कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने रविवार को नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot singh sidhu) को चार कार्यकारी अध्यक्षों के साथ पार्टी की पंजाब इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त किया. सोनिया ने उनकी पदोन्नति के सभी विरोधों को खारिज करते हुए अध्यक्ष पद पर उनकी नियुक्ति तय की. लेकिन सवाल ये है कि क्या पंजाब कांग्रेस का झगड़ा खत्म हो गया है. और क्या इसे अमरिंदर की हार और सिद्धू की जीत कहा जाएगा?
चार कार्यकारी अध्यक्ष भी
सोनिया ने इसके साथ ही संगत सिंह गिलजियान, सुखविंदर सिंह डैनी, पवन गोयल और कुलजीत सिंह नागरा को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है.
सिद्धू के नाम का विरोध मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी किया था. इसे लेकर अमरिंदर ने कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र भी लिखा था, लेकिन शनिवार को पार्टी के प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने नाराज सीएम को शांत करने के लिए चंडीगढ़ के लिए उड़ान भरी थी. बैठक के बाद, अमरिंदर सिंह ने दोहराया कि पार्टी प्रमुख का कोई भी निर्णय स्वीकार्य होगा, लेकिन अमरिंदर ने कहा कि उन्होंने कुछ मुद्दे उठाए जिन्हें लेकर रावत ने कहा कि वह सोनिया के साथ इन पर चर्चा करेंगे.
माफी की मांग का क्या?
सिद्धू की नियुक्ति को लेकर चल रही खींचतान के बीच नाराज मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने यहां शनिवार को कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी हरीश रावत से मुलाकात की थी और उनसे साफ तौर पर कहा था कि सिद्धू जब तक अपने अपमानजनक ट्वीट के लिए माफी नहीं मांग लेते, वह उनसे नहीं मिलेंगे. तो फिर इस मांग का क्या हुआ? अमरिंदर ने इससे पहले आलाकमान को साफ कहा था कि पंजाब के मामलों में इतना दखल न दें.
अमरिंदर के समर्थन में खुलकर आए विधायक
10 विधायक रविवार को मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के समर्थन में आए और पार्टी आलाकमान से सिद्धू को अध्यक्ष न बनाने की अपील की. मुख्यमंत्री के इस रुख का समर्थन करते हुए कि वह सिद्धू से तब तक नहीं मिलेंगे, जब तक कि वह अपने 'अपमानजनक' ट्वीट के लिए माफी नहीं मांगते, विधायकों ने एक संयुक्त बयान में कहा, "सिद्धू को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए ताकि पार्टी और सरकार मिलकर काम कर सकें."
हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए आप के तीन विधायकों ने कहा कि सिद्धू एक सेलिब्रिटी हैं और निस्संदेह पार्टी के लिए एक संपत्ति हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से अपनी ही पार्टी और सरकार की निंदा और आलोचना करने से कैडरों में दरार पैदा हुई और इससे पार्टी कमजोर हुई.
इसमें कोई संदेह नहीं कि राज्य पीसीसी प्रमुख की नियुक्ति पार्टी आलाकमान का विशेषाधिकार है, लेकिन साथ ही, सार्वजनिक रूप से गंदे लिनन धोने से पिछले कुछ महीनों के दौरान पार्टी का ग्राफ कम हुआ हैअमरिंदर खेमे के विधायक
उन्होंने कहा कि अमरिंदर सिंह के कारण ही पार्टी ने 1984 में दरबार साहिब पर हमले और दिल्ली और देश में अन्य जगहों पर सिखों के नरसंहार के बाद भी पंजाब में सत्ता हासिल की.
उन्होंने कहा, वह राज्य में समाज के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से किसानों, जिनके लिए उन्होंने 2004 के जल समझौते की समाप्ति अधिनियम को पारित करते हुए मुख्यमंत्री के रूप में अपनी कुर्सी को खतरे में डाल दिया था, उन्हें बहुत सम्मान प्राप्त है.
अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज करने के लिए बादल परिवार के हाथों अत्यधिक प्रतिशोध की राजनीति का भी सामना करना पड़ा था.
विधायकों ने कहा कि चूंकि चुनाव में केवल छह महीने बचे हैं, इसलिए पार्टी को अलग-अलग दिशाओं में खींचने से 2022 के चुनावों में उसकी संभावनाओं को नुकसान होगा.
सांसदों का विरोध
रविवार को पंजाब के कांग्रेस सांसदों ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का समय मांगा. सूत्रों का कहना है कि उनमें से ज्यादातर का मानना है कि नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए. सूत्रों ने कहा कि दोनों सदनों के कांग्रेस सांसदों ने रविवार दोपहर राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा के आवास पर मुलाकात की और सिद्धू को राज्य कांग्रेस प्रमुख के रूप में नियुक्त करने के संभावित कदम पर चर्चा की.
बैठक के बारे में पूछे जाने पर, आनंदपुर साहिब के सांसद मनीष तिवारी, जो गैर-सिख राज्य प्रमुख के दावेदार माने जाते हैं, ने कहा, पार्टी के आंतरिक मामलों पर केवल पार्टी मंचों पर चर्चा की जाएगी. बाजवा, जो मेजबान थे, ने बैठक को तवज्जो नहीं देते हुए कहा, हम सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ हैं.. वे जो भी निर्णय लेंगे, हर कोई उसे स्वीकार करेगा.
इससे पहले मौजूदा प्रमुख सुनील जाखड़ ने सभी 80 विधायकों की बैठक बुलाई. उन्होंने नियुक्ति के लिए आलाकमान को अधिकृत करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करने का फैसला लिया. रविवार को एक बयान में, जाखड़ ने कहा कि विधायक और जिलाध्यक्ष एक प्रस्ताव पारित करेंगे, जिसमें लिखा जाएगा कि पार्टी आलाकमान जो भी निर्णय लेगा, वह राज्य इकाई को स्वीकार्य होगा. इसके बाद यह प्रस्ताव कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास भेजा जाएगा. फिलहाल के लिए झगड़े का हल निकलता दिख रहा है लेकिन ये तूफान से पहले की शांति हो सकती है.
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