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अब मुकुल संगमा टीएमसी की ओर, आखिर कांग्रेस को क्यों तोड़ रहे प्रशांत किशोर?

प्रशांत किशोर के हाल में कांग्रेस में जाने की अटकलें थीं, उन्होंने पार्टी में शामिल होने के लिए कई शर्तें रखी हैं.

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पंजाब कांग्रेस (Congress) में चल रहे सियासी ड्रामे के बीच एक बड़ी खबर दब गई, इसका दूरगामी असर पार्टी पर होने जा रहा है. मेघालय और उत्तर पूर्व के बड़े कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा (Mukul Sangma) पार्टी छोड़कर टीएमसी का दामन थामने वाले हैं. संगमा के साथ कांग्रेस के 13 विधायकों के भी टीएमसी में जाने की खबर है. हाल के दिनों में कांग्रेस छोड़कर टीएमसी जाने वाले संगमा पहले बड़े नेता नहीं हैं. पिछले कुछ दिनों में कई नेता कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में शामिल हुए हैं.

इन नेताओं को कांग्रेस से टीएमसी ले जाने वाले शख्स प्रशांत किशोर बताए जा रहे हैं। कांग्रेस और किशोर के बीच हालिया नजदीकी किसी छिपी नहीं है. सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात के बाद उनकी कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें भी चल रही थीं. लेकिन अचानक कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का टीएमसी में जाना सबको हैरान कर रहा है, खासकर तब, जब इसके पीछे प्रशांत किशोर को बताया जा रहा है. आखिर चंद दिनों में ऐसा क्या बदल गया कि जिस प्रशांत किशोर को कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी देने की तैयारी चल रही थी, वही पार्टी को तोड़ने में लग गए?

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कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में जाने वाले बड़े नेता

  • सुष्मिता देव- राहुल की टीम में रही महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सुष्मिता देव अगस्त में टीएमसी में शामिल हुईं.

  • लुइजिन्हो फलेरो- गोवा कांग्रेस का बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरो 2 दिन पहले ही टीएमसी ज्वाइन की है.

  • मुकुल संगमा- मेघालय के पूर्व सीएम ने फिलहाल टीएमसी की सदस्यता नहीं ली है, लेकिन उनके भी जल्द ही पार्टी में शामिल होने की खबरें हैं.

आखिर कांग्रेस को क्यों तोड़ने लगे प्रशांत?

सुष्मिता देव हों, लुइजिन्हो फलेरो हों या फिर मुकुल संगमा, टीएमसी में शामिल होने वाले या होने जा रहे ये सभी बड़े नाम कांग्रेस से जुड़े हैं. इन सबको पार्टी में शामिल कराने में प्रशांत किशोर का हाथ माना जा रहा है, फलेरो ने तो किशोर की वजह से ही टीएमसी ज्वाइन करने की बात सार्वजनिक तौर पर कबूल भी की है.

अब बड़ा सवाल है कि जो प्रशांत किशोर पिछले कुछ सालों से बीजेपी को डैमेज करने में जुटे हैं और जिनके कांग्रेस में जाने की अटकलें कुछ समय से चल रही हैं, वो आखिकार कांग्रेस को ही क्यों तोड़ने लगे? क्या यह प्रेशर पॉलिटिक्स है, क्या कांग्रेस में शामिल होने से पहले अपनी मांगें मनवाने के लिए प्रशांत देश की मुख्य विपक्षी पार्टी को राजनीतिक संकेत भेज रहे हैं?

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कांग्रेस में चाहते हैं बड़ी जिम्मेदारी

दरअसल प्रशांत किशोर कांग्रेस पार्टी में बड़ी रोल चाहते हैं. उन्होंने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के सामने फैसलों में तेजी लाने के लिए एक अडवाइजरी कमिटी बनाने की मांग रखी है. उनका कहना है कि इस अडवाइजरी कमिटी की चीफ सोनिया गांधी को बनाया जाए, लेकिन कमिटी में उनके अलावा और भी कई लोग शामिल हों. इस कमिटी के प्रस्ताव को आखिरी मंजूरी कार्यकारी समिति से दी जाए. इसके आलावा भी कई शर्तें उन्होंने पार्टी में शामिल होने के लिए रखी हैं.

इसी वजह से किशोर के कांग्रेस में शामिल होने पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया जा सका है. जिस तरह के बदलाव वह कांग्रेस में लाना चाह रहे हैं, वह उसके संगठनात्मक ढांचे और कार्यप्रणाली के अनुकूल नहीं है. उनकी शर्तों को मानने के लिए पार्टी को अपने संगठनात्मक ढांचे में बड़े बदलाव करने होंगे. इसके अलावा बागी तेवर अपना चुका कांग्रेस का जी-23 गुट भी उनके पार्टी में शामिल होने का विरोध कर रहा है. इसी वजह से फिलहाल शीर्ष नेतृत्व उनके पार्टी में शामिल होने के नाफ-नुकसान का आकलन कर रहा है और उनके पार्टी ज्वाइन करने पर संशय बरकरार है.

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वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई प्रेशर पॉलिटिक्स की बात से सहमत नहीं दिखते। किदवई कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता कि उनके कद का व्यक्ति इस तरह की प्रेशर पॉलिटिक्स करेगा. प्रशांत किशोर इस देश की एक बड़ी राजनीतिक पूंजी बन चुके हैं. वे समय आने पर कांग्रेस या अन्य किसी बीजेपी विरोधी दल में जाने पर फैसला लेंगे. चुनावी मौसम है, इसलिए जो लोग कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में आए हैं, वे केवल अपने राजनीतिक नफे-नुकसान को देखते हुए आए हैं.''

प्रशांत किशोर आगे भी टीएमसी जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर बीजेपी से अप्रत्यक्ष लड़ाई लड़ते रहेंगे या फिर कांग्रेस के नाव पर सवार होकर सीधी जंग में उतरेंगे? यह देखने के लिए हमें थोड़ा इंतजार करना होगा. गौर करने वाली बात है कि कांग्रेसी नेताओं को तोड़ने को लेकर पीके पर अभी तक कांग्रेस की तरफ से कोई सीधा हमला नहीं हुआ है. यानी क्या अभी पीके और कांग्रेस में बातचीत की गुंजाइश बची हुई है?

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गोवा से लेकर गुजरात तक बीजेपी को घेरने का 'मास्टरप्लान' बना रहे प्रशांत किशोर

'मिशन त्रिपुरा' से नई शुरुआत

पश्चिम बंगाल में ममता की बंपर जीत का जश्न थमा भी नहीं था कि किशोर और उनकी टीम इंडियन पॉलिटिकल ऐक्शन कमिटी (IPAC) नए मिशन पर जुट गई है. आईपैक ने टीएमसी के साथ मिलकर 'मिशन त्रिपुरा' की शुरुआत कर दी है। त्रिपुरा में फिलहाल बीजेपी का शासन है और पार्टी 25 साल के लेफ्ट शासन के बाद सत्ता में पहली बार आई है. त्रिपुरा में लेफ्ट लगातार कमजोर हो रहा है, कांग्रेस की स्थिति भी बहुत नहीं है, इसलिए प्रशांत की कोशिश है टीएमसी के जरिए इसी वैक्युम को भरने की.

त्रिपुरा में टीएमसी के बीजेपी को चुनौती देने का संभावना इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह राज्य पश्चिम बंगाल से सटा हुआ है और यहां बंगाली हिंदुओं की आबादी 60 फीसदी यानी 22 लाख से ज्यादा है. प्रशांत किशोर (पीके) और टीएमसी के 'मिशन त्रिपुरा' का खुलासा पहली बार तब हुआ, जब अगरतला के होटल में पीके की टीम के 23 सदस्यों को पुलिस ने नजरबंद कर दिया. इसके बाद खूब हंगामा हुआ. इसके बाद टीएमसी के महासचिव अभिषेक बनर्जी भी हाल ही में त्रिपुरा का दौरा कर चुके हैं.

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कांग्रेस की महिला मोर्चा की अध्यक्ष और असम से पूर्व सांसद सुष्मिता देव को हाल ही में टीएमसी में शामिल कराया गया है. सुष्मिता के पिता संतोष मोहन देव कांग्रेस के कद्दावर नेता और 7 बार लोकसभा सांसद रहे हैं. वैसे तो संतोष मोहन देव की परंपरागत सीट असम की सिलचर लोकसभा सीट थी, लेकिन 2 बार वे त्रिपुरा वेस्ट सीट से जीतकर भी लोकसभा पहुंचे थे. इसलिए त्रिपुरा में भी देव परिवार की राजनीतिक जड़ें हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. अब टीएमसी उत्तर पूर्व के इस राज्य में उनका कैसे इस्तेमाल करती है, यह देखने वाली बात होगी.

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गोवा में बीजेपी को घेरने की तैयारी, लेकिन कांग्रेस को भी दिया बड़ा झटका

टीएमसी फिलहाल कई राज्यों में पार्टी को विस्तार करने की तैयारी कर रही है. त्रिपुरा के बाद टीएमसी की नजर गोवा पर है. गोवा में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, इससे पहले वहां के दिग्गज कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरो को प्रशांत किशोर ने टीएमसी में शामिल कराया. फलेरो सार्वजनिक तौर पर यह बात कूबल भी कर चुके हैं कि उन्हें कांग्रेस छोड़ने और टीएमसी शामिल होने के लिए प्रशांत किशोर और उनकी टीम ने ही मनाया है.

गोवा में आईपैक की टीम पहले से कैंप कर टीएमसी के लिए चुनावी रणनीति तैयार कर रही है. फलेरो जैसे बड़े चेहरे के साथ गोवा की राजनीति में टीएमसी की एंट्री मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत के नेतृत्व वाली बीजेपी के लिए नई चुनौती होगी. किशोर ने फिलहाल राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन का विकल्प भी खुला रखा है.

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मेघालय के पूर्व सीएम मुकुल संगमा को TMC में लाने की तैयारी

मेघालय के पूर्व सीएम मुकुल संगमा के भी टीएमसी में शामिल होने की खबरें हैं. सूत्रों के अनुसार राज्य में कांग्रेस के 13 विधायक भी मुकुल संगमा के साथ टीएमसी में शामिल होंगे हैं. साल 2023 में मेघायल में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में टीएमसी एक मजबूत चेहरे के साथ उतरकर नैशनल पीपल्स पार्टी और बीजेपी के गठबंधन को चुनौती देने की तैयारी कर रही है.

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गुजरात पीएम नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है. यह पिछले 2 दशक से ज्यादा वक्त से पार्टी की अभेद्य किला है. प्रशांत किशोर इस किले में सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं.

सूत्रों के अनुसार अलग-अलग राज्यों में बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी करने के बाद अब किशोर का अगला निशाना गुजरात है. गुजरात में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं. पिछले 2 दशक से ज्यादा वक्त से बीजेपी का शासन है. पीएम बनने से पहले नरेंद्र मोदी लगभग 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे. इसलिए गुजरात मोदी-शाह की जोड़ी के लिए नाक का सवाल भी है. प्रशांत की कोशिश मोदी-शाह को उनके घर में घेरने की है.

वह गुजरात में पहले भी नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए चुनावी रणनीतिकार के तौर काम कर चुके हैं. इसलिए वहां के जमीनी हालात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं. हालांकि यहां मोदी-शाह के लिए चुनौती खड़ी करने के लिए वो कांग्रेस, टीएमसी या किसी अन्य पार्टी का सहारा लेंगे इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है.

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इसके अलावा किशोर की तैयारी टीएमसी के साथ मिलकर असम में भी बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी करने की है. कांग्रेस महिला मोर्चा की अध्यक्ष और असम के सिलचर सांसद रहीं सुष्मिता देव का टीएमसी में आना असम और त्रिपुरा दोनों को एक साथ साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

इन राज्यों में बीजेपी को नुकसान पहुंचने की रणनीति से वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति विश्लेषक राशिद किदवई इत्तफाक नहीं रखते. किदवई कहते हैं, ''पहली बात तो यह कि इन सबके पीछे प्रशांत किशोर ही हैं, यह जानने के लिए हमें थोड़ा इंतजार करना होगा. हमें यह समझना होगा कि टीएमसी एक क्षेत्रीय पार्टी है, पश्चिम बंगाल और गोवा के मुद्दे अलग-अलग हैं. इससे पहले भी एनसीपी, बीएसपी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी जैसे दलों ने अन्य राज्यों में अपना विस्तार करने की असफल कोशिश की है. लेकिन जमीनी स्तर पर यह प्रयोग अगर सफल होगा तो ममता बनर्जी इतिहास बना देंगी.''

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