महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस की जंबो कार्यकारिणी में 190 सदस्यों को शामिल किए जाने के बावजूद पार्टी नेताओं में नियुक्तियों को लेकर नाराजगी देखने को मिल रही है. आरएसएस से जुड़े लोगों को कार्यकारिणी में जगह देने से पार्टी में असंतोष है. साथ ही कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर करीबी लोगों को पद पर बिठाने से नाराज राज्य के तमाम नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले से शिकायत की है.
दरअसल, पहली बार प्रदेश कांग्रेस ने इतनी बड़ी कार्यकारिणी का ऐलान किया है. जिसमें 18 उपाध्यक्ष, 65 महासचिव, 104 सचिव और 6 प्रवक्ता शामिल हैं. लेकिन फिर भी पार्टी में हो रही गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही. आने वाले निकाय चुनावों में इस नाराजी का परिणाम न भुगतना पड़े, इसलिए प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने हल निकालने के लिए दिल्ली का रुख किया था. लेकिन उनकी पार्टी के आलाकमान से मुलाकात नहीं हो पाई है.
जंबो कार्यकारिणी का क्या है मकसद ?
महाराष्ट्र में तीन पार्टियों के गठबंधन की सरकार की वजह से पार्टी कैडर को सही तरीके से प्रतिनिधत्व नहीं मिल रहा है. महाराष्ट्र में सत्ता में होने के बावजूद सिर्फ स्थापित नेता और पार्टी के दिग्गजों को ही लाभ का पद नसीब हुआ है. कार्यकर्ताओं में आज भी वंचित होने की भावना है.
ऐसे में आने वाले चुनाव खुद के बल पर लड़ने के लिए कैडर को मोटिवेशन की जरूरत है. इसीलिए जंबो कार्यकारिणी के जरिए प्रमुख कार्यकर्ताओं को पार्टी में स्थान देने की कवायद शुरू है. लेकिन कार्यकारिणी में अपने कार्यकर्ताओं को स्थान देने में भी इन आला नेताओं में रस्साकशी शुरू है. ऐसे में पार्टी संगठन में बात बनने की बजाय बिगड़ती नजर आ रही है.
नाराजगी की जड़ क्या?
कांग्रेस कार्यकारिणी में दो नाम ऐसे हैं जो कई लोगों को खटक रहे हैं. इसमे पहला नाम है अभय पाटिल और दूसरा है अजित आप्टे. दोनों का इतिहास आरएसएस से जुड़ा है. जिसे लेकर पार्टी मे असंतोष फैला है.
अकोला से आने वाले अभय पाटिल को कांग्रेस का महासचिव बना दिया गया है. अभय पाटिल विश्व हिंदू परिषद में संघटक की तौर पर काम करते थे. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ के कार्यक्रमों में उन्होंने मंच भी साझा किया है. 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मराठा उम्मीदवार की तौर पर तैयारी भी शुरू कर दी थी, लेकिन पाटिल ने तकनीकी कारणों से टिकट नहीं मलने का दावा किया.
अभय पाटिल का कहना है कि, "उनके पिता संघ से जुड़े थे लेकिन पिछले 10 सालों से उन्होंने संघ से नाता तोड़ दिया है. संघ की, जातिवादी विचारधारा से ऊब कर उन्होंने ये फैसला लिया था. साथ ही उनका दावा है कि गोलवलकर और हेगड़े भी पहले लोकमान्य तिलक के साथ कांग्रेस का हिस्सा थे. लेकिन गांधी के विरोध के कारण वो अलग हो गए. इसलिए विचारधारा के कारण कई लोग राजनीतिक पार्टियां बदलते आ रहे हैं. कांग्रेस में विरोध होता तो उन्हें महासचिव पद नहीं दिया जाता."
इसके अलावा पुणे से अजित आप्टे भी महासचिव बने हैं. पुणे की पूर्व मेयर मुक्ता तिलक के वो किरीबी माने जाते थे. लेकिन कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि पुणे में लोकसभा में चुनाव लड़े मोहन पाटिल का काम भी आरएसएस के लोगों द्वारा देखा गया था. ऐसे में अजित आप्टे को कार्यकारिणी में जगह मिलना को बड़ी बात नहीं मानना चाहिए.
क्विंट ने प्रदेश के अध्यक्ष नाना पटोले से भी नाराजगी के बारे में पूछा. पटोले का कहना है कि कांग्रेस में आरएसएस से जुड़े लोगों का आना कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी इस तरह की नियुक्तियां हुई हैं. वो खुद बीजेपी का सांसद पद छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं. इसीलिए ये विचारधारा की लड़ाई है. देश में चल रहे दमन के खिलाफ आवाज उठाने वाले कांग्रेस में आना चाहते हैं तो ये इसका स्वागत करना चाहिए.
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