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राज्यमंत्रियों के जरिए राज चलाने का मोदी मॉडल पुराना है

प्रमुख मंत्रालयों को मोदी देते हैं अपने विश्वस्त राज्य मंत्रियों के पास. इस तरह रखी जाती है मंत्रालयों पर पैनी नजर 

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न्यूज़ चैनल वाले अक्सर मुझसे मंत्रियों को उनके काम-काज के आधार पर नंबर देने या उनकी ग्रेडिंग करने को कहते हैं. वे अक्सर कई मंत्रियों की उपलब्धियों पर एक पैराग्राफ़ लिखकर मुझे भेजते हैं और मुझे उन्हें नंबर देना होता है. जब टीवी पर शो चल रहा होता है तो मैं दूसरे लोगों द्वारा इन मंत्रियों को दी गई रैंकिंग के बारे में भी जान लेता हूं.

4 मंत्री जिन्हें लगातार उनके काम के आधार पर ऊंची रैंकिंग मिलती है, वे हैं बिजली मंत्री पीयूष गोयल, व्यापार और वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन, पेट्रोल और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर (जो अब कैबिनेट मंत्री बन चुके हैं). इन सबके बारे में जो बात सबसे अजीब है, वो ये है कि ये सभी राज्यमंत्री हैं. जिसका मतलब ये हुआ कि ये जूनियर मंत्री हैं और इनके पास कैबिनेट रैंक नहीं है.

प्रमुख मंत्रालयों को मोदी देते हैं अपने विश्वस्त राज्य मंत्रियों के पास. इस तरह रखी जाती है मंत्रालयों पर पैनी नजर 
कैबिनेट विस्तार के दौरान पीएम मोदी के साथ नए मंत्री. (फोटो: PTI)

ये सच्चाई पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे थे तब भी नहीं बदली थी. कई नए लोगों को इस विस्तार में शामिल किया गया, जिससे ये कैबिनेट एक कपबोर्ड यानि अलमारी सी लगने लगी है. लेकिन इस विस्तार में सिर्फ़ एक मंत्री को प्रोमोट कर के कैबिनेट रैंक दिया गया, जो प्रकाश जावड़ेकर थे. उनका प्रोमोशन तो हुआ लेकिन साथ ही उनका पोर्टफोलियो भी बदल दिया गया. उनको शिक्षामंत्री बनाया गया है, जिसे हमारे यहां मानव संसाधन विकास मंत्री भी कहा जाता है.

जावड़ेकर की जगह जिन्हें नया पर्यावरण, जंगल और क्लाईमेट चेंज मंत्री बनाया गया है, उनका नाम अनिल माधव दवे है. वे भी जावड़ेकर की तरह राज्यमंत्री ही थे, कैबिनेट मंत्री नहीं. मैं जहां तक समझ पा रहा हूँ ये प्रधानमंत्री मोदी की एक ऐसी रणनीति है जिसका इस्तेमाल वे पिछले डेढ़ दशक से गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान से कर रहे हैं.

प्रमुख मंत्रालयों को मोदी देते हैं अपने विश्वस्त राज्य मंत्रियों के पास. इस तरह रखी जाती है मंत्रालयों पर पैनी नजर 
कैबिनेट विस्तार के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ पीएम नरेंद्र मोदी. (फोटो: IANS)
वे अपनी निजी पसंद के कुछ ख़ास पोर्टफोलियो का चुनाव कर लेते हैं और उसे किसी वरिष्ठ मंत्री को नहीं देते. उस मंत्रालय की ज़िम्मेदारी फिर एक जूनियर मंत्री को दे दी जाती है, जो या तो सीधे मोदी को रिपोर्ट करते हैं या उन अफ़सरों की टीम को जो मोदी के लिए काम करते हैं. मैंने ये सबसे पहले इस बात पर ध्यान गुजरात में देखा था, जहां मोदी के अपने दो मंत्रियों सौरभ पटेल और अमित शाह के साथ ऐसे ही संबंध थे.

नरेंद्र मोदी कई सालों तक गुजरात के मुख़्यमंत्री रहे और उस दौरान सौरभ पटेल उद्योग, माइंस और मिनरल्स, पेट्रोलकेमिकल्स, पोर्ट और बिजली मंत्री रहे. ये वो मंत्रालय हैं जो काफी अहम् होते हैं. खासकर गुजरात में जो भारत का सबसे अत्याधिक औद्योगिकीकृत राज्य है. पटेल का पोर्टफोलियो कम से कम 5 व्यवसायिक घरानों के फायदे के लिए काम करता था...टाटा, एस्सार, अडानी, अंबानी और टॉरेंट. उस समय गुजरात का मीडिया मोदी के काम-काज की समीक्षा करते हुए अक्सर मज़ाक में कहा करती था, कि उनकी जिम्मेदारी महाभारत की द्रौपदी की तरह अपने 5 पतियों की जरूरतों को पूरा करने और उनको खुश रखने की थी. जो पोर्टफोलियो वो देखा करते थे वो साफ तौर पर काफी महत्वपूर्ण हुआ करते थे, लेकिन फिर भी पटेल को कभी कैबिनेट रैंक नहीं दिया गया. आख़िर क्यों?

मेरे ख़्याल से ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी इन मंत्रालयों से जुड़े अहम् फैसलों की कमान अपने पास रखना चाहते थे.

प्रमुख मंत्रालयों को मोदी देते हैं अपने विश्वस्त राज्य मंत्रियों के पास. इस तरह रखी जाती है मंत्रालयों पर पैनी नजर 
चौथी बार गुजरात सीएम बनने पर पार्टी कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी का स्वागत करते हुए. (फोटो: PTI)

ये सही है कि गुजरात में भी वे सभी मंत्री अंत में मोदी को रिपोर्ट किया करते थे, जैसे दिल्ली में करते हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि अगर कैबिनेट रैंक को रोककर रखा गया है, तो इसका मतलब ये है कि इन मंत्रालयों के मंत्री किसी भी तरह का फैसला लेने के लिए स्वच्छंद नहीं है और कोई भी फैसला लेने से पहले उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से मंजूरी लेनी पड़ती है.

ठीक उसी तरह, सालों तक नरेंद्र मोदी के खासमखास बने रहने और गुजरात का गृहमंत्री होने के बावजूद अमित शाह को भी कभी भी कैबिनेट रैंक नहीं मिला. उनके मोदी मंत्रीमंडल में शामिल होने और फिर एक कथित स्कैंडल में फंसने के बाद, मजबूरी में पद छोड़ने तक अमित एक राज्यमंत्री ही रहे. शाह पुलिस डिपार्टमेंट के भी इंचार्ज थे और ये अंदाजा लगाना जरा भी मुश्किल नहीं है कि आखिर मोदी क्यों वहां के काम-काज पर नजर रखना चाहते होंगे. जब दो साल पहले नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे मैंने तभी ये भविष्यवाणी कर दी थी कि वे गुजरात की तरह केंद्र में भी सिर्फ राज्यमंत्रियों को नियुक्त करेंगे और खुद उनके काम पर पैनी नजर रखेंगे, जो सच साबित हुआ.

हालांकि मेरा ये आकलन ग़लत साबित हुआ कि गृहमंत्रालय का कामकाज भी एक राज्यमंत्री के हाथों में होगा, जबकि यहां गृहमंत्री कैबिनेट रैंक के हैं.

हालांकि, एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी से बातचीत करने के दौरान मुझे ये पता चला कि, एक राज्य और केंद्र के गृहमंत्रालय के काम-काज का तरीका एक दूसरे से काफ़ी अलग होता है. केंद्र के गृहमंत्रालय के पास पुलिस का नियंत्रण नहीं होता है, पुलिस राज्य का अधिकार होता है और इसलिए दिल्ली यानि केंद्र का गृहमंत्रालय कई मायनों में कम महत्व वाला मंत्रालय हो जाता है, जबकि उसे रुतबे के मुताबिक टॉप तीन मंत्रालयों में से एक माना जाता है.

जहां तक दूसरे मंत्रालयों का सवाल है, खासकर बिजली, माईनिंग, पेट्रोलियम, कोयला या वाणिज्य...ये सभी प्रधानमंत्री मोदी के ‘विकास’ के मंत्र से काफी जुड़ा हुआ है. पर्यावरण मंत्रालय काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक क्रांतिकारी मंत्री कई तरह के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने से रोक सकता है. नरेंद्र मोदी मानते हैं कि उन्हें इन क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम रखना चाहिए ताकि वहां जो भी फैसले लिए जाएं उसमें न सिर्फ़ उनकी सहमति शामिल हो बल्कि बगैर किसी विरोध के जैसा वो चाहें वैसे कदम उठाए जाएं.

यही वो वजह है कि जो मंत्री इन मंत्रालयों का कामकाज संभाल रहे हैं, वो काफी मेधावी होने के बाद भी कैबिनेट रैंक के मंत्री नहीं हैं. हालांकि एक दिलचस्प बात ये है कि सौरभ पटेल को गुजरात में तब कैबिनेट रैंक का मंत्री बना दिया गया था, जब मोदी प्रधानमंत्री बने और गुजरात की कमान आनंदी बेन पटेल के हाथ में सौंप दी. हो सकता है कि भविष्य में जिन राज्य मंत्रियों का नाम मैंने यहां लिया है उन्हें भी अंत में कैबिनेट मंत्री बना दिया जाए.

लेकिन फिलहाल मुझे इस वक्त साफ-साफ जो नजर आ रहा है वो ये कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में भी गुजरात मॉडल के अनुसार ही गवर्नेंस यानि शासन चला रहे हैं. अगर समूचे तौर पर नहीं तो टुकड़ों में ही सही.

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