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Prashant Kishor ने सियासत की शुरुआत के लिए बिहार को ही क्यों चुना-4 कारण हैं

प्रशांत किशोर की टीम ने साल 2015 में ''बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है'' जैसे लोकप्रिय नारे दिए थे.

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चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) एक बार फिर बिहार की ओर ताक रहे हैं. बिहार की राजनीतिक जमीन को अपने लिए उपजाऊ समझते हुए प्रशांत किशोर ने अपने नए अभियान का ऐलान किया है और कहा है कि समय आ गया है अपने असली मालिकों के बीच जाने का, यानी लोगों के बीच. और इसकी शुरुआत बिहार से होगी. ऐसे में पीके यानी प्रशांत किशोर के इस नई चाल को लेकर सवाल उठते हैं कि आखिर उन्होंने इसके लिए बिहार को ही क्यों चुना? इसके चार कारण हो सकते हैं.

बिहारी हैं, बिहार पर पकड़ है

बिहार में पैदा होना अलग बात है और बिहार के लोगों के बीच रहकर काम करना और राजनीति को समझना अलग बात. साल 2014 लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी और बीजेपी का चुनावी कैंपेन संभालने वाले प्रशांत किशोर ने जब बीजेपी से अपना नाता तोड़ा तो वो बिहार की ओर आ गए. साल 2015 के विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश की तीर से बीजेपी पर निशाना साधने लगे.

प्रशांत किशोर की टीम ने साल 2015 में बिहार में नीतीश कुमार के साथ काम किया. ''बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है'' जैसे लोकप्रिय नारे दिए. प्रशांत किशोर की IPAC वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, चुनाव के दौरान एक बड़ा प्रोग्राम चलाया गया, जिसमें 42000 गांवों को कवर करते हुए 4 करोड़ लोगों से संपर्क किया गया. तब 5000 वॉलिंटियर्स ने साइकिल के जरिए जन-जन तक संदेश पहुंचाया. यही नहीं नीतीश, लालू और कांग्रेस भी साथ आई और फिर बिहार में महागठबंधन के नेतृत्व वाली सरकार बनी.

पीके की आईपैक साल 2020 से पहले तक बिहार में लगातार चुनावी सर्वे से लेकर रणनीति बनाने और लोगों का नब्ज टटोलने का काम करती रही है. ऐसे में प्रशांत किशोर के पास बिहार के गांव से लेकर शहर और जाति-धर्म के वोटरों का डेटा है. जिसका इस्तेमाल पीके आगे कर सकते हैं.

ऐसे भी बिहार देश में राजनीतिक बदलाव की कहानी बनाता रहा है, चाहे जय प्रकाश नारायण का जेपी आंजोलन के जरिए इंदिरा गांधी की ताकत को चैलेंज करना हो या लालू यादव का पिछड़ों को सम्मान दिलाने की लड़ाई. पीके के पास मौका है और बिहार के पास मौका देना का इतिहास.

प्रशांत किशोर बिहार के भोजपुरी भाषी इलाके रोहतास में पैदा हुए और स्कूली पढ़ाई बक्सर में हुई. ऐसे में अपनी जन्मभूमि और उसे लेकर समझ प्रशांत को इसकी ओर खींचती है.
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बिहार अभी खुला मैदान

पीके की दूसरी सबसे बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि बिहार का कोई 'मालिक' नहीं है. मालिक शब्द पढ़कर चौंकिए नहीं. यहां मालिक का मतलब है किसी एक पार्टी या नेता का राज नहीं है. बिहार में लालू प्रसाद यादव को भले ही बड़ा नेता कहा जाता है लेकिन उनकी पार्टी सत्ता में नहीं है. लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव में बेहतर परफॉर्मेंस दी था लेकिन अभी उन्हें सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष और लंबा सफर तय करना है.

वहीं दूसरी ओर बीजेपी के पास सबसे ज्यादा विधायक जरूर हैं, लेकिन वो अभी अकेले सरकार नहीं बना सकती है. न ही बीजेपी के पास बिहार में लालू या नीतीश की तरह कोई बड़ा चेहरा है.

इसके अलावा भले ही नीतीश कुमार पिछले 17 साल से बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं, लेकिन वो विधानसभा में सीट के मामले में कमजोर होते जा रहे हैं. नीतीश कुमार की जेडीयू फिलहाल तीसरे नंबर की पार्टी है. अगर प्रशांत नीतीश के साथ हाथ मिलाते हैं तो उनकी राजनीतिक राह आसान हो सकती है. और अकेले खेलते हैं तो भी उनके लिए मौका है.

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बिहार में महत्वाकांक्षी युवा

दो साल पहले हुए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के सर्वे के मुताबिक बिहार देश की सबसे युवा आबादी वाला राज्य है. बिहार की करीब 57 फीसदी आबादी 25 साल से कम आयु वर्ग की है. प्रशांत किशोर जब जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे तब उन्होंने युवाओं को राजनीति में लाने को लेकर एक कैंपेन चलाया था. प्रशांत किशोर अलग-अलग युवाओं के ग्रुप से संवाद करते, उनकी बात सुनते और उन्हें राजनीति में आने के गुर सिखाते.

सरकारी नौकरी के लिए खाली पद और इंडस्ट्री की कमी से जूझ रहे बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान रोजगार एक बड़ा मुद्दा बना था. जिसका फायदा तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी को हुआ. ऐसे में प्रशांत किशोर की नजर बिहार के उन महात्वाकांक्षी युवा वोटर्स पर होगा जो सत्ता परिवर्तन और बिहार के विकास में अहम रोल अदा कर सकते हैं. वैसे भी कहीं बदलाव लाना हो तो युवा अहम साबित होते हैं.

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ज्यादा सीट

राजनीति और सीट दोनों को देखें तो देश की संसद में बिहार की काफी अहमियत है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटे हैं. सीट के मामले में उत्तरप्रदेश (यूपी) और महाराष्ट्र के बाद तीसरे नंबर पर. वहीं राज्यसभा की भी 16 सीट हैं, जोकि उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के बाद चौथे नंबर आता है. ऐसे में देश की संसद में कानून बनवाने से लेकर मंत्रालय संभालने तक बिहार का अहम रोल रहता है. इसलिए भी पीके की नजर बिहार की राजनीति पर हो सकती है.

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