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Elections: क्या कल्याणकारी योजनाएं महिला वोटर्स पर असर डालती हैं, Exit Polls क्या कहते हैं?

Exit Polls से पता चलता है कि विधानसभा चुनावों में महिलाएं और पुरुष अलग-अलग तरीके से वोट करते हैं. आंकड़े कितने महत्वपूर्ण हैं?

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क्या महिलाओं (Women Voters) को ध्यान में रखकर बनाई गई योजनाएं चुनावों में उनके वोट डालने के तरीके में बदलाव लाती हैं? अगर पांच राज्यों (5 States Election Results) के चुनावों में हुए मतदान के बाद एग्जिट पोल का डेटा देखें तो ऐसा ही लगता है.

इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया का डेटा कहता है,

  • मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को वोट देने वाली महिलाओं की संख्या 50 फीसदी तक है. वहीं, सिर्फ 40 फीसदी महिलाओं ने कांग्रेस को वोट दिया.

  • छत्तीसगढ़ में 43 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी को और 41 फीसदी महिलाओं ने मौजूदा कांग्रेस पार्टी को वोट दिया है.

  • जो आंकड़े सामने आए हैं, उससे पता चलता है कि केवल राजस्थान में कांग्रेस को वोट देने वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा है. 44 फीसदी महिलाओं ने कांग्रेस को वोट दिया है, जबकि 40 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया है.

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एग्जिट पोल के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 50 फीसदी महिलाओं और 44 फीसदी पुरुषों ने बीजेपी को वोट दिया, लेकिन इसके अलावा बाकी जगह अनुमानित वोट शेयर के बीच ज्यादा अंतर नहीं है.

छत्तीसगढ़ में पुरुषों और महिलाओं के वोट शेयर के बीच अंतर बीजेपी के लिए चार प्रतिशत और कांग्रेस के लिए दो प्रतिशत है. राजस्थान के लिए भविष्यवाणियां इसके विपरीत हैं.

तो, इस अनुमानित वोट शेयर के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?

महिलाओं के वोट करने का तरीका क्यों मायने रखता है?

राजनीतिक दल चुनावों के दौरान महिला मतदाताओं को लुभाते रहे हैं, क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में महिलाएं ही किंगमेकर रही हैं.

विश्व स्तर पर राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर नजर रखने वाली संस्था वुमेनलीड की क्यूरेटर अक्षी चावला कहती हैं,

“चुनावों के दौरान महिला मतदाताओं को निशाना बनाना राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आम होता जा रहा है, और ये एक नंबर गेम है. पहले, मतदान प्रतिशत में लिंग अंतर होता था, लेकिन अब वह अंतर न केवल समाप्त हो गया है, बल्कि कुछ राज्यों में अब पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाएं मतदान के लिए सामने आ रही हैं."

मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में पूरे राज्य में 74 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया.

उसी साल राजस्थान में 74.66 प्रतिशत महिलाएं मतदान करने के लिए मतदान केंद्रों पर गईं और राज्य में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया. महिलाओं का मतदान प्रतिशत राज्य के कुल मतदान प्रतिशत से भी ज्यादा था, जो 74.21 प्रतिशत दर्ज किया गया.

राजनीतिक टिप्पणीकार और 'पॉलिटिकल शक्ति' के सह-संस्थापक तारा कृष्णास्वामी द क्विंट से बातचीत में कहती हैं,

"सर्वे के आंकड़े सटीक हैं या नहीं, हमें तभी पता चलेगा जब चुनाव परिणाम आ जाएंगे, लेकिन जिस तरह से महिलाओं ने ऐतिहासिक रूप से मतदान किया है उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि वो निश्चित रूप से दिए गए लाभों को देखती हैं जो सिर्फ कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित नहीं है- महिला सुरक्षा, रहने योग्य वातावरण और उनके परिवारों के लिए गरीबी उन्मूलन."

कृष्णास्वामी आगे कहती हैं, "कल्याणकारी योजनाएं एक पहलू होंगे, लेकिन महिलाएं केवल वादों के बजाय उन्हें क्या दिया गया है, उसके आधार पर वोट देती हैं. मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों में, हम जानते हैं कि सरकारें कल्याणकारी योजनाओं पर काम कर रही हैं. हमें ये जानने के लिए कि योजनाओं ने किस तरह से सरकार के फायदे के लिए काम किया, नतीजों का इंतजार करना होगा."

कृष्णास्वामी जो कहती हैं, वो सच है. पिछले एक साल में, मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों में राजनीतिक दलों ने आक्रामक रूप से प्रचार किया है और अपने घोषणापत्रों में महिला वेलफेयर से जुड़े वादे किए हैं.

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लेकिन अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी...

लेकिन राजनीतिक टिप्पणीकार भी अभी इन आंकड़ों से सावधान हैं. चावला का मानना ​​है कि पुरुष और महिला मतदाताओं के बीच संख्या में अंतर "महत्वपूर्ण" नहीं है.

“हमारे पास ये समझने के लिए कोई पैमाना नहीं है जिसके आधार पर हम कह सकें कि ये कल्याणकारी योजनाएं ही महिलाओं को प्रभावित कर रही हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि पुरुषों और महिलाओं के मतदान पैटर्न के बीच अंतर बहुत कम है. 1-2 प्रतिशत का अंतर हमेशा सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है और हमने देखा है कि महिलाएं एकतरफा वोट नहीं करती हैं."
अक्षी चावला

चावला बताती हैं कि खास तौर पर छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पुरुषों और महिलाओं के वोट शेयरों के बीच इतना छोटा अंतर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं है, इसलिए 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम आने तक कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता.

तारा कृष्णास्वामी भी इससे सहमत हैं. वो द क्विंट से कहती हैं कि ऐतिहासिक रूप से, कई राज्यों में, महिलाओं ने जाति, धर्म, पारस्परिक विचारों से परे वोट दिया है- लेकिन ऐसा हमेशा से हुआ है जब उन्हें फायदा पहुंचाया गया हो.

वह कहती हैं, "लेकिन हर चुनाव में ऐसा नहीं होता, क्योंकि जनसांख्यिकीय और आपस में जुडे मुद्दे मायने रखते हैं."

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हालांकि, चुनाव विश्लेषक और लोकनीति के सह-निदेशक संजय कुमार का मानना ​​है कि जनसांख्यिकी के मामले में ऐसा नहीं हो सकता है. द क्विंट के साथ 2022 के एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था,

“जब बेरोजगारी की बात आती है, जब कीमतों में बढ़ोतरी की बात आती है, तो हमने देखा है कि कुछ अलग पैटर्न है. बेरोजगारी, महंगाई, रोजमर्रा की जरूरतें- इनके लिए महिलाओं में चिंता कहीं ज्याजा है.”

हालांकि, जैसा कि चावला कहती हैं, इस पर और ज्यादा शोध किए जाने की जरूरत है कि महिलाएं कैसे मतदान कर रही हैं, कौन सी योजनाएं या आकांक्षाएं उन्हें अपने पसंदीदा उम्मीदवारों और पार्टियों को तय करने में मदद कर रही हैं, और महिलाओं को क्या चाहिए और राजनीतिक दल क्या सोचते हैं कि महिलाओं को क्या चाहिए, इस अंतर को कैसे पाटना है.

"इसमें से बहुत सारा डेटा सर्वेक्षणों और रिपोर्टिंग से आ सकता है, लेकिन बेहतर समझ के लिए हमें इसकी ज्यादा जरूरत है."
द क्विंट से अक्षी चावला

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनाव परिणाम 3 दिसंबर को आएंगे, जबकि मिजोरम के नतीजे अगले दिन 4 दिसंबर को आएंगे.

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