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नवीन पटनायक: ‘पप्पू’ से पॉलिटिक्स का पक्का खिलाड़ी बनने तक का सफर

नवीन पटनायक लगातार पांचवीं बार ओडिशा के सीएम बने हैं

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बुधवार को नवीन पटनायक ने एक बार फिर ओडिशा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पटनायक ऐसे नेता हैं, जो अपनी जिंदगी के शुरुआती 50 सालों में राजनीति से दूर रहे. मगर जब वह राजनीति में उतरे तो इस तरह उतरे कि उन्हें आज तक कोई मात नहीं दे पाया.

पिछली बार से तेज उठी मोदी लहर में भी नवीन ने अपने राजनीतिक किले को बचाकर रखा है. इसी का नतीजा है कि 73 साल के नवीन लगातार पांचवीं बार ओडिशा के मुख्यमंत्री बने हैं.

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नवीन पटनायक से जुड़ी कुछ रोचक बातें

  1. दून स्कूल के दिनों में नवीन पटनायक को प्यार से 'पप्पू' बुलाया जाता था
  2. 1997 में ओडिशा की राजनीति में उतरने वाले नवीन को वहां की मुख्य भाषा उड़िया भी ठीक से नहीं आती थी
  3. अपनी योजनाओं के अलावा नवीन ने जनता से जुड़ने के लिए पिछले कुछ वक्त में कई नए तरीके अपनाए हैं. मसलन लोगों के साथ सेल्फी लेना, अपना एक्सरसाइज वीडियो जारी करना, बस यात्रा पर जाना
  4. नवीन पटनायक से पहले ज्योति बसु (पश्चिम बंगाल) और पवन चामलिंग (सिक्किम) ही लगातार 5 बार मुख्यमंत्री बने हैं

नवीन पटनायक राजनीति के ऐसे माहिर खिलाड़ी हैं, जो ऊपर से भले ही शांत दिखते हों, मगर उन्हें अपने विरोधियों के हर वार का जवाब देना अच्छी तरह से आता है. एक समय ऐसा भी था, जब नवीन का राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं था.

16 अक्टूबर, 1946 को कटक में जन्मे नवीन पटनायक ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बिजयनंद पटनायक के बेटे हैं. बिजयनंद पटनायक जनता के बीच बीजू बाबू के नाम से लोकप्रिय थे. नवीन पटनायक की शुरुआती पढ़ाई देहरादून के वेलहम बॉइज स्कूल में हुई थी. इसके बाद वह दून स्कूल पहुंचे. नवीन पटनायक ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से बीए किया है. 

जवानी के दिनों में जब नवीन पटनायक राजनीति से दूर थे, तब वो लुटियन दिल्ली के ‘कॉकटेल सर्किट’ में अपना ज्यादातर वक्त बिताया करते थे.

इस तरह शुरू हुआ था नवीन का राजनीतिक सफर

अप्रैल 1997 में जब नवीन के पिता का निधन हो गया तो उनकी जिंदगी एकदम से बदल गई, इसके बाद पिता की विरासत संभालने के लिए नवीन राजनीति में उतरे. उसी साल वह अपने पिता की लोकसभा सीट अस्का का उपचुनाव जीतकर संसद पहुंचे. उन्होंने दिसंबर 1997 में बीजू जनता दल (बीजेडी) बनाया और वह खुद उसके अध्यक्ष बने.

नवीन पटनायक 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी अस्का से सांसद चुने गए. इसके बाद बीजेपी-बीजेडी गठजोड़ ने जब साल 2000 में ओडिशा के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की तो नवीन पटनायक पहली बार वहां के मुख्यमंत्री बने. फिर ओडिशा की राजनीति में नवीन पटनायक ऐसे जमे कि उनका कोई भी विरोधी उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने में सफल नहीं हुआ.

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) नेता स्वामी लक्ष्मणनंदा सरस्वती की हत्या के बाद हुए कंधमाल दंगों से बीजेडी और बीजेपी के बीच मतभेदों की नींव पड़ी. इसके बाद नवीन ने 2009 आम चुनाव और विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी से नाता तोड़ दिया. उनका यह कदम ‘मास्टरस्ट्रोक’ साबित हुआ और ओडिशा में उनका कद पहले की तुलना में बढ़ गया. 

जिस बीजेडी को 2004 के ओडिशा विधानसभा चुनाव में 147 सीटों में सिर्फ 61 सीटें मिली थीं, उसे 2009 में 103 सीटें मिलीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेडी ने दमदार प्रदर्शन किया और उसे ओडिशा की 21 में से 14 मिलीं.

सियासी तूफानों के बीच ओडिशा में अडिग नवीन

नवीन पटनायक ने कई राजनीतिक तूफान झेले हैं, जिनमें 2012 में उनकी ही पार्टी के नेताओं की तरफ से 'तख्तापलट' की कोशिश भी शामिल थी. उस दौरान नवीन पटनायक देश से बाहर थे.

2014 की मोदी लहर में नवीन पटनायक ना सिर्फ अडिग खड़े रहे, बल्कि उनकी छवि के चलते बीजेडी ने पहले से शानदार प्रदर्शन किया. उस साल बीजेडी ने ओडिशा में 117 विधानसभा सीटें और 20 लोकसभा सीटें जीती थीं.

नरम मुस्कान वाले धुरंधर राजनीतिक खिलाड़ी

अक्सर नरम मुस्कान के साथ दिखने वाले नवीन पटनायक राजनीति के सख्त धुरंधर माने जाते हैं. उन्होंने विजय महापात्रा, प्यारे मोहन महापात्रा और अपने करीबी सहयोगी बैजयंत पांडा और दामोदर राउत जैसे बागियों को जरा भी नहीं बख्शा.

ओडिशा के लोगों के दिलों में पटनायक की खास जगह है. एक रुपये प्रति किलो चावल और पांच रुपये में खाने की उनकी योजनाएं काफी लोकप्रिय रही हैं. उन्होंने 2019 चुनाव से पहले महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का समर्थन किया और उसे लागू भी किया.

नवीन ऐसे राजनेता हैं, जो पिछले कुछ समय में बीजेपी और कांग्रेस दोनों मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों से बराबर की दूरी पर दिखे हैं. हालांकि उनकी पार्टी ने हाल ही में कहा था कि ओडिशा को विशेष दर्जा देने सहित जो भी राज्य की परेशानियों को समझेगा, पार्टी उसका समर्थन करेगी. इस दौरान पार्टी ने एनडीए सरकार को समर्थन देने के भी संकेत दिए थे.

कई किताबें लिख चुके नवीन ने इस बार भी विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करके ओडिशा के राजनीतिक इतिहास का एक नया अध्याय लिख डाला है, जिसके महानायक वह खुद हैं. पटनायक का सामना चिटफंड घोटाले से लेकर खनन घोटाले समेत कई विवादों से हुआ, मगर ओडिशा की जनता के बीच आज भी उनकी छवि साफ मानी जाती है. नवीन की इस छवि का ही असर है कि जब देश के कई हिस्सों में जनता ने नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया, उस वक्त भी ओडिशा की जनता ने नवीन पटनायक को ऊपर रखा. आज नवीन पटनायक देश के उन गिने चुने नेताओं में से एक हैं, जिन्हें रीजनल पावर कहा जाता है.

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