरे चरण में करीब 59% मतदान- क्या कहते हैं चुनावी पैटर्न?

Bihar Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के पहले चरण में बिहार की 4 लोकसभा सीटों पर 48% मतदान हुआ था.

छोटा
मध्यम
बड़ा

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) के दूसरे चरण का मतदान खत्म हो गया है. बिहार (Bihar) की पांच लोकसभा सीटों- बांका, भागलपुर, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया में वोटिंग हुई. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पांचों सीटों पर शाम 6 बजे तक अनुमानित 58.58 फीसदी मतदान हुआ है. सबसे ज्यादा कटिहार में 64.60 फीसदी और सबसे कम भागलपुर में 51.00 फीसदी मतदान दर्ज किया गया. 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले दूसरे चरण में करीब 4.34 फीसदी कम मतदान दर्ज किया गया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चलिए आपको बताते हैं कि इस वोटिंग पर्सेंटेज के क्या मायने हैं? 2009 से लेकर अभी तक के चुनावों में क्या ट्रेंड दिख रहा है?

बिहार में दूसरे चरण की वोटिंग % पर एक नजर

  • बांका- 54.00%

  • भागलपुर- 51.00%

  • कटिहार- 64.60%

  • किशनगंज- 64.00%

  • पूर्णिया- 59.94%

ये अनुमानित आंकड़े शाम 6 बजे तक के हैं. आगे इसमें बदलाव हो सकता है.

चुनाव में कुल 50 उम्मीदवारों की किस्मत EVM में कैद हो गई है. मुख्य रूप से इन पांच सीटों पर इंडिया और एनडीए गठबंधन के बीच टक्कर है. वहीं किशनगंज और पूर्णिया लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है.

बिहार में पहले चरण में कम वोटिंग के बाद दूसरे चरण में मतदान का ग्राफ ऊपर चढ़ा है. बता दें कि 2019 लोकसभा चुनाव में भी सीमांचल में प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले सबसे ज्यादा मतदान हुआ था.

दूसरे चरण में जिन 5 सीटों पर वोटिंग हुई है, 2019 में इनमें से 4 सीटों पर JDU ने जीत हासिल की थी जबकि किशनगंज पर कांग्रेस का उम्मीदवार जीता था. बिहार की यह अकेली सीट थी जिसपर INDIA ब्लॉक की पार्टी को पिछले चुनाव में जीत हासिल हुई थी.

बिहार में दूसरे चरण में कुल 11 केंद्रों पर मतदान का बहिष्कार किया गया. किशनगंज में 8, भागलपुर में 2 और बांका में 1 सेंटर पर वोटर्स ने मतदान का बहिष्कार किया है.

2009-24 तक कैसा रहा वोटिंग ट्रेंड?

2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार दूसरे चरण में मतदान कम हुआ है. 2019 में जहां 62.92 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था. इस बार सिर्फ 58.58 फीसदी वोटिंग ही हुई है. वहीं 2014 में करीब 62.44% और 2009 में 50.98% वोटिंग हुई थी.

माना जाता है कि कम वोटिंग होने से सत्ता परिवर्तन की संभावनाएं कम हो जाती है. हालांकि, विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि वोटिंग प्रतिशत में भारी गिरावट भी सत्ता पक्ष के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं.

किशनगंज:

मुस्लिम बहुल सीमांचल की तीन सीटों की बात करें तो किशनगंज में इस बार 64.00 फीसदी मतदान हुआ है. 2019 में यहां 66.35 फीसदी वोट पड़े थे, जो कि इस बार तकरीबन 2 प्रतिशत घट गया है. वहीं 2014 में 64.50% और 2009 में 52.80% वोट पड़े थे. 2009 से 2019 के बीच इस सीट पर वोटिंग में इजाफा देखने को मिला था और जीत कांग्रेस प्रत्याशी की हुई थी.

पिछली बार त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया था. इस बार भी यहां त्रिकोणीय मुकाबला है. कांग्रेस के मौजूदा सांसद और प्रत्याशी मोहम्मद जावेद के सामने जेडीयू के मुजाहिद आलम और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM से अख्तरुल ईमान मैदान में हैं.

1998 से इस सीट पर लगातार मुस्लिम प्रत्याशी जीतते आए हैं. 3 बार कांग्रेस, 2 बार RJD और 1 बार बीजेपी को जीत मिली है.

कटिहार:

सीमांचल की इस सीट पर दूसरे चरण में सबसे ज्यादा 64.60 मतदान दर्ज किया गया है. पिछले लोकसभा चुनाव यानी साल 2019 की बात करें तो यहां 67.62% मतदान हुआ था, जो कि इस साल के मतदान प्रतिशत से 3.02 प्रतिशत ज्यादा है.

इस सीट पर भी कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है. मुकाबला मौजूदा सांसद और जेडीयू प्रत्याशी दुलालचंद गोस्वामी और कांग्रेस प्रत्याशी तारिक अनवर के बीच है. गोस्वामी के खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी लहर के कारण जेडीयू के लिए ये सीट बरकरार रखना मुश्किल माना जा रहा है. पार्टी को जहां प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और सवर्ण, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) और गैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के एकीकरण के दम पर जीत की उम्मीद है. वहीं MY यानी मुस्लिम-यादव फैक्टर कांग्रेस का मुख्य आधार मानी जा रही है.

2004 से लेकर अब तक के चुनावों पर नजर डालें तो नतीजों पर वोटिंग का कोई खास असर नहीं दिखता है. बल्कि जब-जब बीजेपी और जेडीयू ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा है तब-तब NDA गठबंधन को जीत मिली है. 2014 में बीजेपी और जेडीयू अकेले मैदान में उतरी थी, तब कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की थी.

पूर्णिया:

बिहार की हॉट सीटों में से एक पूर्णिया सीट पर इस बार 59.94 फीसदी वोटिंग हुई है. 2019 लोकसभा चुनाव में यहां 65.37% मतदान हुआ था, जो 2024 में 5.43 फीसदी घट गया है. वहीं 2014 में 64.50 फीसदी और 2009 में 52.80% वोट पड़ा था.

इस निर्वाचन क्षेत्र में जेडीयू सांसद संतोष कुशवाहा, आरजेडी की बीमा भारती और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस नेता ​​पप्पू यादव के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. 2004 से इस सीट पर बीजेपी और जेडीयू का कब्जा रहा है.

हालांकि, इस बार मुकाबला इस बात पर टिका है कि पप्पू यादव कैसा प्रदर्शन करते हैं और क्या वह RJD या जेडीयू को नुकसान पहुंचा पाते हैं. कुशवाहा के लिए चुनौती EBC-महादलित वोटों को अपने पक्ष में एकजुट करने की है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

बांका:

यह सीट दो यादवों की लड़ाई का गवाह बन रहा है. जेडीयू के मौजूदा सांसद गिरिधारी यादव को आरजेडी के जयप्रकाश नारायण यादव से चुनौती मिल रही है. इस बार यहां 54.00 फीसदी मतदान दर्ज किया गया है, जो कि 2019 के मुकाबले 4.60 फीसदी कम है. पिछली बार यहां 58.60% मतदान हुआ था.

गिरधारी यादव को एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें सवर्णों का भी एक वर्ग शामिल है. उच्च जातियों से समर्थन नहीं मिलने वाले अपने बयान और महागठबंधन का हिस्सा रहते हुए RSS विरोधी बयानों से उन्हें नुकसान हो सकता है. जेडीयू के कुछ स्थानीय विधायक भी उनके अभियान से दूर रहे हैं.

भागलपुर:

दूसरे चरण में बिहार की इस सीट पर सबसे कम 51.00 फीसदी मतदान हुआ है. 2019 में यहां 57.17 पर्सेंट वोट पड़े थे, जो कि इस बार 6.17 फीसदी घट गया है. इस सीट पर कांग्रेस के अजीत शर्मा और मौजूदा जेडीयू सांसद अजय मंडल के बीच मुकाबला है.

इस सीट के चुनावी पैटर्न पर नजर डालें तो पिछले 4 चुनावों में जब भी बीजेपी-जेडीयू साथ-साथ चुनाव लड़ी है तो जीत NDA की हुई है.

हालांकि, इस बार भूमिहार समुदाय से आने वाले अजीत शर्मा, जो वर्तमान में भागलपुर के विधायक भी हैं, उनके मैदान में उतरने से NDA के पारंपरिक वोटर्स माने जाने वाले सवर्ण वोटों के बंटने की संभावना है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×