महाराष्ट्र की राजनीति में करीब 4 साल पीछे मुड़कर देखेंगे तो पाएंगे कि विधानसभा चुनाव के बाद अजित पवार ने ही पहली बार बगावत की थी और देवेंद्र फणडवीस के साथ मिलकर डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी. हालांकि, उस वक्त राजनीति के चाणक्य (शरद पवार) ने तुरंत मोर्चा संभालते हुए ऑपरेशन लोटस को फेल कर दिया था, लेकिन इस बार चुक गए. उनको भनक तक नहीं लगी. शरद पुणे में थे और अजित पवार राजभवन पहुंचे गए. शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बन गए, उनके साथ 8 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ले ली. आनन-फानन में शरद पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि ये अजित पवार का निजी फैसला है, NCP से उसका कोई लेना-देना नहीं है.
"कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया था कि महाराष्ट्र के मुख्य सहकारी बैंक में भारी भ्रष्टाचार है. आज एनसीपी नेता जो बीजेपी सरकार में शामिल हुए हैं, क्या अब उनका भ्रष्टाचार साफ हो गया है और मैं इसके लिए पीएम को धन्यवाद देता हूं."शरद पवार, NCP चीफ
इस दौरान शरद पवार ने ये भी कहा कि मुझे ममता बनर्जी, मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी समेत विपक्ष के कई नेताओं का फोन आया, वह सभी हमारे साथ हैं.
महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम पर विपक्ष ने केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा. कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि "महाराष्ट्र में बीजेपी का डर्टी ट्रिक्स विभाग जोर-शोर से काम कर रहा है. यह वैध रूप से चुनी गई सरकार नहीं है, बल्कि ED सुविधा प्राप्त सत्ता हथियाने वाली सरकार है. महाराष्ट्र सरकार भ्रष्टाचार और पाप की उपज है. जनता ने महाराष्ट्र के गद्दार, भ्रष्ट और समझौतावादी नेताओं को अच्छी तरह से पहचान लिया है और अगले चुनाव में उनमें से प्रत्येक को सबक सिखाया जाएगा."
"प्रधान मंत्री मोदी ने 29 जून को भ्रष्टाचार के बारे में बात की थी, ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने वॉशिंग मशीन चालू कर दी है और ये नेता इस शपथ ग्रहण समारोह के बाद अब बिल्कुल साफ हो गए हैं."
वहीं, अखिलेश यादव ने महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम को लेकर ट्वीट किया कि "राजनीति की गणित अलग होती है, यहां किसी का जुड़ना सदैव ताकत का बढ़ना नहीं होता बल्कि जो ताकत थी, उसको बांटने के लिए एक और हिस्सेदार का बढ़ जाना होता है. ये कमजोरी के बढ़ने का प्रतीक भी होता है."
अजित पवार के साल 2019 और 2023 के बगावत में अंतर
साल 2019 में जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आए तो राज्य में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी थी. शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ी बीजेपी सरकार बनाने के लिए तैयारी थी. लेकिन, अचानक शिवसेना ने बीजेपी के सामने सीएम पद की शर्त रख दी.
जानकारों का कहना है कि शिवसेना ने ढाई-ढाई साल की शर्त के साथ बीजेपी को समर्थन देने की बात कही, लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी. कुछ जानकारों का कहना है कि बाद में बीजेपी आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद बात भी बनी, लेकिन शिवसेना पहला टर्म चाहती थी. इसके बाद बात बिगड़ती गई.
उधर, शरद पवार के नेतृत्व में कांग्रेस महाराष्ट्र की राजनीति को बदलने के लिए तैयार थी. वह उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद देने के लिए राजी हो गई. अंदर ही अंदर शरद पवार ने सारी रणनीति तैयार कर दी थी. सबके हिस्सेदारी की बात हो रही थी.
इन सबके बीच देवेंद्र फडणवीस ने भी अजित पवार को साधने की कोशिश की और उनसे संपर्क किया. अजित पवार ने NCP के विधायकों की मीटिंग बुलाई और उनका हस्ताक्षर लिया. NCP विधायकों का हस्ताक्षर लेकर देवेंद्र फणडवीस के पास पहुंचे. तड़के सुबह देवेंद्र फणडवीस, अजित पवार को लेकर महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास राजभवन पहुंचे और खुद सीएम और अजित पवार को डिप्टी सीएम पद की शपथ दिलाई.
जब ये खबर मीडिया में आई तो विपक्ष के साथ मिलकर बीजेपी को सत्ता से बाहर करने की तैयारी कर रहे शरद पवार के पैरों तले जमीन खिसक गई. हालांकि, शरद पवार ने बयान जारी कर कहा कि NCP के सभी विधायक उनके साथ हैं, अजित पवार के साथ उनके अलावा कोई विधायक नहीं है.
खैर, साल 2019 में शरद पवार ने ऑपरेशन लोटस को फेल कर दिया. और MVA के बैनर तले महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बनी.
हालांकि, उस समय अजित पवार को आत्मविश्वास था कि उनके निर्णय पर चाचा मुहर लगा देंगे, इसलिए उन्होंने बगावत तो की लेकिन पार्टी पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं किया.
लेकिन, इस बार की स्थिति बिल्कुल उलट है. उन्होंने सिर्फ बगावत नहीं की है, बल्कि पार्टी पर दावा ठोक दिया है. इससे NCP में दो फाड़ हो गया है. इतना ही नहीं इस बार अजित पवार ने 'फुलप्रूफ' रणनीति के तहत कदम उठाया है.
उन्होंने शरद पवार के करीबी और NCP के बड़े नेताओं को अपने कॉन्फिडेंस में लिया और शरद पवार के खिलाफ लाने में सफल हुए. उन्होंने शरद पवार के करीबी छगन भुजबल से लेकर कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और धनंजय मुंडे सरीखे नेताओं को भी अपने खेमे में शामिल कर लिया है.
बहरहाल, अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति में चाचा शरद पवार को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा, क्योंकि शरद पवार कह चुके हैं कि लोगों को भूल है कि पार्टी उनकी है. उन्होंने कहा कि...
"ये मेरे साथ कोई नया नहीं है. 1986 में चुनाव के बाद मैं कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व कर रहा था. उस वक्त 58 में से 6 को छोड़कर सभी पार्टियां साथ छोड़ चुकी थीं. मैं उस 58 में विपक्ष का नेता था. मैंने पार्टी बनाने के लिए पूरे महाराष्ट्र का दौरा किया. एक पार्टी बनाने का निर्णय लिया. चुनाव होने पर यही संख्या 69 हो गई."
ऐसे में ये देखना होगा कि सियातस के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार अपने ही भतीजे की बगावत से कैसे उबरते हैं?
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