"कल एनडीए गठबंधन ने बिहार लोकसभा के लिए 40 उम्मीदवारों की सूची की घोषणा की. हमारी पार्टी के पांच सांसद थे और मैंने पूरी ईमानदारी से काम किया. हमारे और हमारी पार्टी के साथ अन्याय हुआ है इसलिए, मैं केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देता हूं.” इन शब्दों के साथ राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने मंगलवार (19 मार्च) को अपना रूख साफ कर दिया.
अब सवाल है कि NDA की सीट शेयरिंग में पारस को क्यों जगह नहीं मिली? पशुपति पारस का अगल कदम क्या होगा? और RLJP के चुनाव लड़ने का क्या असर होगा?
इन सवालों के जवाब तलाशने से पहले जानते हैं कि पशुपति पारस ने क्या कहा? दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पशुपति पारस ने कहा, "हमारे सभी सांसद अपनी सीटिंग सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे."
"हमने किसी से बात नहीं की है लेकिन मैं हाजीपुर से (लोकसभा चुनाव) लड़ूंगा. हमारे सभी मौजूदा सांसद अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ेंगे. यह हमारा और हमारी पार्टी का निर्णय है. अगर हमें उचित सम्मान नहीं दिया गया तो हमारी पार्टी कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है."पशुपति कुमार पारस, अध्यक्ष, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी
PTI के अनुसार, पारस ने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दिया है, वो अभी भी एनडीए का हिस्सा है. राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता श्रवण कुमार अग्रवाल ने कहा, "हम अब भी एनडीए के साथ हैं. हम पार्टी की बैठक के दौरान अपनी अगली रणनीति तय करेंगे."
NDA ने क्यों नहीं दी पारस को तवज्जो?
बिहार में एनडीए की हुई सीट शेयरिंग में बीजेपी 17, जेडीयू 16, चिराग 5, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी को एक-एक सीट मिली है. जबकि राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं आई है. हालांकि, मौजूदा समय में पार्टी के पांच सांसद हैं.
आरएलजेपी से जुड़े सूत्रों की मानें तो पूरा मामला एक सीट को लेकर फंसा, जिसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदल गया. दरअसल, पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान दोनों हाजीपुर से चुनाव लड़ना चाहते थे. ऐसे में बीजेपी के सामने संकट बड़ा था, लेकिन पार्टी ने चिराग का चुनाव किया.
जैसा कि क्विंट हिंदी की 11 मार्च की रिपोर्ट में बताया गया था कि बीजेपी पशुपति पारस की जगह चिराग पर फोकस किये हुए है और उसकी वजह है पासवान वोट.
जानकारी के अनुसार, बिहार में दलित मतदताओं की आबादी 20 फीसदी के करीब है और इसमें से 5 से 6 फीसदी पासवान वोटर्स है. बीजेपी को लगता है कि पासवान का जुड़ाव चिराग के साथ है.
दरअसल, हाजीपुर सीट दिवंगत नेता रामविलास पासवान का गढ़ रहा है. वो 9 बार यहां से सांसद रहे हैं. 2019 में रामविलास पासवान ने ही पशुपति पारस को हाजीपुर से चुनाव लड़ाया था, जिसके बाद वो लोकसभा के सदस्य चुने गये थे. लेकिन रामविलास के निधन और एलजेपी में टूट के बाद पूरी स्थिति बदल गई.
पशुपति पारस सभी सांसदों को लेकर अलग हो गये और पार्टी पर कब्जा जमा लिया, जिसके बाद चिराग अकेले पड़ गये. हालांकि, इस दौरान चिराग ने कभी बीजेपी और पीएम मोदी के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की, बल्कि खुद को प्रधानमंत्री का 'हनुमान' बताया, जो उनके लिए प्लस प्वाइंट रहा."
इतना ही नहीं, पार्टी में टूट के बाद से चिराग पासवान ने साल 2021 के अंत में बिहार की दो सीटों पर उपचुनाव लड़े थे. इन दोनों सीटों पर चिराग ने अपने उम्मीदवारों को निर्दलीय मैदान में उतारा था और करीब 6 फीसदी वोट हासिल किये.
चिराग के साथ वोटों की इस ताकत को देखते हुए बीजेपी ने भी कुढ़नी समेत बिहार के कई विधानसभा उपचुनावों में चिराग से अपने उम्मीदवार के लिए प्रचार कराया था. हालांकि, इस दौरान वो एनडीए का हिस्सा नहीं थे.
जानकारी के अनुसार, पशुपति और चिराग (जो जमुई से सांसद हैं) दोनों हाजीपुर से लड़कर खुद को रामविलास का उत्तराधिकारी बताना चाहते हैं. उनको लगता है कि जो हाजीपुर से लड़ेंगे, वहीं रामविलास की राजनीतिक विरासत का असली हकदार होगा.
पशुपति कुमार पारस यह दावा करते रहे हैं कि रामविलास पासवान के असली राजनीतिक उत्तराधिकारी वही हैं और रामविलास ने खुद जीवित रहते हुए उन्हें हाजीपुर सीट से चुनाव लड़वाया था.
इसके अलावा, दोनों खुद को पासवानों का बिहार में सबसे बड़ा नेता भी बनाने की होड़ में जुटे हैं. इसीलिए हाजीपुर को लेकर रार मची है.
सूत्रों की मानें, अगर हाजीपुर सीट बीजेपी पशुपति पारस को दे दी, तो वह सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार हो जाते.
बिहार बीजेपी के प्रवक्ता कुंतल कृष्ण ने कहा, "एनडीए गठबंधन नहीं, एक परिवार है और पशुपति पारस बिहार एनडीए के न सिर्फ अभिन्न अंग है अपितु अभिभावक हैं. NDA में सब कुछ ठीक है, जो भी निर्णय गठबंधन मिल बैठ कर लिया है, वह सबको मान्य है."
बीजेपी के एक नेता ने क्विंट हिंदी से कहा, "पशुपति पारस ने भले ही पार्टी पर कब्जा कर लिया हो, लेकिन राजनीतिक तौर पर मजबूत नहीं है. उनकी पहचान रामविलास पासवान के भाई के सिवा बिहार में कुछ नहीं है जबकि चिराग का राजनैतिक जनाधार है."
सूत्रों की मानें तो बीजेपी को लगता है कि चिराग पासवान का राजनीति में भविष्य बचा हुआ है जबकि पशुपति पारस की उम्र की वजह से अब भविष्य उनके साथ नहीं है.
दरअसल, रामविलास पासवान के निधन और पार्टी में टूट के बाद भी देखा गया कि एलजेपी समर्थकों की सहानुभूति चिराग पासवान के साथ थी. इसलिए बीजेपी उनको मनाने की कोशिश में काफी पहले से लगी हुए थी, नहीं तो बीजेपी के सामने भी पासवान वोटों के दूर जाने का खतरा था.
इसके अलावा, पशुपति पर चिराग के भारी पड़ने की वजह, उनकी राजनैतिक सक्रियता रही. चिराग लगातार बिहार का दौरा और रैलिया करते रहे. इस दौरान अच्छी खासी भीड़ उनके साथ दिखी जबकि पशुपति कुमार पारस जमीनी स्तर पर बहुत एक्टिव नहीं दिखे.
वहीं, चिराग की 'जन आशीर्वाद यात्रा' के दौरान जिस तरह से उन्हें समर्थन मिला, उससे बीजेपी का लगा की पासवान वोटर्स चिराग के साथ है और इसलिए पार्टी ने पशुपति की जगह चिराग को तवज्जो दी.
पशुपति पारस का अगला कदम क्या होगा?
पारस ने साफ कह दिया है कि वो और उनके सभी सांसद लोकसभा का चुनाव अपनी मौजूदा सीट से लड़ेंगे यानी हाजीपुर में चिराग पासवान के सामने उनके चाचा होंगे. लेकिन क्या वो अकेले चुनाव लड़ेंगे या महागठबंधन के साथ, ये अभी साफ नहीं है.
क्विंट हिंदी से बात करते हुए RLJP के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण कुमार अग्रवाल ने कहा, "हम लोग पटना जा रहे हैं. वहां पर RLJP के सभी जिला से लेकर राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक बुलाई गई है. हम उसमें सबसे बात करके आगे का फैसला करेंगे. अभी हमसे और न हमने किसी से कोई संपर्क साधा है."
हालांकि, सूत्रों की मानें तो आरजेडी की तरफ से पशुपति कुमार पारस को कुछ ऑफर दिया जा सकता है. लेकिन पांच सीट मिलना मुश्किल है.
RJD के एक नेता ने कहा, "हाजीपुर, नवादा और समस्तीपुर में सीटों की गुंजाइश उनके लिए बन सकती है. लेकिन अभी कुछ तय नहीं है."
जानकारों की मानें तो हाजीपुर, नवादा में तो आरजेडी के पास कोई मजबूद उम्मीदवार नहीं है. ऐसे में पारस का कुछ लाभ महागठबंधन में हो सकता है. लेकिन बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है क्योंकि पारस बिहार की सियासत में बहुत मौजूं नहीं रह गये हैं. इसके अलावा उनके (RLJP) सांसदों का भी क्षेत्र में कोई बहुत प्रभाव नहीं है. ऐसे में आरजेडी भी बहुत तवज्जो पारस को नहीं देगी.
RLJP के चुनाव लड़ने का क्या असर होगा?
रामविलास के समय से ही पशुपति कुमार पारस संगठन का काम देखते रहे हैं. लेकिन उनके पास मजबूत जनाधार नहीं हैं. जानकारों की मानें, पशुपति कुमार पारस के चुनाव लड़ने से एनडीए को नुकसान नहीं होगा क्योंकि अब तक पशुपति पारस की ताकत बिहार में देखने को नहीं मिली है, जबकि चिराग हर मौके पर भारी दिखें हैं.
वहीं, अगर वो आरजेडी खेमें में भी जाते हैं तो महागठबंधन को लाभ मिलना मुश्किल है, वजह RJD के यादव वोटर्स. ऐसा देखा गया है कि यादव वोटर्स बहुत ज्यादा दलितों का समर्थन नहीं करते हैं. ऐसे में पशुपति पारस के लिए आगे संकट ही है.
इन सबके बीच, सवाल है कि चाचा पशुपति पारस भतीजे चिराग को हाजीपुर में कितना डेंट लगा पाएंगे, तो इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी कुछ दिन पूर्व हाजीपुर में हुई चिराग के रैली में भारी भीड़ देखने को मिली थी. इस दौरान वहां चिराग और रामविलास पासवान के समर्थन में जमकर नारे लगे थे जबकि पशुपति पारस अब तक हाजीपुर में केंद्रीय मंत्री रहते हुए भी कोई बड़ी जनसभा तक नहीं कर पाये हैं.
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