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कर्नाटक चुनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केरल दौरे के क्या मायने हैं?

BJP केरल में अपनी पहुंच को बढ़ाना चाह रही है. इसके तहत राज्य में कई तरह के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) दो दिवसीय दौरे पर केरल पहुंचे हैं. अपने दौरे के पहले दिन पीएम मोदी ने कोच्चि में दो किलोमीटर लंबा रोड शो किया और इसके बाद 'युवम 2023' कार्यक्रम को संबोधित किया. मंगलवार (25 अप्रैल) को भी पीएम मोदी केरल में डिजिटल साइंस पार्क की आधारशिला रखने के साथ वाटर मेट्रो और वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को हरी झंडी दिखायी. इन सबके बीच, अब सवाल उठ रहा है कि जब चुनाव कर्नाटक में चल रहा है तो पीएम मोदी केरल पर इतना फोकस क्यों किए हुए हैं? आइये यहां आपको एक-एक कर इसका जवाब देते हैं.

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केरल में पीएम का प्रोग्राम

पीएम मोदी 24 अप्रैल को कोच्चि पहुंचे थे. उसके बाद से वो लगातार कार्यक्रमों में व्यस्त हैं. अपने दो किलोमीटर लंबे रोड शो के दौरान मोदी राज्य के पांरपरिक परिधान में नजर आये और करीब 15 मिनट पैदल चलकर जनता का अभिवादन स्वीकार किया. ये नजारा कुछ ऐसा था, जैसा-गुजरात, वाराणसी और बंगाल में आमतौर पर पीएम मोदी करते नजर आते हैं. पीएम ने मंगलवार को केरल में देश के पहले डिजिटल साइंस पार्क की आधारशिला रखी.

इसके अलावा प्रधानमंत्री ने तिरुवनंतपुरम में सेंट्रल स्टेडियम में 3200 करोड़ रुपए से अधिक की विकास परियोजनाओं का भी शिलान्यास किया. कुल मिलाकर देखें तो ऐसा लगता है कि पीएम मोदी का दो दिन पूरा ध्यान केरल पर है, वो भी तब कर्नाटक विधानसभा चुनाव की जंग अपने चरम पर है.

केरल पर बीजेपी का क्यों ध्यान?

कर्नाटक चुनाव के बीच केरल पहुंचकर पीएम मोदी ने सबका ध्यान अपने तरफ आकर्षित कर लिया है. दो दिन से पीएम मोदी ने केरल में विकास का पिटारा खोल दिया है और लगातार जनता के बीच बीजेपी की भागीदारी को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन ये सब ऐसे ही नहीं किया जा रहा है. इसके अपने कुछ मायने हैं.

जानकारों की मानें तो, बीजेपी केरल में अपनी पहुंच को बढ़ाना चाह रही है. इसके तहत राज्य में कई तरह के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. 2024 से पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों के एकजुट होने के संकेत और कई राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी भी संभल कर आगे बढ़ रही है. कर्नाटक चुनाव में को लेकर सर्वे भी बीजेपी के लिए बहुत अच्छे नहीं हैं. ऐसे में पार्टी रणनीति के तहत केरल में आगे बढ़ रही है.

इसके अलावा, केरल वो अकेला राज्य हैं, जहां वामपंथ की सत्ता बची है. नार्थ ईस्ट के कई राज्यों में सफलता पाने के बाद बंगाल में ममता बनर्जी को हुए नुकसान ने बीजेपी को संजीवनी दी है. पार्टी को लगता है कि केरल में भी उसके लिए संभावनाएं हैं. ऐसे में पार्टी ने संगठन के विस्तार की जिम्मेदारी अपने सबसे बड़े चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंप दी है. इसी के तहत लगातार पीएम मोदी केरल को केंद्र में रखे हुए हैं.

हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार कुमार पंकज की मानें तो, बीजेपी केरल में जनता में ये संदेश देना चाहती है कि उसका उन राज्यों पर भी ध्यान हैं, जहां उसकी सत्ता नहीं है.

पीएम मोदी 2019 के बाद से 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के विजन पर काम कर रहे हैं. वो उत्तर से लेकर पूरब तक, पश्चिम से लेकर दक्षिण तक एक संदेश चाहते हैं कि पूरा देश एक है और हम सबको एक मानकर विकास कर रहे हैं.
कुमार पंकज, वरिष्ठ पत्रकार
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केरल में कैसे भागीदारी बढ़ा रही BJP?

बीजेपी केरल में लगातार अपने पांव पसारने की कोशिश में लगी है. पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को 12.4 फीसदी वोट हासिल हुआ, जो कि 2016 के 10.53 प्रतिशत से ज्यादा है. हालांकि, पार्टी को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई. India Votes.com के मुताबिक, 2014 में NDA ने केरल में 10.9 प्रतिशत मत हासिल किये थे जबकि 2019 में ये आकंड़ा बढ़कर 15.6 प्रतिशत हो गया था.

पार्टी राज्य में भले ही 2019 और 2021 में अपने सांसद और विधायक न जीता पायी हो. लेकिन उसका जनाधार जरूर बढ़ा है. इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए बीजेपी राज्य में मुसलमानों और ईसाई धर्म के लोगों से अपना संवाद स्थापित करने में जुटी है.

पीएम मोदी भी अपने केरल दौरे के दूसरे दिन राज्य के विभिन्न ईसाई संप्रदायों के आठ बिशपों के एक समूह से मिल सकते हैं. तीन सप्ताह में ईसाई धर्म के लोगों के साथ यह दूसरी मुलाकात होगी.

बीजेपी नेता की यह मुलाकात पार्टी के 'स्नेहा यात्रा' के बाद हो रही है, जिसके तहत नेताओं ने ईस्टर और ईद के दौरान ईसाई और मुस्लिम घरों का दौरा किया था. बीजेपी की इस अभियान को उस समय बल मिला जब हाल ही में सिरो-मालाबार कैथोलिक चर्च के एक वरिष्ठ बिशप-थालास्सेरी आर्कबिशप मार जोसेफ पैम्प्लानी ने कहा कि अगर केंद्र ने रबर खरीद की दर को बढ़ाकर 300 रुपये प्रति किलोग्राम करने का वादा किया तो, पार्टी को राज्य से सांसद मिल सकता है.

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वहीं, 14 अप्रैल को विशु, केरल नव वर्ष दिवस पर केरल में बीजेपी नेताओं ने बिशप और चर्च के अन्य नेताओं को नाश्ते के साथ ब्रेकफास्ट किया था. कुल मिलाकर बीजेपी लगातार ईसाई समुदाय को आकर्षित करने में लगी है.

2011 की भारत की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, केरल में 54.73% आबादी हिंदू है, 26.56% मुस्लिम हैं और 18.38% ईसाई हैं, जबकि बाकी 00.33% अन्य धर्मों का पालन करते हैं या उनका कोई धर्म नहीं है.

इसके अलावा, बीजेपी राज्य में विकास की सौगात देकर भी जनता में संदेश देने की कोशिश कर रही है. अपने दौरे के पहले दिन 'युवम 2023' में शामिल हुए पीएम मोदी ने राज्य की सत्ताधारी सीपीआई (एम) और विपक्षी कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा. इस दौरान, उन्होंने ये भी बताया कि केंद्र सरकार युवाओं को नौकरी देने से लेकर विकास को लेकर क्या-क्या कर रही है.

लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी?

जानकारों की मानें तो, बीजेपी को 2024 में कुछ जगहों पर सीटों का नुकसान हो सकता है. ऐसे में पार्टी उन जगहों पर अपनी पहुंच बढ़ा रही है, जहां उसे लाभ मिलने की गुंजाइश है. केरल, हैदराबाद, तेलंगाना और बंगाल उसी रणनीति का हिस्सा है. केरल में वामपंथ लंबे समय से सत्ता पर काबिज है और पिछले कुछ समय से कांग्रेस की भी राज्य में स्थिति कमजोर हो रही है, जिसे परंपरागत रूप से केरल में एक ईसाई पार्टी के रूप में देखा जाता है. वहीं, UDF पठानमथिट्टा के पूर्व अध्यक्ष विक्टर थॉमस भी केरल कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. ऐसे में पार्टी राज्य में एक राजनीतिक अवसर देख रही है.

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क्विंट हिंदी से बात करते हुए जेएनयू के प्रोफेसर आनंद कुमार ने कहा, " कर्नाटक चुनाव के बीच पीएम मोदी का केरल दौरा कुछ अटपटा लग रहा है. इसे 2024 की तैयारी मानना 'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना' जैसा लग रहा है. कर्नाटक और जम्मू-कश्मीर, दोनों ही इस वक्त कसौटी के राज्य हैं. सत्यपाल मलिक के खुलासे ने भी बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी है. ऐसे में पीएम मोदी अपनी चुप्पी साधकर कर्नाटक की बजाय केरल को प्राथमिकता दे रहे हैं."

कितना सफल होगी बीजेपी की मुहिम?

लोकसभा चुनाव 2024 में अभी 11 महीने का वक्त बाकी है, जबकि विधानसभा चुनाव 2025 में होने हैं. ऐसे में पार्टी की मुहिम कितना सफल होगी, ये वक्त बतायेगा. लेकिन इतना जरूर है कि पार्टी के पास अभी राज्य में कोई उतना मजबूत चेहरा नहीं है, जो अपने दम पर वहां बीजेपी को खड़ा कर सकें. ऐसे में पार्टी को संगठन मजबूत करने के साथ एक चेहरे की तलाश करनी होगी, जो केरल की स्थिति को गहराई से समझता हो और राज्य में वामपंथ और कांग्रेस पार्टी का डटकर मुकाबला कर सके.

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