ADVERTISEMENT

मध्य प्रदेश: BJP एक्टिव तो कांग्रेस खुद में उलझी, छोटी पार्टियों से किसे नुकसान?

MP Election: CM चौहान ने अपने आप को योगी स्टाइल का नेता बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, इसका खमियाजा उठाना पड़ेगा?

मध्य प्रदेश: BJP एक्टिव तो कांग्रेस खुद में उलझी, छोटी पार्टियों से किसे नुकसान?
i

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Election 2023) की तारीख नजदीक आ रही है. ऐसे में प्रदेश के नेता एक्टिव होते दिख रहे हैं. कांग्रेस के दिग्विजय सिंह क्षेत्रों का दौरा कर कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं तो वहीं सीएम शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) घोषणाओं का पिटारा खोले हुए हैं. रेस में शामिल आम आदमी पार्टी और मध्यप्रदेश में अब लगभग हर आदिवासी और दलित प्रभाव की सीटों पर दबदबा बना चुकी JAYS (जय आदिवासी युवा शक्ति) और कुछ जिलों में सीमित लेकिन असरदार होने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी टक्कर देने को तैयार हैं. ऐसे में समझते हैं कि आखिर छोटी पार्टियों का बीजेपी और कांग्रेस के वोट बैंक पर क्या असर पड़ेगा?

ADVERTISEMENT

शिवराज सिंह चौहान के लिए क्या मुश्किल?

2020 में कथित तौर पर चुराई हुई सरकार के मुखिया बने शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव सीधे तौर पर आसान होता नहीं दिख रहा है. कोरोनाकाल के बाद से ही चौहान ने अपने आप को योगी स्टाइल का नेता बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन बीते कुछ महीनों से वो आक्रामक रवैया अपनाए हुए थे, लेकिन अब गाड़ दूंगा वाली भाषा, बुलडोजर एक्शन सब कुछ अचानक से गायब सा होता दिख रहा है.

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि शिवराज को यह गलती भारी पड़ सकती है. यहां तक कि पार्टी सूत्रों की भी मानें तो शिवराज को मध्य प्रदेश का योगी बनने की कोशिश के चलते नुकसान हो सकता है.

पार्टी सूत्रों ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान कभी भी उग्र नेता नही रहे. वो जन के नेता थे और हैं और शायद इसीलिए भी जनता के लिए वो पसंदीदा रहे. मध्यप्रदेश में कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो कट्टरपन की राजनीति ने हमें नुकसान पहुंचाया है और बुलडोजर नीति ने मुख्यमंत्री की छवि पर चोट किया है.

सिर्फ इतना ही नहीं, बीजेपी में भी अंतर्कलह देखने को मिलता है. पार्टी सूत्रों की ही मानें तो इस बार शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनाव लड़ने में कई नेता असहज थे, वहीं दूसरी ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हैं और चुनाव के पहले वो भी काफी एक्टिव हैं. हालांकि बीजेपी ने अभी तक तो शिवराज को ही चेहरा बनाने की कवायद दिखाई है लेकिन पार्टी में कब क्या हो और दिल्ली में बैठे लोग किस करवट बैठें ये तय करना मुश्किल है.

ADVERTISEMENT

कुछ तो यह भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि चुनाव के पहले न सही तो चुनाव के बाद ही कुछ न कुछ बदलाव तो होगा.

ये तो रही मुखिया की बात. हलचल विधायकों में भी है क्योंकि हाल ही में हुई विकास यात्रा में दर्जनों नेताओं और मंत्रियों के क्षेत्रों से पॉजिटिव खबर नही आई है. लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा है. कई तो भगाए भी गए हैं ऐसे में गुजरात मॉडल यानी की जमे जमाए नेताओं का पत्ता कटने की बात को जोर मिला है.

पार्टी सूत्रों ने द क्विंट से कहा था कि

"सबको लग रहा है विकास यात्रा में बीजेपी की किरकिरी हो रही है, जबकि ऐसा नही है. हमें यह समझ में आ जा रहा है कि कौन कितने पानी में है और इसके बाद सर्जरी करने में आसानी होगी. लोग बीजेपी से नाराज नहीं हैं लोग नाराज हैं अपने प्रतिनिधि से और लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए 35-40 लोगों का टिकट कट सकता है."

कांग्रेस घरेलू समस्या में उलझी हुई है

चुनाव को लेकर बीजेपी, कांग्रेस से ज्यादा एक्टिव दिख रही है. मुख्यमंत्री घुटनों के बल बैठकर महिलाओं के लिए रुपए पैसे की स्कीम लॉन्च कर रहे हैं, आदिवासियों को लुभाने के लिए हर तरह के प्रयास किए जा रहे हैं तो वहीं कांग्रेस न सदन में न ही सदन के बाहर बीजेपी को किसी मुद्दे पर घेरने में सफल होती नहीं दिख रही है.

ADVERTISEMENT

पूर्व मंत्री जीतू पटवारी के सदन से निलंबन के बाद शुरुआती जोश दिखा लेकिन उसके बाद सब हल्के पड़ गए. इसमें भी पार्टी में भंग हुई एकजुटता का नमूना दिखता है. जहां बीजेपी सर्जरी और ऑपरेशन की बात कर रही हैं वहीं कांग्रेस अभी घरेलू समस्याओं में उलझी हुई है.

हमने जब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से बात की तो ये निकलकर आया कि चुनावी मोड में कांग्रेस की गाड़ी अभी चल ही नही पाई है. भोपाल में एक कार्यकर्ता ने कहा कि कांग्रेस आज भी एकजुट होकर चुनाव लड़ती हुई नही दिख रही है.

कांग्रेस कार्यकर्ता ने कहा,

"सारे महारथी हैं. सबके गुट बने हुए हैं अंदर ही अंदर एक दूसरे से मनमुटाव है और ये सब हम कार्यकर्ताओं तक निकलकर आता है और इससे हमारा भी मनोबल चुनाव को लेकर टूटता है. उदाहरण के लिए अगर कमलनाथ, दिग्विजय, अरुण यादव, सुरेश पचौरी और अन्य नेता एकजुट नही होंगे तो चुनाव कांग्रेस कैसे लड़ेगी?"

कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए प्रदेश में अपना वर्चस्व बढ़ाती JAYS और GGP जैसी पार्टियां और संगठन भी बढ़ती हुई मुश्किलों का उदाहरण हैं, लेकिन कार्यकर्ता कह रहे हैं आलाकमान एक गाड़ी में बैठा हुआ लगता ही नहीं है.

आपसी कलह से जूझती हुई कांग्रेस क्या JAYS और GGP को साध पाएगी ? या बीजेपी इनको अपने गुट का बनाएगी. ये सवाल कई लोगों के मन में जस का तस बना हुआ है.

ADVERTISEMENT

मध्य प्रदेश की 80 सीटों पर आदिवासी निर्णायक वोट, 47 रिजर्व और इनपर पैठ बनाती हुई JAYS

पिछले विधानसभा चुनावों में हार-जीत के अंतरों की बात करें तो

  • 1,000 वोट से कम अंतर वाली 10 सीटें

  • 2,000 वोट से कम अंतर वाली 18 सीटें

  • 3000 वोट से कम अंतर वाली 30 सीटें

  • 5000 वोट से कम अंतर वाली 45 सीटें

गौरतलब है कि 1000 से कम वोटों के अंतर से जीतने वाली 10 सीटों में से 7 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी और 3 सीटें बीजेपी के पास. अब ऐसे में 80 सीटों पर (जहां आदिवासी वोटर निर्णायक है) अपना दबदबा बढ़ाने वाली JAYS के लिए तो ही खुशखबरी है लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनो के लिए ये मुसीबत बन सकती है.

धार जिले की मनावर विधानसभा से कांग्रेसी विधायक हीरालाल अलावा की अगुवाई में बना संगठन जयस (JAYS) राजनीतिक बिसात में कुछ ऐसे मोहरों का मालिक है, जिनकी मदद से कांग्रेस ने 2018 में विधानसभा चुनाव जीता था और बीजेपी को हार मिली थी. JAYS जो कि 2018 विधानसभा चुनावों में मालवा निमाड़ के क्षेत्र में मजबूत मानी जा रही है आज उसकी पहुंच आदिवासी बाहुलता लगभग हर सीट पर निर्णायक है.

जयस के पास खोने के लिए कुछ नहीं, वोटरों के पास भी खोने के लिए कुछ नहीं, ऐसे में जयस और प्रबल प्रतिद्वंदी बनता है.

ADVERTISEMENT

राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जयस को अगर कांग्रेस साधने में सफल होती है तो कांग्रेस के लिए फायदा होगा, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर बीजेपी और कांग्रेस दोनो को ही नुकसान झेलना पड़ेगा, क्योंकि 80 सीटों का निर्णय अधर में लटक जाएगा.  

"इस बार के चुनाव बहुत दिलचस्प होंगे. बीजेपी की एंटी इनकंबेंसी, कांग्रेस का विक्टिम कार्ड और इन सबके बीच नए ऑप्शन के तौर पर उभरे जयस के चलते मुकाबला कई सीटों पर त्रिकोणीय होगा"

मध्य प्रदेश के सीधी से लेकर छिंदवाड़ा तक के इलाकों में GGP भी अपना दबदबा बनाए हुए है. मध्यप्रदेश के सीधी से लेकर छिंदवाड़ा तक लगभग 4 जिलों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी थर्ड फ्रंट बनने की कोशिश कर रही है. इसकी सक्रियता भी चुनाव भी कांग्रेस और बीजेपी के लिए सिरदर्द बनेगी. निकाय चुनाव में महाकौशल क्षेत्र में पार्टी ने अच्छे परिणाम दिए है यानी की विधानसभा चुनावों में इनको कमतर आंकना एक गलती होगी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×