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यूपी का मुसलमान तलाश रहा विकल्प? SP-BSP और कांग्रेस के लिए क्या संदेश?

UP Assembly Election 2022 में कई सीटों पर मुस्लिम समाज के मतदाताओं ने SP गठबंधन पर भरोसा दिखाया था.

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वोट बैंक का 'मिथक' तोड़ते हुए, उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव (UP Nagar Nikay Chunav) में मुस्लिम मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न ने एक नए बदलाव के संकेत दिए हैं. एक पार्टी के लिए एकतरफा मतदान ना करके, मुस्लिम समाज के मतदाताओं ने इस बार समाजवादी पार्टी (SP), भारतीय जनता पार्टी (BJP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), कांग्रेस समेत क्षेत्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों का आकलन कर अपने हिसाब से मतदान किया है. इस बदलाव की वजह से निकाय चुनाव में कई जगह अप्रत्याशित परिणाम आए हैं.

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कई जगहों पर त्रिकोणीय मुकाबला

मेरठ मेयर चुनाव में हर बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है. मुस्लिम मतदाता यहां गेम चेंजर की भूमिका में रहते हैं और 2017 में बीएसपी की सुनीता वर्मा ने बीजेपी को हराकर मेयर पद का चुनाव जीता था.

हालांकि इस बार मुकाबले में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने चौंकाने वाली समीकरण में अपनी सक्रिय भूमिका अदा की. जहां मेरठ मेयर पद की बाजी बीजेपी ने मार ली वही AIMIM के प्रत्याशी अनस दूसरे स्थान पर रहे. 2017 में मेयर सीट पर जीत हासिल करने वाली BSP इस बार चौथे स्थान पर खिसक गई.

समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले मुरादाबाद में भी मुस्लिम मतदाता बंटे हुए दिखाई दिए. जिस जिले में SP के 5 विधायक और एक सांसद हैं वहां पर पार्टी का मेयर प्रत्याशी परिणामों में चौथे नंबर पर आया.

कांग्रेस प्रत्याशी रिजवान कुरेशी दूसरे नंबर पर तो वहीं BSP प्रत्याशी मोहम्मद यामीन तीसरे नंबर पर रहे. चाहे कांग्रेस हो या BJP या BSP, किसी भी गैर बीजेपी पार्टी को एक तरफा मुस्लिम वोट नहीं पड़े.

कुछ ऐसा ही हाल सहारनपुर, आगरा समेत कई जिलों में देखने को मिला जहां पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं.

क्यों हुआ बदलाव?

विशेषज्ञों की माने तो, मुस्लिम मतदाताओं के बदले हुए मतदान समीकरण सिर्फ निकाय चुनाव तक ही सीमित हैं और आगे आने वाले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में प्राथमिकताएं बदल जाएंगी.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर मोहम्मद मोहिबुल हक ने क्विंट हिंदी से बातचीत के दौरान कहा

निकाय चुनाव में प्रत्याशी कि स्थानीय लोगों से तालमेल, स्थानीय मुद्दे, जाति और धर्म ज्यादा हावी होते हैं. इन चुनाव के ट्रेंड बड़े स्तर पर होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में देखने को नहीं मिलेंगे. बड़े चुनावों में यह देखा जाएगा कि कौन सी पार्टी बीजेपी को हरा पाएगी. यही सबसे बड़ा फैक्टर उभर कर आएगा.

2022 विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर मुस्लिम समाज से SP गठबंधन पर भरोसा दिखाया था. हालांकि मेयर चुनाव में यह समीकरण बदले हुए नजर आ रहे है.

सेंटर फॉर ऑब्जेक्टिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट के डायरेक्टर अथर हुसैन ने क्विंट हिंदी से बातचीत के दौरान कहा, "पिछले 20 साल से हम यह देख रहे हैं कि मुस्लिम समाज ने बीजेपी को हराने के लिए वोट किया है. लेकिन बीजेपी को हराने वाला मुद्दा निकाय चुनाव में हावी नहीं रहा. अगर ऐसा होता तो मेरठ में SP मेयर चुनाव जीत जाती. अभी एक साल पहले जिस विधानसभा चुनाव में SP के मुरादाबाद जिले में चार मुस्लिम विधायक चुने गए वहां पर मेयर चुनाव में पार्टी टक्कर तक नहीं दे पाई"

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मुस्लिम मतदाताओं ने बीजेपी पर दिखाया भरोसा?

पसमांदा मुसलमानों को अब पार्टी से जोड़ने की कोशिश कर रही बीजेपी निकाय चुनाव के नतीजों के बाद उत्साहित नजर आ रही है. पार्टी सूत्रों की माने तो, नगर पंचायत अध्यक्ष से लेकर पार्षद तक, 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट मिला था. लखनऊ, संभल, सहारनपुर, बरेली, गोरखपुर, हरदोई, समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है.

लखनऊ के मौलवीगंज और हुसैनाबाद वार्ड की बात करते जहां पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं. यहां बीजेपी उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. मुस्लिम समाज का बीजेपी को मिल रहे समर्थन के बारे में विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है.

AMU के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हक कहते हैं,"यह ऐसा इसलिए है कि वह बीजेपी प्रत्याशी अपने निजी स्तर पर मुस्लिम समाज के करीब है. ऐसे स्थिति में लोग देखते हैं कि कौन सा प्रत्याशी उनके सुख-दुख की घड़ी में साथ रहता है. इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस पार्टी से आता है. छोटे चुनावों में पार्टी से ज्यादा लोगों का सरोकार सीधे प्रत्याशी से होता है."

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल कहते हैं कि मुसलमान समाज विकल्प की तलाश में है. "इन चुनावों से एक बात तो साफ हो गई है कि मुस्लिम समाज एक पार्टी से बंध कर रहने के बजाय विकल्पों की तलाश में है."
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उन्होंने आगे कहा, "मुस्लिमों के लिए SP पसंदीदा पार्टी रही है लेकिन अभी वह सत्ता में नहीं है. ऐसे में वह कोशिश कर रहे हैं कि उनके हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग हर पार्टी में रहे और शायद इसीलिए किसी एक पार्टी को एकतरफा वोट नहीं पड़े हैं."

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