राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने पंजाब सरकार के प्रधान सलाहकार के पद से इस्तीफा दे दिया है. किशोर का इस्तीफा उनके सक्रिय राजनीति में उतरने का एक स्पष्ट संकेत है.अपने अनुरोध में किशोर ने कैप्टन अमरिन्दर सिंह से कहा कि " मैं आपके प्रधान सलाहकार के रूप में जिम्मेदारियां पूरी करने में सक्षम नहीं हूँ.अतः मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि कृपया मुझे इस ज़िम्मेदारी से मुक्त करें."
यह इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब उनके कांग्रेस पार्टी में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही हैं.
हालांकि किशोर को कांग्रेस में शामिल करने पर जल्दी फैसला लिया जा सकता है,जिससे कांग्रेस पार्टी में कुछ संगठनात्मक परिवर्तन के भी आसार दिखते हैं.
यह लेख निम्नलिखित प्रश्नों का सम्भवतः उत्तर देने का प्रयास करेगा:
प्रशांत किशोर की क्या भूमिका हो सकती है?
उन्होंने प्रमुख राजनीतिक निर्णयों के लिए एक समिति के गठन का अनुरोध क्यों किया है?
और कौन से परिवर्तन हैं जो लंबे समय में हो सकते हैं?
कांग्रेस इस परिवर्तन कैसे देख रही है और इससे क्या समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं?
बिना किसी विशेष पद के निभा सकते हैं राष्ट्रीय भूमिका
पिछले कुछ हफ्तों से चर्चा है कि कांग्रेस, किशोर को चुनाव रणनीति के लिए प्रभारी महासचिव का नया पद दे सकती है.हालांकि, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार किशोर ने पार्टी से कोई मांग नहीं की है.
कांग्रेस नेतृत्व के साथ अपने विचार-विमर्श में उनका ध्यान इस बात पर ज्यादा रहा कि बीजेपी से मुकाबले के लिए पार्टी को कहां-कहां मजबूत होने की आवश्यकता है.
किसी विशेष पद के अलावा वे दो चीजों को लेकर ज्यादा केंद्रित थे, पहला उनकी भूमिका राष्ट्रीय हो और दूसरा पार्टी प्रमुख जो सारे निर्णय लेता हो उनसे वो सीधे तौर पर संपर्क कर सकें.
पार्टी के प्रमुख राजनीतिक निर्णयों के लिए मजबूत निकाय
यह 'निकाय' जिसके बारे किशोर ने सुझाव दिया था, वह मौजूदा कांग्रेस कार्य समिति की तरह नहीं है, बल्कि एक छोटी समिति है जो पार्टी के महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे कैंपेन की रणनीति, गठबंधन आदि पर अंतिम निर्णय लेगी.
इस तरह के निर्णय लेने वाली निकाय का आग्रह करना पीके के लिए नई बात नहीं.किशोर के सभी अभियानों में एक चीज सामान्य है और वो है उनकी सफलता. फिर चाहे वो बीजेपी के लिए 2014 का अभियान हो, 2015 में बिहार में महागठबंधन, कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए 2017 का पंजाब अभियान, वाईएसआरसीपी के लिए 2019 का आंध्र प्रदेश का अभियान या डीएमके, टीएमसी के लिए 2021 में किया गया अभियान.
किशोर द्वारा किये गए सभी अभियानों में यह एक सामान्य सूत्र है कि उस विशेष पार्टी में अंतिम निर्णय लेने वाले तक उनकी सीधी पहुंच रही है. ऐसी स्थिति किशोर नहीं चाहते हैं कि पार्टी के लिए उनकी योजना निर्णय के स्टेज में फंस जाए.
बेशक यह अभी तक आसान था. उन्होंने एक नेता के प्रभुत्व वाली क्षेत्रीय पार्टियों जैसे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडु में एमके स्टालिन और आंध्र प्रदेश में वाईएस जगनमोहन रेड्डी का काम संभाला है. पंजाब में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी थी लेकिन किशोर से सीधे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तालमेल बैठाया.
शायद कांग्रेस जैसी पार्टी जहां कोई भी निर्णय लेना थोड़ा ज्यादा कठिन होता है यहां ये होता संभव नहीं लगता.लेकिन एक बात यह भी है की यदि वो कांग्रेस में शामिल होते हैं वो सिर्फ सलाहकार के रूप में नहीं बल्कि पार्टी पदाधिकारी के रूप में शामिल होंगे.
इन्ही सब अड़चनों को दूर करने के लिए उन्होंने अधिकार प्राप्त निकाय का सुझाव दिया है ताकि महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णयों को लेने में देरी न हो.
परिवर्तन के साथ हो सकता है ज्यादा केंद्रीकरण
कांग्रेस में बड़े बदलाव की लहर शुरू हो चुकी है और इसकी झलक हाल ही में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रमुख नियुक्तियों में देखा जा सकता है- जैसे पंजाब में नवजोत सिद्धू को नियुक्त करना हो, उत्तराखंड में गणेश गोदियाल, तेलंगाना में ए रेवंत रेड्डी और केरल में के.सुधाकरन की नियुक्ति.इसे अजय माकन के नेतृत्व वाली परामर्श प्रक्रिया में भी देखा जा सकता है जो वर्तमान में राजस्थान कैबिनेट में फेरबदल के लिए चल रही है.
ये सभी बिंदु कांग्रेस में सत्ता के केंद्रीकरण और आलाकमान की शक्ति ओर इशारा करते हैं.
हो सकता है की कांग्रेस में किशोर का आगमन इसी क्रेन्द्रीकरण का हिस्सा हो जो फिलहाल में चल रहा है.किशोर का तृणमूल कांग्रेस के साथ काम एक संयोग मात्र तो नहीं हो सकता और ऐसे भी उन्होंने पार्टी के लिए ऐसे समय में काम करना शुरू किया था जब भाजपा के आक्रामक तेवर के कारण उसे दल-बदल का सामना करना पड़ रहा था और पार्टी को कई स्तरों पर प्रतिस्पर्धी हितों से भी निपटना पड़ा.
किशोर और उनकी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (आईपैक) की सलाह के अनुसार, टीएमसी में जिला स्तर पर कई शक्ति केंद्रों को विशेष रूप से समाप्त कर दिया गया था. किशोर ने शक्ति के पदक्रम पर स्पष्ट रूप से बहुत जोर दिया था.
बंगाल अभियान का नतीजा इस बात का साबुत है कि ममता बनर्जी की टीएमसी एक केंद्रीकृत संरचना बन गई है और जिसमें अभिषेक बनर्जी अहम भूमिका निभा रहे हैं.यदि किशोर बड़े भूमिका में आते हैं तो इसी तरह के बदलाव कांग्रेस में भी देखने को मिल सकते हैं.
इस बदलाव का प्रबंधन होगा कैसे किया जा रहा है
किशोर को पार्टी में शामिल करने के संबंध में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पहले ही कई वरिष्ठ नेताओं से राय ले चुके हैं और उनके शामिल होने को प्रियंका गांधी वाड्रा का भी मजबूत समर्थन प्राप्त है.
इस प्रक्रिया को अब महासचिव के सी वेणुगोपाल द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है, जिनके पीसीसी प्रमुखों, राज्य प्रभारी और अन्य पदाधिकारियों तक पहुंचने की संभावना है.
किशोर को पार्टी में शामिल करने के संबंध में कांग्रेस आलाकमान को अभी तक मिली सारी प्रतिक्रियाएं सकारात्मक है. पार्टी में कई लोगों को जहां एक ओर लगता है कि किशोर के प्रवेश से भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के चुनावी प्रदर्शन में सुधार हो सकता है तो वही ये भी डर है कि इस प्रक्रिया में मौजूदा कुछ संरचनाएं कमजोर हो भी सकती हैं.
कुछ नेताओं का मत यह भी है कि यदि महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णयों के लिए एक छोटी, उच्च स्तरीय निकाय बनाई जाती है, तो सीडब्ल्यूसी पहले की तरह नहीं रहेगी.इसको लेकर राज्य स्तर पर भी कुछ चिंताएं हैं.
हालांकि किशोर ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वह अब I-PAC में शामिल नहीं होंगे, यह काफी संभावना है कि वह I-PAC के दृष्टिकोण का पालन करने पर जोर देंगे या कंपनी को 2024 के राष्ट्रीय चुनाव के अभियान के साथ-साथ प्रमुख राज्य चुनावों की जिम्मेदारी दिये जाने की बात कहेंगे.
यह सीधे तौर पर पीसीसी प्रमुखों और राज्य प्रभारियों के लिए खतरा हो सकता है जो अब तक तय करते रहे हैं कि किसी विशेष राज्य अभियान के लिए किस फर्म को नियुक्त किया जाए.
हालांकि, अभी तक पार्टी सूत्रों का कहना है कि किशोर ने पार्टी में शामिल होने के लिए बहुत अधिक शर्तें नहीं रखी हैं.इनमें से अधिकतर मुद्दे बाद में सामने आ सकते हैं जब नई प्रक्रियाओं को लागू किया जायेगा और एक बड़ा फेरबदल किया जायेगा.
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