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सम्राट मिहिर भोज जाति विवाद: 2024 चुनाव से पहले गर्म हुई यूपी की सियासी जमीन

सम्राट मिहिर भोज की जाति विवाद को लेकर बीजेपी ने खुलकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है और न ही किसी पक्ष का समर्थन करते हुए नजर आ रही है.

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है. 18 सितंबर 2023 को सम्राट मिहिर भोज जयंती पर मेरठ जिले के मवाना कस्बे में गुर्जर समाज ने यात्रा निकालने का ऐलान किया था.

इस ऐलान के बाद स्थानीय पुलिस सकते में थी. मेरठ के आला अधिकारियों ने पूरा प्रयास किया इस यात्रा को न निकलने दिया जाए और किसी भी तरीके से कोई भी टकराव की स्थिति उत्पन्न ना हो.

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धारा 144 का हवाला देते हुए पुलिस ने यात्रा के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया. हालांकि तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार यात्रा निकालने को लेकर गुर्जर समाज के सैकड़ों लोग बड़े महादेव मंदिर एकत्रित हो गए.

एसपी नेता अतुल प्रधान के नेतृत्व में जब यात्रा निकालने का प्रयास किया गया तो पहले से मौजूद पुलिस बल ने कई लोगों को हिरासत में लेकर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया.

हालांकि कुछ लोग सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा को माल्यार्पण करने में सफल रहे.

पहले भी सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर गुर्जर और राजपूत आ चुके हैं आमने-सामने

उत्तर प्रदेश में यह पहला ऐसा वाकया नहीं है जहां पर सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर गुर्जर और राजपूत समाज के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है.

मई 2023 में सहारनपुर में सम्राट मिहिर भोज गौरव यात्रा निकल जाने पर गुर्जर और राजपूत समाज के लोग आमने-सामने आ गए थे जिससे जिले में जबरदस्त तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी. स्थानीय प्रशासन से अनुमति न मिलने के बावजूद गुर्जर समाज के सैकड़ों लोगों ने जबरदस्त नारेबाजी करते हुए यात्रा निकाली थी.

विरोध में राजपूत समाज के लोगों ने भी एकत्रित होकर प्रदर्शन किया. टकराव की स्थिति को देखते हुए जिला प्रशासन ने इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगा दी थी. बाद में किसी तरीके से स्थिति को नियंत्रण में लाया गया. सम्राट मिहिर भोज की जाति पर उपजे विवाद का एक बड़ा कारण सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले लगने वाली उपाधि "गुर्जर प्रतिहार" है. विशेषज्ञों के हवाले से हमने यह जानने की कोशिश की कि इस विवाद की जड़ इतिहास के पन्नों में है या फिर इसे अब राजनीतिक हवा दी जा रही है.

सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर गुर्जर और राजपूत समाज मध्य प्रदेश राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में भी आमने-सामने है. अगर पिछले कुछ सालों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में यह मामला विधानसभा चुनाव से पहले सितंबर 2021 में नोएडा में उभर कर आया.

22 सितंबर 2021 को नोएडा के दादरी इलाके में स्थित बालिका इंटर कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण होना था. कार्यक्रम के कुछ दिनों पहले से ही विवाद और तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी जिसको लेकर स्थानीय पुलिस और प्रशासन सतर्क था. हालांकि यह विवाद खुलकर सामने तब आया, जब मूर्ति की शिलापट्ट पर अंकित गुर्जर शब्द पर किसी ने कालिख पोत दी. आनन फानन में स्टीकर लगाकर स्थिति को संभालने का प्रयास किया गया लेकिन तब तक विवाद ने पूरी तरीके से तूल पकड़ लिया.

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भाजपाइयों ने उनकी जाति ही बदल दी है: अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गुर्जरों के समर्थन में ट्वीट करते हुए लिखा की "ये इतिहास में पढ़ाया जाता रहा है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर-प्रतिहार थे पर भाजपाइयों ने उनकी जाति ही बदल दी है."

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी गुर्जरों के समर्थन में सरकार पर हमला बोला. मायावती ने गुर्जर समाज के इतिहास के साथ हुई कथित छेड़छाड़ पर सरकार से माफी मांगने के लिए कहा.

हालांकि अब इस विवाद ने पूरी तरीके से राजनीतिक रंग ले लिया है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, और बागपत लोकसभा सीटों की बात करें तो यहां पर 90 हजार से ढाई लाख गुर्जर मतदाता एक तरीके से निर्णायक की भूमिका में होते हैं जो किसी भी पार्टी के पक्ष या खिलाफ चुनावी समीकरण बदल सकते हैं.

वर्तमान में बीजेपी के पास पूर्व मंत्री और दादरी से दो बार विधायक नवाब सिंह नागर, वर्तमान दादरी विधायक तेजपाल नागर, राज्यसभा सांसद सुरेंद्र नागर, लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर, पार्टी के पश्चिमी क्षेत्र के उपाध्यक्ष मनोज पोसवाल समेत कई बड़े नाम हैं, जो बीजेपी के लिए चुनाव में गुर्जर वोटों की किलेबंदी करेंगे.

वहीं दूसरी तरफ राजपूतों की बात करें तो पूरे प्रदेश में उनकी जनसंख्या 7% है. ये वोट बैंक के मामले में गुर्जरों से कमजोर जरूर है लेकिन नेतृत्व के मामले में बहुत आगे. बीजेपी के पास योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह, पंकज सिंह, वीरेंद्र सिंह मस्त, संगीत सोम और सुरेश राणा जैसे बड़े राजपूत चेहरे हैं.

वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी में दिनेश गुर्जर अतुल प्रधान और मुखिया गुर्जर समेत कई प्रभावशाली नाम भी हैं जो पार्टी के लिए गुर्जर वोटो को साधने में लगे हुए हैं. गुर्जर समाज के एक धड़े का नेतृत्व एसपी नेता और मेरठ की सरधना सीट से विधायक अतुल प्रधान कर रहे हैं. अभी हाल ही में मेरठ में सम्राट मिहिर भोज यात्रा को लेकर उपजे विवाद के बाद हमने अतुल प्रधान से बातचीत की.

वहीं दूसरी तरफ एसपी में ओम प्रकाश सिंह, सुधाकर सिंह, और अरविंद सिंह गोप जैसे नेता है जो पार्टी में राजपूत हितों का नेतृत्व करते हैं. राजपूत संख्या बल में भले ही काम हो लेकिन दबंगई और ओपिनियन मेकर छवि के कारण इनका राजनीतिक हिस्सा बाकी जातियों से ज्यादा होता है.

मिहिर भोज की जाति विवाद में राजपूतों का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे करणी सेना और राजपूत क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारी इतिहास का हवाला देते हुए कहते हैं की सम्राट मिहिर भोज राजपूत जाति के थे और उनके नाम के आगे गुर्जर जोड़कर विवाद उत्पन्न किया जा रहा है.

सम्राट मिहिर भोज की जाति विवाद को लेकर बीजेपी ने खुलकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है और न ही किसी पक्ष का समर्थन करते हुए नजर आ रही है. विशेषज्ञों की मानें तो पार्टी का इसमें किसी भी पक्ष का साथ देना आगे आने वाले चुनाव के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है. किसान आंदोलन की वजह से जाटों का और अभी हाल ही में त्यागी समाज का नाराजगी झेल रही बीजेपी अगर इस विवाद में किसी पक्ष का साथ देती है तो इसका असर पार्टी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण के गणित पर पड़ सकता है.

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