प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) अपनी टीम का विस्तार कर दिया है. नरेंद्र मोदी कैबिनेट विस्तार में इस बार नए चेहरों को जगह दी गई है. इसमें सबसे अहम नामों में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) का है. मध्य प्रदेश से बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया है. सिंधिया सिविल एविएशन मिनिस्ट्री संभालेंगे.
कांग्रेस से बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया
ज्योतिरादित्य सिंधिया फिलहाल बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं. तकरीबन 20 साल से राजनीति में हैं, साल 2020 में कांग्रेस पार्टी छोड़ कर वह बीजेपी में शामिल हुए थे. जिससे मध्यप्रदेश में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बन गयी थी. सिंधिया करीब 17 साल तक कांग्रेस पार्टी से सांसद रहे हैं. 2 बार केंद्रीय मंत्री बनाए गए थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भी थे.
साल 2018 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस पार्टी से नाराज चल रहे थे. माना जा रहा था कि पार्टी सिंधिया पर भरोसा कर उन्हें सीएम बनाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी थी.
मंत्रिमंडल में सिंधिया को क्यों किया गया शामिल?
सिंधिया राहुल गांधी के सबसे करीबी माने जाते थे, ऐसे में उनका बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था. मोदी सरकार मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया को शामिल करने के पीछे एक वजह ये भी मानी जा सकती है कि सिंधिया के जरिए बीजेपी राहुल गांधी के उन आरोपों का जवाब देने की कोशिश करेगी जिसमें राहुल ने कहा था कि "कभी कांग्रेस में फैसले लेने वाले सिंधिया, अब BJP के बैकबेंचर."
इसके अलावा सिंधिया के जरिए बीजेपी कांग्रेस और बाकी पार्टियों में नाराज चल रहे नेताओं को ये संदेश देना चाहेगी कि बीजेपी में आने के बाद नए अवसर मिल सकते हैं.
मध्यप्रदेश कि राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया एक मजबूत नेता हैं, वह कई बार मध्यप्रदेश की गुना सीट से जीत भी चुके हैं. ऐसे में उनकी ये पकड़ बीजेपी को फायदा पंहुचा सकती है. भारतीय राजनीति में सिंधिया का अनुभव लंबा है, वह यूपीए सरकार में भी मंत्री रह चुके है, ऐसे में पीएम मोदी उनके अनुभव का पुरा लाभ उठाना चाहंगे.
सिंधिया की क्या खासियत?
ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक सफर की बात करें तो 'सिंधिया' घराने से संबंध होने के कारण उन्हें राजनीति विरासत में मिली क्योंकि उनके पिता माधवराव सिंधिया अपने समय के दिग्गज कांग्रेस नेता रहे, वहीं ज्योतिरादित्य की बुआएं, यशोधरा राजे सिंधिया और वसुंधरा राजे भी राजनीति में सक्रिय हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक सफर की शुरुआत 2002 में उनके पिता के निधन के बाद हुई, जब वह पहेली बार सांसद बने.
ये वह समय था जिसके बाद से ज्योतिरादित्य का राजनीतिक सफर शुरू हुआ. उन्होंने 2002 में पहली बार पिता के देहांत के बाद उनकी पारंपरिक गुना सीट से चुनाव लड़ा ओर लोकसभा पहुंचे. 2004 में भी उन्होंने इसी सीट से चुनाव लड़ा ओर जीत दर्ज की लेकिन 2019 में वो अपनी इस सीट से चुनाव हार गए.
2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था ओर वो अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए थे. अब करीब डेढ़ साल के इंतजार के बाद केंद्र में ज्योतिरादित्य को एक बार फिर मंत्री बनाया जा सकता है.
पिता माधवराव की तरह ज्योतिरादित्य भी CM बनते बनते रह गए थे
2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी ने ज्योतिरादित्य को मध्यप्रदेश में कोई बड़ा पद देने के बजाय कांग्रेस महासचिव बना दिया. राज्य के विधानसभा चुनाव में सिंधिया को मुख्यमंत्री का चेहरा माना जा रहा था, लेकिन नतीजों के बाद कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए.
1993 में बीजेपी की सुंदरलाल पटवा की सरकार को बर्खास्त करने के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस बहुमत में आई थी. मुख्यमंत्री के तौर पर माधवराव सिंधिया का नाम भी चर्चा में आ गया, लेकिन तभी पासा पलट गया ओर मुख्यामंत्री की कुर्सी दिग्विजय सिंह के पास पहुंच गई.
बैंकिंग से राजनीति में आने तक का सफर
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी स्कूली शिक्षा दून स्कूल से पूरी की. स्कूली शिक्षा पूरी होने पर ज्योतिरादित्य ने हारवर्ड यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया. साल 1991 में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लॉस एंजिल्स में अंतरराष्ट्रीय कंपनी मैरिल लिंच के साथ अपने करियर की शुरुआत की. इसके अलावा उन्होंने कुछ समय तक न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ में भी काम किया. अगस्त 1993 में भारत लौटने के बाद सिंधिया ने मुंबई में मॉर्गन स्टेनले कंपनी के लिए भी काम किया.
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