टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) कैश फॉर क्वेरी के मामले में संसद से निष्कासन के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. एथिक्स कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि महुआ की संसद सदस्यता रद्द की जानी चाहिए और एक समयसीमा में भारत सरकार को मामले की जांच करनी चाहिए.
ऐसे में सवाल है कि अब निष्कासित महुआ मोइत्रा के पास क्या-क्या विकल्प हैं? वो अपनी सदस्यता वापस कैसे बहाल कर सकती हैं? लेकिन उससे पहले यह भी जान लीजिए कि महुआ मोइत्रा पर आरोप क्या हैं:
महुआ मोइत्रा का कैश फॉर क्वेरी का मामला क्या है?
बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने 15 अक्टूबर 2023 को तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर आरोप लगाया था कि महुआ मोइत्रा ने संसद में सवाल पूछने के लिए एक बिजनेसमैन दर्शन हीरानंदानी से रिश्वत के रूप में कैश लिया था. हालांकि महुआ ने पैसे लेने की बात को झूठा बताया था.
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मोइत्रा के खिलाफ मुख्य रूप से दो आरोप लगाए हैं:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिजनेसमैन गौतम अडानी पर निशाना साधते हुए संसद में सवाल पूछने के लिए मोइत्रा को रियल एस्टेट डेवलपर दर्शन हीरानंदानी से रिश्वत के रूप में कैश और कई उपहार मिले.
मोइत्रा ने अपनी लोकसभा आईडी और पासवर्ड हीरानंदानी के साथ साझा की, जो दुबे के अनुसार, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का उल्लंघन है.
महुआ के पास क्या विकल्प हैं? 2005 का एक मामला बनेगा नजीर?
महुआ मोइत्रा के सामने विकल्प है कि वो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट संजय हेगड़े ने क्विंट हिंदी को बताया कि, इससे पहले भी राजा राम पाल और 11 अन्य सांसदों को कथित तौर पर "कैश-फॉर-क्वेरी" घोटाले में शामिल होने के कारण 2005 में लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था. उन्होंने निष्कासन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. हालांकि 2007 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा था.
सुप्रीम कोर्ट से राहत की कितनी उम्मीद?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आदिल अहमद ने क्विंट हिंदी से कहा कि, राजा राम पाल के मामले में कोर्ट की बहुमत पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 101 उन परिस्थितियों के बारे में बताता है जिनके तहत संसद में सदस्यता अपने आप ही समाप्त हो जाती है, जिसमें ऐसी स्थितियां भी शामिल हैं जहां एक सदस्य संसद या विधानसभा के दूसरे सदन के लिए चुना जाता है लेकिन तय सीमा के अंदर वह इस्तीफा देने में विफल रहता है, या जब कोई सदस्य बिना अनुमति के 60 दिनों तक सदन से अनुपस्थित रहता है.
"इसके विपरीत, इस मामले में सदस्य की सदस्यता इसलिए गयी है क्योंकि सदन की बनाई एक समिति ने उस सदस्य को किसी अपराध का दोषी पाया है और इसको आधार बनाकर सदन ने उसकी सदस्यता समाप्त कर दी है."एडवोकेट आदिल अहमद
एडवोकेट आदिल अहमद ने भी क्विंट हिंदी से कहा कि महुआ अदालत का दरवाजा खटखटा सकती हैं. उन्होंने कहा कि महुआ मोइत्रा के मामले में भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होने पर आपराधिक कानून लागू होगा. हालांकि सांसदों के लॉग इन क्रेडेंशियल्स के इस्तेमाल और शेयरिंग को सीमित करने पर कोई स्पष्ट कानून नहीं हैं.
"दिलचस्प बात यह है कि भारतीय अदालतें आमतौर पर संसदीय मामलों में हस्तक्षेप करने से बचती हैं क्योंकि भारतीय अदालतें कानून की व्याख्या करती हैं और कानून बनाने और संसद के कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं करती."आदिल अहमद, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट संजय हेगड़े ने भी कहा कि, "मेरी जानकारी के अनुसार, सांसद के लॉगिन क्रेडेंशियल साझा करने पर कोई विशेष नियम नहीं है."
यानी अब देखना होगा कि ये पूरा मामला कैसे आगे बढ़ता है. लेकिन साथ ही ये भी ध्यान रहे कि कुछ महीने बाद ही लोकसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि महुआ मोइत्रा के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं है और अगर मामला कोर्ट तक पहुंचता भी है तो इसकी उम्मीद कम ही है कि चुनाव से पहले अदालत कोई फैसले दे.
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