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महाराष्ट्र: 37 विधायक टूटे तो दल बदल कानून से बचेंगे, सरकार बनाने का पूरा गणित?

महाराष्ट्र में राज्यसभा और विधान परिषद के नतीजे सरकार गिराने में ट्रिगर प्वाइंट साबित हो सकते हैं.

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महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव के बाद विधान परिषद चुनाव में बीजेपी ने महा विकास अघाड़ी को झटका दिया है. लेकिन शायद एमवीए (Maha Vikas Aghadi) को अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनकी सरकार पर भी संकट आ सकता है. महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे करीब 30 विधायकों के साथ सूरत के ले मेरिडियन होटल में हैं. बताया जा रहा है कि वह पार्टी के संपर्क में नहीं हैं. ऐसे में समझते हैं कि क्या महाराष्ट्र में एमवीए की सरकार गिर सकती है? आखिर नंबर गेम क्या है?

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दल बदल विरोधी कानून से बचने के लिए 37 विधायकों की जरूरत

दल बदल विरोधी कानून के मुताबिक, अगर किसी पार्टी से दो तिहाई सदस्य टूटकर दूसरी पार्टी में जाते हैं तो उनका पद बना रहेगा. यानी विधायक का पद बचा रहेगा. लेकिन अगर संख्या इससे कम होती है तो उन्हें विधायक के पद से इस्तीफा देना पड़ेगा. अब वापस महाराष्ट्र पर लौटते हैं.

विधानसभा में शिवसेना के पास 55 विधायक हैं. अगर बागी विधायक विलय करना चाहते हैं तो 55 का दो तिहाई, यानी 37 विधायकों को एक साथ दूसरी पार्टी में जाना होगा. अगर ऐसा होता है तो उन विधायकों पर कोई संवैधानिक कार्रवाई नहीं होगी. उनकी योग्यता बनी रहेगी.
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महाराष्ट्र: सरकार बनाने के लिए नंबर गेम किसके साथ?

विधानसभा में कुल 288 विधायक हैं, लेकिन विधान परिषद के चुनाव में 285 सदस्यों ने मतदान किया. शिवसेना विधायक रमेश लटके का पिछले महीने निधन हो गया. एनसीपी सदस्य नवाब मलिक और अनिल देशमुख मनी लॉन्ड्रिंग केस में जेल में हैं.

महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 144 विधायकों की जरूरत होगी. शिवसेना के पास 55, एनसीपी के पास 53 और कांग्रेस के पास 44 विधायक हैं. कुल मिलाकर ये संख्या 152 हो जाती है. बीजेपी के पास 106 विधायक हैं, उसे 38 विधायकों की जरूरत है. छोटे दलों के 16 और 13 निर्दलीय विधायक हैं. ये संख्या 29 है. ऐसे में अगर शिवसेना से करीब 37 विधायक टूटकर आते हैं तो बीजेपी की सरकार बन सकती है, हालांकि अभी तक 30 बागी विधायकों के ही नाम सामने आए हैं.
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महाराष्ट्र में सरकार गिरने का संकट क्यों खड़ा हो गया?

इसके पीछे राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव के नतीजे हैं. राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को 123 और विधान परिषद चुनाव में 134 वोट मिले थे. इससे बीजेपी को एक ट्रिगर प्वाइंट मिल गया. फिर उन्होंने सरकार से असंतुष्ट विधायकों से संपर्क करने का काम किया.

राज्यसभा चुनाव में मिली हार के बाद एमएलसी चुनाव में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना ने अपने विधायकों को होटल में रखा था, लेकिन फिर भी देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें मात दे दी. विधान परिषद के दौरान क्रॉस वोटिंग से संदेश मिलता है कि शिवसेना और कांग्रेस के अंदर उन्हीं के सदस्यों में कुछ नाराजगी है. छोटे दलों को भी साथ लेने में तीनों पार्टियां कहीं न कहीं विफल होती दिख रही हैं.

एकनाथ शिंदे भी कथित तौर पर पार्टी से नाखुश हैं. उनका मानना है कि उन्हें दरकिनार कर दिया गया है. जब महत्वपूर्ण नीतियां और रणनीतियां बनाई जाती हैं तो उन्हें विश्वास में नहीं लिया जाता है. पार्टी ने हाल ही में ठाणे नगर निगम चुनावों में अकेले जाने के उनके सुझाव को खारिज कर दिया था. उन्हें बताया गया था कि पार्टी को कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ना होगा.

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