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Modi @4: माया,ममता,अखिलेश,राहुल का मिलन ‘पार्टी’ बिगाड़ सकता है?

2014 में कई सीटों पर तो बीजेपी उम्मीदवार को 50 परसेंट से ज्यादा वोट मिले थे  

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इस साल मार्च में गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में इसकी झलक मिली थी कि दो बिछड़े यार मिल जाएं तो मोदी जी के जश्न में पानी फेर सकते हैं. पर ये झलक आधी-अधूरी सी थी. लेकिन पिछले हफ्ते कर्नाटक में जिस तरह से विपक्ष की सभी बड़ी पार्टियों ने एक दूसरे की हौसला अफजाई की उससे इतना तो साफ हो गया है कि अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने विपक्ष बिखरा नहीं होगा.

कौन इसकी अगुवाई करेगा, किस नेता के नाम पर सहमति होगी, कौन सी पार्टी कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी, उन राज्यों में क्या होगा, जहां कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी से नहीं बल्कि रीजनल पार्टियों से ही है. ये सारे अनसुलझे सवाल हैं. लेकिन इतना तय है कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को सामूहिक विपक्ष की चुनौती मिलेगी. इससे बीजेपी की सेहत पर कितना असर होगा?

बीजेपी के पक्ष में बोलने वालों का जवाब होगा- कोई फर्क नहीं पड़ेगा. और उनकी दलीलें कुछ इस तरह की होंगी.

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2014 में बीजेपी ने महज 428 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 282 सीटों पर सफलता मिली. मतलब 65 परसेंट का स्ट्राइक रेट. अगर बीजेपी के स्ट्राइक रेट में थोड़ी कमी भी आती है और वो ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती है तो नुकसान की भरपाई हो जाएगी.

2014 में कई सीटों पर तो बीजेपी उम्मीदवार को 50 परसेंट से ज्यादा वोट मिले थे

2014 में 70 से ज्यादा सीटों पर वोटर टर्नआउट पिछले चुनाव के मुकाबले 15 परसेंट से ज्यादा रहा. इनमें से 67 सीटों पर बीजेपी और उसके सहयोगियों को जीत मिली. कहने का मतलब यह है कि जिन इलाकों में ज्यादा नए वोटर्स ने मतदान किया वहां बीजेपी को अपार सफलता मिली. इसकी वजह मोदी प्रीमियम है जिसका जादू अब भी बरकरार है.

2014 में बीजेपी की जीत कितनी दमदार थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां पूरे देश में विनर और रनर अप के बीच वोट का औसत अंतर 15 परसेंट का रहा, वहीं जिन सीटों पर बीजेपी की जीत हुई वहां विनर और रनर अप के बीच का औसत अंतर 18 परसेंट का रहा. कई सीटों पर तो बीजेपी के जीतने वाले उम्मीदवार को 50 परसेंट से ज्यादा वोट मिले. वहां सारे विरोधियों के मिलने से कोई फर्क पड़ेगा क्या?

ये रिकॉर्ड अपने आप में इतने दमदार हैं कि इसमें थोड़ी कमी आने के बावजूद बीजेपी के नंबर में बड़ा अंतर मुमकिन नहीं लगता है.

ये भी पढ़ें-कांग्रेस का खजाना खाली, 2019 में कैसे करेगी मोदी से मुकाबला?

लेकिन इंडेक्स ऑफ अपोजिशन यूनिटी की बात करने वाले इसका ठीक उलट तर्क देते हैं. इंडेक्स ऑफ अपोजिशन यूनिटी यानी सत्ता को चैलेंज करने वालों में कितनी एकता है. जितनी ज्यादा एकता होगी, सत्ता पक्ष को अपनी कुर्सी बचाने में उतनी ही मुसीबत बढ़ने वाली है. अगर विपक्षी एकता काफी बढ़ती है तो बीजेपी को किस तरह की मुश्किलें आ सकती हैं, दूसरे तरफ की दलीलें सुनिए-

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स्नैपशॉट
  • 2014 में बीजेपी को जो 282 सीटें मिली थी.
  • उनमें से सिर्फ 137 सीटों पर ही बीजेपी के उम्मीदवार को 50 परसेंट से ज्यादा वोट मिले.
  • बाकी 145 सीटों पर तो वोट शेयर कम था.

माना कि 137 सीटों पर बीजेपी को साझा विपक्ष से ज्यादा नुकसान नहीं होगा. लेकिन इतने भर से काम चल जाएगा क्या.

हाल के उपचुनाव में देखा गया है कि साझा विपक्ष के सामने में 50 परसेंट से ज्यादा वोट शेयर वाली सीट भी सुरक्षित नहीं है. गोरखपुर और फूलपुर में 2014 में बीजेपी को 52 परसेंट से ज्यादा वोट मिले थे. दोनों ही जगह साझा विपक्ष के सामने बीजेपी के वोट शेयर में भारी कमी आई. मतलब यह कि 2014 के हिसाब से जिन 137 सीटों को सेफ माना जा रहा है वो भी उतनी सुरक्षित नहीं हैं.
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  • 2014 में सिर्फ पांच राज्यों—गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश- में बीजेपी को 50 परसेंट से ज्यादा वोट मिले थे. क्या इन राज्यों में बीजेपी अपना प्रदर्शन इतने ही दमदार तरीके से दोहरा पाएगी?
  • बीजेपी को सबसे ज्यादा 71 सीट उत्तर प्रदेश में मिले थे. वहां साझा विपक्ष पूरे आकलन बिगाड़ सकता है. एक अनुमान के हिसाब से पिछले साल हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को अगर बेंचमार्क मान लिया जाए तो साझा विपक्ष के सामने बीजेपी को राज्य में 50 सीटों का नुकसान हो सकता है.
  • 2014 में मोदी लहर के बावजूद भी देश के 240 लोकसभा सीटों में बीजेपी की पकड़ काफी कम रही. ये सीट उत्तर और पश्चिम भारत से बाहर के राज्यों में हैं. इन 240 सीटों में बीजेपी को 17 परसेंट वोट के साथ सिर्फ 39 सीटें मिली.
  • 2014 में जहां बीजेपी को एक लोकसभा सीट जीतने के लिए सिर्फ 6 लाख वोटों की जरूरत पड़ी, वहीं कांग्रेस को 1 सीट हासिल करने के लिए 24 लाख वोटों को अपनी झोली में करना पड़ा. वोटों और सीटों में इतना बड़ा अंतर पहले कभी नहीं देखा गया था. अगर 2019 में इसमें मामूली बदलाव भी होता है तो सारे समीकरण बदल सकते हैं.

दोनों पक्षों की दलीलें आपने देखी. विपक्षियों के एक साथ आने से एक बात तो तय है. 2019 में चुनाव का नतीजा अभी से तय नहीं माना जा सकता है.

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(नोट: इस लेख के सभी आकड़े CSDS से लिए गए हैं)

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