इधर शरद पवार ने राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया (Sharad Pawar Resignation) और उधर महाराष्ट्र से लेकर राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी सुगबुगाहट तेज हो गयी. एक तरफ तो शरद पवार के वफादार उनसे अपने फैसले को वापस लेने का अनुरोध कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ सबकी जुबान पर एक ही सवाल है- एनसीपी की बागडोर अब किसके हाथ आएगी, अजित पवार या सुप्रिया सुले? ऐसे में एक और ऐसा नाम है. जिसपर सबकी निगाह गड़ी है- एनसीपी नेता और राज्यसभा सांसद प्रफुल्ल पटेल (Praful Patel).
प्रफुल्ल पटेल ने वैसे तो साफ शब्दों में यह कह दिया है कि उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद की लालसा नहीं है. उन्होंने कहा, 'मुझे इस पद में कोई दिलचस्पी नहीं है.' उन्होंने यह भी कहा कि जब तक शरद पवार के इस्तीफे पर अंतिम फैसला नहीं लिया जाता, तब तक नया अध्यक्ष नियुक्त करने का सवाल ही नहीं उठता.
"व्यक्तिगत रूप से, मैं इस जिम्मेदारी को लेने के लिए तैयार नहीं हूं. मैं पहले से ही पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हूं, यह एक गौरवशाली पद है. मेरे पास पहले से ही बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं. इसलिए, मुझे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है."प्रफुल्ल पटेल
हालांकि जब अध्यक्ष पद के लिए अजीत पवार और सुप्रिया सुले के बीच सीधे टकराव होते दिख रहा है, प्रफुल्ल पटेल को कई खूबियां इस पद के लिए बड़ा दावेदार बनाती हैं. चलिए शुरुआत करते हैं उसके राजनीतिक अनुभव से.
शरद यादव के सानिध्य में कैसे आए प्रफुल्ल?
प्रफुल्ल पटेल महाराष्ट्र के गोंदिया में एक अच्छे परिवार में जन्मे और पले-बढ़े. उनके पिता मनोहरभाई पटेल बीड़ी का कारोबार करते थे, साथ ही वो एक सफल बिजनेस मैन थे. इसके साथ मनोहर भाई गोंदिया सीट के कांग्रेसी विधायक थे. उन्हें इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, यशवंत राव चव्हाण और बाबूभाई पटेल जैसे नेताओं का करीबी माना जाता था. आगे प्रफुल्ल पटेल ने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीतिक करियर में कदम रखा.
बता दें कि पूर्व उप-प्रधानमंत्री यशवंत राव चव्हाण को महाराष्ट्र की सियासत का सबसे बड़ा नेता माना जाता था. मनोहरभाई पटेल यशवंत राव चव्हाण के कट्टर समर्थक माने जाते थे. यही यशवंत राव चव्हाण शरद पवार के राजनीतिक गुरु भी थे. इन्हीं के यहां शरद पवार और मनोहर भाई पटेल की बैठकी लगती थी. और जब कभी मनोहर भाई पटेल अपने बेटे प्रफुल्ल पटेल को वहां ले जाते तो उनकी मुलाकात शरद पवार से भी होती थी.
हालांकि जब मनोहर भाई पटेल की मौत हुई तो प्रफुल्ल की उम्र केवल 13 वर्ष की थी. इसी वक्त महाराष्ट्र की सियासत में शरद पवार का नाम बड़ा हो रहा था और उनका सानिध्य मिला प्रफुल्ल पटेल को.
प्रफुल्ल पटेल पहली बार 28 वर्ष की आयु में गोंदिया नगर परिषद के अध्यक्ष चुने गए. आगे 33 साल की उम्र में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए. लोकसभा में लगातार तीन जीत के बाद, पटेल 2000 और 2006 में राज्यसभा के लिए चुने गए. वह चौथी बार 2009 में फिर से लोकसभा के लिए चुने गए. वह भारतीय कैबिनेट में सबसे युवा चेहरों (केंद्रीय उड्डयन मंत्री) में से एक थे.
किस मोर्चे पर बीस हैं प्रफुल्ल?
लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके वरिष्ठ पत्रकार विष्णु गजानन पांडे क्विंट हिंदी के लिए लिखते हैं कि इस समय एनसीपी के पास दो ही व्यक्ति हैं जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान है. पहले व्यक्ति हैं प्रफुल्ल पटेल (Prafulla Patel) और दूसरी हैं पवार की बेटी सुप्रिया सुले.
संभावना यही है कि प्रफुल पटेल को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी ताकि अजीत पवार और सुप्रिया सुले के बीच सीधा टकराव टाला जा सके.विष्णु गजानन पांडे
प्रफुल्ल पटेल के पक्ष में एक और बात जो जाती है वह यह है कि प्रफुल्ल पटेल को दिल्ली की सियासत की समझ तो है ही, वे विदर्भ के इलाके में (जहां NCP को कमजोर समझा जाता है), वहां भी पार्टी के एक मजबूत चेहरे की कमी को भी पूरा कर सकते हैं.
कई विवादों में नाम भी आया
2019 में ED ने दाऊद इब्राहिम के सहयोगी इकबाल मिर्ची और प्रफुल्ल पटेल के परिवार के बीच कथित वित्तीय संबंधों का आरोप लगाया था. ED का दावा था कि प्रफुल्ल पटेल की मिलेनियम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने 2006-07 में मुंबई के वर्ली में सीजय हाउस डेवलप किया था और इसकी तीसरी और चौथी मंजिल - लगभग 14000 वर्ग फुट - को 2007 में इकबाल मिर्ची की पत्नी हाजरा इकबाल को ट्रांसफर कर दिया गया था क्योंकि जिस जमीन अपर सीजय हाउस बनाया गया था, उसमें कथति तौर पर इकबाल मिर्ची का भी पैसा लगा था.
ईडी ने आरोप लगाया है कि मिलेनियम डेवलपर्स को जमीन (जिस पर सीजय हाउस बनाया गया था) की बिक्री "संदिग्ध तरीकों से" की गई थी, और इस तरह मिर्ची अपना ब्लैक का पैसा व्हाइट किया था.
इसके अलावा प्रफुल्ल पटेल अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) के अध्यक्ष भी रहें और उनका यह कार्यकाल भी विवाद के साथ खत्म हुआ.
मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने AIFF के अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और उनकी कार्यकारी समिति से उनकी प्रशासनिक जिम्मेदारी छीन ली थी.नेशनल स्पोर्ट्स कोड के अनुसार चार सालों के तीन कार्यकाल पूरा करने के बाद कोई फिर से अध्यक्ष के रूप में खड़ा नहीं हो सकता. लेकिन ऐसा होने के बावजूद फीफा परिषद के सदस्य प्रफुल्ल पटेल ने AIFF में चुनाव नहीं कराए थे.
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