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Pappu Yadav: लालू के करीबी रहे अब कांग्रेस में शामिल, सीमांचल की राजनीति पर कितना असर?

Pappu Yadav joins Congress: कांग्रेस में शामिल होने से पहले पप्पू यादव ने लालू यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की थी.

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राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Pappu Yadav) कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. उन्होंने अपनी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का भी विलय कर दिया है. बुधवार, 20 मार्च को उन्होंने दिल्ली में 'हाथ' थाम लिया. लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) से पहले एक और राजनीतिक हैंडशेक. इससे पहले उन्होंने लालू यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की थी.

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पप्पू यादव ने क्यों थामा कांग्रेस का दामन? JAP का कैसा रहा अब तक का प्रदर्शन? सीमांचल में पप्पू यादव की कितनी पैठ? उनके आने से लोकसभा में कांग्रेस को कितना फायदा होगा?

कांग्रेस में शामिल होने पर क्या बोले पप्पू यादव?

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि 'जन अधिकार पार्टी' और पप्पू यादव किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. पप्पू यादव एक कद्दावर नेता हैं, वे आज कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व, नीतियों और दिशा से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं. वे 'जन अधिकार पार्टी' का भी कांग्रेस में विलय कर रहे हैं, ये विलय साधारण नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक है.

वहीं पप्पू यादव ने कहा,

"हमारी पूरी विचारधारा कांग्रेस की आइडियोलॉजी के साथ रही है. कांग्रेस की विचारधारा हमेशा हमें ऊर्जा देती रही है. हमारी राजनीति की नींव सेक्यूलर रही है. किसी भी धर्म पर कोई हमला नहीं. हर परिस्थिति में दूसरे के विचारों का सम्मान हमारा इतिहास रहा है."

इसके साथ ही उन्होंने कहा, "दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह से लड़ने की हिम्मत राहुल गांधी में है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का विश्वास मेरे लिए सबकुछ है. दो लोगों के विश्वास ने हमें हिम्मत दी है."

ऐसा पहली बार नहीं है जब पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल हुए हैं. इससे पहले भी वो पार्टी के साथ रह चुके हैं.  वहीं उनकी पत्नी रंजीत रंजन राज्यसभा सदस्य हैं. उन्हें कांग्रेस ने 2022 में छत्तीसगढ़ से राज्यसभा भेजा था.

Pappu Yadav joins Congress: कांग्रेस में शामिल होने से पहले पप्पू यादव ने लालू यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की थी.

कांग्रेस में क्यों शामिल हुए पप्पू यादव?

लोकसभा चुनाव के ऐलान के ठीक बाद ही पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने के बाद लोगों के मन में जो सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर पप्पू यादव को कांग्रेस का दामन क्यों थामना पड़ा?

इस सवाल के जवाब में क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, "पप्पू यादव ने लोकसभा, विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें कहीं से भी जीत नहीं मिली. और वोट भी बहुत कम मिले. पटना विधानसभा में तो बहुत कम वोट मिले. तो उन्होंने ये समझ लिया कि अकेले चलने का कोई फायदा नहीं है और कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है."

इसके साथ ही वो कहते हैं,

"पप्पू यादव ने भी देखा कि कोई भी गठबंधन उन्हें तरजीह नहीं दे रहा है. न एनडीए की ओर से कोई बातचीत हुई और न ही महागठबंधन की ओर से कोई पहल हुई. जिसके बाद उन्होंने लालू यादव से तार जोड़ा और कांग्रेस में शामिल हो गए."
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बता दें कि कांग्रेस में शामिल होने से पहले पप्पू यादव ने लालू यादव और तेजस्वी यादव से राबड़ी आवास पर मुलाकात की थी. मुलाकात की तस्वीर शेयर करते हुए उन्होंने लिखा, "बिहार में INDIA गठबंधन की मजबूती, सीमांचल, कोसी, मिथिलांचल में 100% सफलता लक्ष्य है."

पप्पू यादव RJD से सांसद भी रह चुके हैं. एक वक्त वो लालू यादव के करीबी माने जाते थे. ऐसे में सवाल उठता है कि पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय क्यों नहीं किया? क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं, "पार्टी अध्यक्ष के रूप में लालू यादव खुद हैं, तेजस्वी उनकी विरासत संभाल रहे हैं. ऐसे में वहां स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक छवि को आगे बढ़ाने के लिए पप्पू यादव के पास ज्यादा स्कोप नहीं था."

JAP का लोकसभा और विधानसभा में प्रदर्शन

2014 लोकसभा चुनाव में बिहार में बीजेपी की लहर के बावजूद पप्पू यादव ने न सिर्फ बीजेपी बल्कि मधेपुरा सीट से चार बार के सांसद रहे शरद यादव को करीब 50 हजार वोटों के अंतर से हराया था. वह पांचवीं बार लोकसभा के सदस्य चुने गए.

लेकिन ठीक एक साल बाद यानी 2015 में लालू यादव ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उन्हें RJD से बाहर का रास्ता दिखा दिया. मई 2015 में उन्होंने अपनी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का गठन किया. 2019 लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने मधेपुरा से चुनाव लड़ा. लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. पप्पू यादव के खाते में महज 8 फीसदी वोट ही आए. इस सीट पर जेडीयू के दिनेश चंद्र यादव ने आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे शरद यादव को हराकर भारी अंतर से जीत दर्ज की.

2020 बिहार विधानसभा चुनाव में भी पप्पू यादव ने प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन (PDA) के तहत ताल ठोकी. PDA में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, चन्द्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया और बहुजन मुक्ति पार्टी शामिल थी.

पप्पू यादव की पार्टी ने बिहार की 243 में से 148 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. जीतना तो दूर कोई भी प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा सका. पार्टी को मात्र 1.03 फीसदी वोट ही मिले.
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सीमांचल में पप्पू यादव की पैठ

बिहार में पप्पू यादव की पहचान बाहुबली के रूप में रही है. सीमांचल क्षेत्र में उनकी पैठ मानी जाती है. वो यहां की अलग-अलग सीटों से कई बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. 1991, 1996, 1999 पूर्णिया, फिर 2004 और 2014 में मधेपुरा से सांसद रह चुके हैं. पप्पू यादव स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर भी चुनाव जीत चुके हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

जानकारों की मानें तो पप्पू यादव पिछड़ों और यादवों को लेकर आगे बढ़े. इलाके में उन्होंने खुद की रॉबिनहुड वाली छवि बनाई, जिसका उन्हें चुनावों में खूब फायदा हुआ.

माना जा रहा है कि इस बार पप्पू यादव को कांग्रेस पूर्णिया से मैदान में उतार सकती है. बता दें उनका मुकाबला जेडीयू के प्रत्याशी से होगा. NDA सीट शेयरिंग के बाद पूर्णिया सीट जेडीयू के हिस्से में गई है.

पप्पू यादव के आने से कांग्रेस को कितना फायदा?

सूत्र बताते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़ने ने सीमांचल में पप्पू यादव को अपने फोल्ड में करने के लिए लालू यादव से भी बात की थी. कहा जा रहा है कि पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने में उनकी पत्नी रंजीत रंजन का भी बड़ा हाथ है.

लोकसभा की बात करें तो कांग्रेस के पास बिहार में सिर्फ किशनगंज सीट है. ऐसे में पप्पू यादव के साथ आने से पार्टी को सीमांचल में और माइलेज मिलने की उम्मीद है.

"पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी वन मैन आर्मी की तरह थी. पप्पू यादव कहीं भी पहुंच जाते हैं. लोगों की आर्थिक मदद करते हैं. विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने अपनी अलग छवि बनाई है. जिसका कांग्रेस को फायदा होगा."
वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि "पिछले कुछ सालों में उन्होंने अपनी छवि बदलने की बहुत कोशिश की है. सेवा का बहुत काम किया. उन्होंने अपने आवास का नाम भी सेवाश्रय रख दिया था."

कोरोना काल के दौरान और 2019 में पटना बाढ़ के दौरान पप्पू यादव की लोगों की मदद करते हुए तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए थे.

"वो एक बाहुबली से हटकर एक देवदूत के रूप में अपनी छवि बनाना चाहते हैं. ये चुनाव तय करेगा की उनकी छवि कितनी बदली है."

पप्पू यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त जो एफिडेविट दाखिल किया था, उसमें उन्होंने अपने ऊपर 31 क्रिमिनल केस होने की बात मानी थी. इनमें से 10 केस में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है.

बता दें कि साल 1998 के अजीत सरकार हत्याकांड में उन्हें साल 2008 में सजा हुई थी और जेल जाना पड़ा था. हालांकि, साल 2013 में पटना हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में उन्हें बाइज्जत बरी भी कर दिया था.

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