कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी की पंजाब इकाई में बढ़ते असंतोष के बीच शांति कायम करने के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए हैं. 30 जून को कांग्रेस की जनरल सेक्रेटरी प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) से मुलाकात की. सिद्धू बाद में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से भी मिले.
अमृतसर-पूर्व से मौजूदा विधायक और पूर्व पंजाब कैबिनेट मंत्री सिद्धू मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ असंतोष के मुख्य चेहरे में से एक हैं. प्रियंका गांधी से मुलाकात की तस्वीर ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा "प्रियंका गांधी जी से लंबी मुलाकात हुई".
इस आर्टिकल में हम इन 5 प्रश्नों पर विचार करेंगे:
ये बैठकें महत्वपूर्ण क्यों हैं?
क्या कांग्रेस कैप्टन और सिद्धू के बीच संतुलन बिठा सकती है?
सिद्धू के पास क्या विकल्प है?
कांग्रेस आलाकमान क्या कर रहा है?
आगे क्या हो सकता है?
ये बैठकें महत्वपूर्ण क्यों हैं?
प्रियंका गांधी के साथ सिद्धू की मुलाकात ने पहले ही इन अटकलों को हवा दे दी थी कि वह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से भी मुलाकात करेंगे. हालांकि राहुल गांधी ने मंगलवार को मीडिया से कहा था "सिद्धू के साथ कोई मीटिंग निर्धारित नहीं है" ,जिसे कैप्टन को नाराज करने से बचने के प्रयास के रूप में देखा गया.
कैप्टन ने पिछले हफ्ते दिल्ली के अपने दौरे के समय राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं की थी. हालांकि उन्होंने पार्टी प्रमुख द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय कमेटी से मुलाकात की. तभी प्रियंका गांधी ने मामले को अपने हाथ में लिया और बुधवार, 30 जून को दिन में सिद्धू से मुलाकात की .उसके बाद वो राहुल गांधी से मिलीं. शाम में सिद्धू राहुल गांधी से मिलने उनके 12 तुगलक रोड स्थित आवास पर गए, जहां प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं. यह मुलाकात एक घंटे तक चली.
सिद्धू को गांधी भाई-बहनों के साथ अच्छे संबंध के लिए जाना जाता है और ऐसा माना जा रहा है कि गांधी परिवार यह सुनिश्चित करने का इच्छुक हैं कि सिद्धू पार्टी से जुड़े रहें. प्रियंका गांधी द्वारा मीटिंग ऑर्गेनाइज करना यह भी दर्शाता है कि वो पिछले साल अहमद पटेल की मृत्यु के बाद कांग्रेस में एक महत्वपूर्ण शून्य को भरने की कोशिश कर रही हैं- पार्टी के संकटमोचन की.
क्या कांग्रेस कैप्टन और सिद्धू के बीच संतुलन बिठा सकती है?
इससे पहले सिद्धू को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ अगले साल होने वाले पंजाब चुनावों के लिए पार्टी के प्रचार समिति की अध्यक्षता की पेशकश की गई थी. कहा जा रहा है कि उन्होंने इस ऑफर को ठुकरा दिया और वो प्रदेश कांग्रेस कमेटी(PCC) के अध्यक्ष बनने के इच्छुक हैं, जो पद वर्तमान में सुशील कुमार जाखड़ के पास है.
PCC अध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सिद्धू को टिकट वितरण में अधिक अधिकार देगा. इससे उनके वफादार विधायकों की संख्या बढ़ेगी और कांग्रेस के जीतने की स्थिति में उनके सीएम बनने की संभावना ज्यादा होगी. दूसरी तरफ कैप्टन सिद्धू को प्रदेश इकाई में शीर्ष पद दिए जाने का कड़ा विरोध कर रहे हैं. यह निश्चित नहीं है कि अब सिद्धू को किस डील की पेशकश की गई है. हालांकि गांधी के साथ मुलाकात से यह संकेत मिलता है कि उनकी समस्याओं को दूर किया जा सकता है.
सिद्धू के असंतोष को दूर करने के लिए 3 सदस्यीय कमेटी ने सीएम कैप्टन को समयबद्ध तरीके से 18 कार्यों को पूरा करने की सूची दी थी. इसमें रेत-खनन माफिया के खिलाफ कार्यवाही करना, नशीली दवाओं के खतरे को रोकना आदि शामिल है.
सिद्धू पहले ही अपने समर्थकों को बता रहे हैं कि आलाकमान ने उनके सलाह पर काम किया और तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया. कमेटी ने पंजाब के सांसदों,विधायकों और अन्य नेताओं से बात करके कैप्टन को सूची पकड़ाई है.
यदि कैप्टन इन कार्यों को पूरा करने में सफल हो जाते हैं तो सिद्धू इसका श्रेय ले सकते हैं. अगर कैप्टन ऐसा नहीं करते हैं तो सिद्धू फिर से आलाकमान के पास जाकर बदलाव की मांग कर सकते हैं. कम से कम सिद्धू का हिसाब तो यही लगता है.
सिद्धू के पास क्या विकल्प है?
सिद्धू की सबसे बड़ी समस्या है कि उनके पास विकल्प खत्म हो रहे हैं. आम आदमी पार्टी अपने राज्य नेतृत्व के विरोध के कारण उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में घोषित करने की इच्छुक नहीं है और उसके केंद्रीय नेतृत्व को भी यह चिंता है कि सिद्धू बहुत 'स्वतंत्र' हो सकते हैं.
सिद्धू को अपना संगठन बनाने, कैडर बनाने और नई पार्टी के सीएम उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के लिए बहुत देर हो चुकी है. इसलिए सिद्धू के पास सबसे व्यवहारिक विकल्प यह है कि वह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ अपने अच्छे संबंध का लाभ उठाएं और पंजाब कांग्रेस में एक अच्छा डील हासिल करें. पिछले कुछ दिनों से सिद्धू ने सीएम पर अपने हमलों को भी कम कर दिया है, जो पिछले सप्ताहों के विपरीत है जहां उन्होंने कैप्टन की कठोर शब्दों में सीधे आलोचना करते हुए कई इंटरव्यू दिए थे.
अब सिद्धू ने अपने हमलों के केंद्र में अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल को रखा है. उदाहरण के लिए बुधवार को उन्होंने बादल को ट्वीट करते हुए कहा कि मेरा उद्देश्य है "आपके भ्रष्ट व्यवसायों को नष्ट करना... जब तक पंजाब के खंडहरों पर बने आपके विलासिता को फिर से पंजाब के गरीबों की सेवा के लिए एक सार्वजनिक स्कूल और अस्पताल में नहीं बदल दिया जाता, मैं पीछे नहीं हटूंगा"
ऐसा लगता है कि इसका उद्देश्य कैप्टन की तुलना में अपने आप को पंजाब के सबसे बड़े बादल-विरोधी नेता के रूप में स्थापित करना है.कैप्टन पर उन्होंने बादल और आप के अरविंद केजरीवाल के साथ सौदेबाजी करने का आरोप लगाया है.
कांग्रेस आलाकमान क्या कर रहा है?
कांग्रेस नेतृत्व ना केवल पंजाब बल्कि कई राज्य इकाइयों में आग बुझाने में लगा हुआ है. पार्टी तेलंगाना और केरल में नए PCC प्रमुखों की महत्वपूर्ण नियुक्तियां करने में कामयाब रही, जिसमें ए. रेवंत रेड्डी और के. सुधाकरण को पद मिला. इन दोनों नियुक्तियों में एक पैटर्न है, क्योंकि रेड्डी और सुधाकरण दोनों ही अपने आक्रमक रुख के कारण जाने जाते हैं और अपने-अपने राज्यों में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय हैं.
पार्टी को आगे उत्तराखंड, गुजरात और असम में भी PCC प्रमुखों का चुनाव करना पड़ सकता है. राजस्थान में भी पार्टी को गुटबाजी से निपटने के लिए जल्द कदम उठाना पड़ सकता है.
पंजाब के मामले में राहुल गांधी सीधे तौर पर विधायकों के साथ डील कर रहे हैं और यही पैटर्न दूसरे राज्यों में भी अपनाया जा सकता है. एक राज्य जहां गुटीय विवाद कुछ हद तक पंजाब से संबंधित है, वह है उत्तराखंड .पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ही उत्तराखंड में इसके सबसे बड़े नेता है. यह कई लोगों के लिए आश्चर्यजनक था क्योंकि पंजाब और उत्तराखंड में एक साथ चुनाव होने हैं और रावत पंजाब में गुटबाजी सुलझाने में व्यस्त हैं.
माना जा रहा है कि रावत चुनाव की तैयारी के लिए अपनी जिम्मेदारी छोड़ कर जल्द से जल्द अपने गृह राज्य जाना चाहते हैं. हालांकि उत्तराखंड में भी रावत और मौजूदा PCC प्रमुख प्रीतम सिंह के बीच नई प्रदेश इकाई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर खींचातानी चल रही है. वरिष्ठ नेता इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद प्रीतम सिंह के विधायक दल के नेता बनने की संभावना है.
पंजाब के नए प्रभारी के रूप में दिल्ली के नेता जेपी अग्रवाल का नाम चर्चा में है. सोनिया गांधी द्वारा नियुक्त तीन सदस्य पंजाब कमेटी का हिस्सा होने के कारण अग्रवाल पहले से ही पंजाब इकाई में मौजूद समस्याओं से परिचित हैं.
आगे क्या हो सकता है?
पार्टी जल्द ही सिद्धू को एक नया डील पेश कर सकती है और कैप्टन को यह बात दोहरा सकती है कि उन्हें 18 सूत्रीय सूची का पालन करने के अलावा अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ पावर शेयर करने के लिए भी तैयार होना पड़ेगा.
पंजाब में जमीनी स्तर पर कैप्टन के खिलाफ असंतोष को देखते हुए- जैसा कि सर्वे और साथ ही विभिन्न वर्गों से बड़ी संख्या में विरोध में सामने आया -आलाकमान को किसी तरह के बदलाव की शुरुआत करनी होगी, चाहे कैप्टन शीर्ष पद पर बने रहें. ऐसी स्थिति में पार्टी के लिए यथास्थिति बनाए रखना विनाशकारी हो सकता है ,जहां वर्तमान में असंतोष और बदलाव की जरूरत ही प्रमुख भावना है.
पार्टी को कुछ नया लेकर मतदाताओं के बीच जाने की जरूरत है और 18 सूत्रीय सूची की उपलब्धि और भविष्य के लिए एक नया नेतृत्व सामने लाना पार्टी की पसंदीदा रणनीति लगती है .हालांकि पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह केवल एक अस्थाई समाधान हो सकता है क्योंकि पंजाब इकाई में सभी प्रतिस्पर्धी हितों को संतुलित करना मुश्किल है.
पार्टी के एक नेता ने कहा "ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे आलाकमान सभी को खुश कर सके. कैप्टन और सिद्धू के बीच संतुलन बनाना भी लगभग असंभव है. इस सप्ताह जो भी समाधान पेश किया जाएगा वह अस्थाई हो सकता है".
कैप्टन विरोधी गुट में न केवल सिद्धू बल्कि प्रताप सिंह बाजवा ,मंत्री सुखजिंदर रंधावा और अन्य नेता भी हैं. फिर कई नेता जो कैप्टन के खिलाफ नहीं थे वो विधायक फतेहगंज बाजवा और राकेश पांडे के बेटों को सरकारी नौकरी देने के फैसले पर उनके खिलाफ हो गए हैं. आलोचकों में PCC प्रमुख सुनील जाखड़,मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, रजिया सुल्ताना, चरणजीत सिंह चन्नी और सुखबिंदर सरकारिया, विधायक कुलजीत नागर और अमरिंदर सिंह राजा वारिंग और पंजाब युवा कांग्रेस प्रमुख बृन्दर ढिल्लों शामिल थें.
लेकिन कैप्टन के विरोध का मतलब यह नहीं कि वह सिद्धू के अधीन काम करने में सहज महसूस करेंगे, क्योंकि उनमें से कुछ का कहना है कि सिद्धू 'टीम प्लेयर' नहीं है. इसलिए सिद्धू को PCC प्रमुख बनाया जाना या संभावित उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया जाना इनमें से कई नेताओं को आसानी से नहीं पचेगा.
काफी संभावना है कि कुछ महीनों के बाद कैप्टन के 'भूल सुधार' की सफलता या विफलता तथा किसान आंदोलन जैसी बाहरी घटनाओं के आधार पर सीएम की स्थिति या तो मजबूत होगी या और कमजोर. ऐसी स्थिति में उनके प्रतिद्वंदी भी या तो मजबूत हो सकते हैं या हाशिए पर जा सकते हैं.किसी भी मामले में पार्टी के लिए विभिन्न प्रतिस्पर्धी गुटों के बीच संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो सकता है.
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