मध्य प्रदेश में दस महीने में लगातार चार उपचुनाव में जीत. कांग्रेस को लगने लगा है कि 15 साल बाद सरकार में उसकी वापसी की दस्तक है. राज्य में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं इसलिए 9 महीने पहले कोलारस और मुंगावली विधानसभा उपचुनाव को दोनों पार्टियों ने नाक का सवाल बना लिया था. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके करीब 20 मंत्री और 32 विधायकों के डेरा जमाने के बाद बीजेपी नहीं जीत पाई. मुख्यमंत्री संतुष्ट हैं कि कांग्रेस की मजबूत सीटें थीं बीजेपी को कोई नुकसान नहीं हुआ.
इन उपचुनाव में उम्मीदवार भले दूसरे रहे हों पर असली मुकाबला तो मुख्यमंत्री चौहान और कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच ही था. कांग्रेस जीत तो गई पर अगर इस भरोसे वो अगले विधानसभा चुनाव में जीत की उम्मीद कर रही है तो ये उसका ओवरकॉन्फिडेंस है क्योंकि दोनों की जीत का अंतर बहुत भरोसे वाला नहीं है.
कांग्रेस इसे झटका ही माने!
बारीकी से देखा जाए कांग्रेस को इस जीत से ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. दोनों सीटों में उसके उम्मीदवारों की जीत के अंतर में भारी कमी आई है. बल्कि बीजेपी के वोट बढ़ गए हैं. दोनों सीटों पर कांग्रेस विधायकों के निधन की वजह से उपचुनाव कराए गए थे.
मुंगावली से कांग्रेस उम्मीदवार बृजेन्द्र सिंह यादव ने बीजेपी प्रत्याशी बाई साहब यादव को सिर्फ 2124 मतों के अंतर से हराया. जबकि 2013 में कांग्रेस 20,765 वोटों से जीती थी यानी जीत का अंतर 18,000 कम हो गया. यही हाल कोलारस उपचुनाव का रहा जिसमें से कांग्रेस उम्मीदवार महेन्द्र सिंह यादव ने देवेन्द्र जैन को 8083 वोटों से हराया. लेकिन 2013 में कांग्रेस ने ये सीट 24,943 वोटों से जीती थी.
कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र गुना में दोनों विधानसभा क्षेत्र हैं. ऐसे में ये चुनाव सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा का सवाल थे. 15 साल से दोनों सीटों में कांग्रेस की पकड़ मजबूत रही है. ज्योतिरादित्य सिंधिया कई बार इशारों इशारों में कह चुके हैं कि वो मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सीएम कैंडिटेड बनने को तैयार हैं. इसलिए उपचुनाव में उन्होंने अपनी पूरी ताकत भी झोंक दी थी.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव समेत कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं ने प्रचार में खुलकर हिस्सा नहीं लिया था.
जीत से गदगद कांग्रेस
कांग्रेस इस जीत से गदगद है. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस जीत पर कार्यकर्ताओं को बधाई दी है. लेकिन अंदर की बात वो भी जानते हैं कि मध्यप्रदेश में बीजेपी को हराने का रास्ता कांग्रेस के लिए कतई आसान नहीं है. और इन जीत को भरोसे की गारंटी ना माने.
ऐसे में ये परिणाम निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी खतरे की घंटी की तरह है कि वो ये ना माने की विधानसभा चुनाव में जीत अपने आप उसके हिस्से में आने वाली है.
राजस्थान और मध्यप्रदेश का हाल एकदम अलग लग रहा है. राजस्थान में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट तीनों बीजेपी के पास थीं. लेकिन कांग्रेस ने तीनों सीटें भारी अंतर के साथ जीतीं यानी वहां साफ लग रहा है कि बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस मजबूत हो रही है.
लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस की ही सीटें थीं फिर भी उसकी जीत के अंतर में भारी कमी खतरे का संकेत है. कांग्रेस को इसे सबक के तौर पर देखना चाहिए.
बीजेपी के लिए भी अलर्ट
यह बात सही है कि, यह दोनों विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के कब्जे वाले रहे हैं, साथ ही ये सीटें सिंधिया के संसदीय क्षेत्र में आते हैं. उसके बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री चौहान और संगठन ने जीत के लिए किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी. लगभग पूरा मंत्रिमंडल और संगठन के पदाधिकारी कई-कई दिन तक यहां डेरा डाले रहे.
मुख्यमंत्री चौहान ने लगभग हर सभा के दौरान दोनों जगहों के मतदाताओं से पांच महीने के लिए बीजेपी का विधायक मांगा और वादा पूरे न करने पर अगले चुनाव में नकार देने तक की बात कही, मगर जनता का उन्हें साथ नहीं मिला.
किसान अभी भी नाराज
चुनाव नतीजों पर राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस ने कहा कि ये उप-चुनाव हर मायने में प्रदेश सरकार के लिए अहम थे, क्योंकि पिछले दिनों मंदसौर में किसानों पर गोली चलने की घटना के बाद से जगह-जगह किसान आंदोलन चल रहे हैं.
अगर बीजेपी जीत हासिल करती तो यह माना जाता कि शिवराज का करिश्मा अब तक बरकारार है, मगर ऐसा नहीं हुआ. उप-चुनाव के नतीजों से बीजेपी और सरकार को यह इशारा जरूर मिला है कि आने वाला समय उनके लिए बहुत अच्छा नहीं है.राजनीतिक विश्लेषक शॉजी थॉमस
इस उपचुनाव से एक संदेश साफ जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार को मास्टर स्ट्रोक की तलाश रहेगी. वहीं कांग्रेस को भी और मेहनत की जरूरत पड़ेगी.
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(इनपुटः IANS)
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