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तो क्या बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन की शुरुआत हो गई?

इन गैर बीजेपी पार्टियों के नेताओं ने समझ लिया है कि ‘मोदी मैजिक’ से टक्कर लेने के लिए हाथ मिलाना जरूरी है.

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राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार पर चर्चा के लिए हुई बैठक का भले ही कोई ठोस नतीजा न निकल पाया हो, लेकिन इस बैठक ने मजबूत राजनीतिक समीकरणों का बीज बो दिया है.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लंच के बहाने हुई इस बैठक में 17 पार्टियों के 30 नेताओं ने शिरकत की. हो सकता है ये आपको कोई खास बात न लगे, लेकिन बैठक में हिस्सा लेने वाले नेताओं के नाम पढ़ने के बाद आपको चौंकना पड़ सकता है.

कांग्रेस पार्टी से सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा बीएसपी अध्यक्ष मायावती, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी और सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव और जेडीयू नेता शरद यादव, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और नेशनल कॉन्‍फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने बैठक में हिस्सा लिया.

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एक मंच पर धुर विरोधी

नेताओं की ये लिस्ट कोई आम लिस्ट नहीं है. इसमें दो खास बातें हैं. पहली ये कि ये तमाम नेता क्षेत्रीय क्षत्रप हैं, यानी अपने-अपने इलाकों की मजबूत सियासी ताकत हैं. दूसरी ये कि इनमें से कइयों का राजनीतिक वजूद ही एक-दूसरे के विरोध पर टिका है.

समाजवादी पार्टी और मायावती ने तो खैर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी की बेहतरीन जीत के बाद हाथ मिलाने की जरूरत को महसूस कर लिया था. लेकिन पश्चिम बंगाल में एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें भांजने वाले तृणमूल और लेफ्ट का एक मंच पर आना किसी अजूबे से कम नहीं है.

ममता के साथ मंच साझा करने के पशोपेश में गुरुवार शाम तक येचुरी बैठक में अपनी मौजूदगी पक्की नहीं कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल की कोशिशों से धुर-विरोधियों की ये बैठक मुमकिन हो ही गई.

इसी साल हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के वोट शेयर पर जरा नजर डालिए.

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बीजेपी को करीब 40 फीसदी वोट मिले, जबकि बीएसपी को करीब 22 फीसदी, समाजवादी पार्टी को करीब 21 और कांग्रेस को करीब 6 फीसदी वोट मिले.

यानी बीएसपी, समाजवादी और कांग्रेस के वोट मिला दिए जाएं, तो वो बीजेपी के वोट शेयर से 9 फीसदी ज्यादा हो जाते हैं. वोट का ये गणित 80 लोकसभा सीट वाले यूपी में 2019 के लोकसभा चुनावों की तस्वीर बदल सकता है.

मंजिल न सही, लेकिन रास्ता खुला

हो सकता है बीजेपी कहे कि मंच पर आने और किसी सहमति तक पहुंचने के बीच लंबा रास्ता है, जो ‘मजबूरी की इस दोस्ती’ को तय करना होगा. लेकिन इसमें दो राय नहीं कि इस बैठक ने महागठबंधन की संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं.

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इससे पहले भी तमाम बीजेपी विरोधी पार्टियों को एक मंच पर लाने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन या तो उन बैठकों में इतने दल नहीं आए और अगर आए, तो उनके इतने मजबूत नेता नहीं आए.

नहीं आए नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार इस बैठक में नहीं आए. खास बात ये कि वो शनिवार को होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक लंच कार्यक्रम में जा रहे हैं. इस बात से अटकलबाजियों का बाजार गरम होना तय है, लेकिन वो लंच मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्‍नाथ के सम्‍मान में है. मॉरीशस में बिहारी प्रवासियों की खासी तादाद है और इस नाते उनके रिश्ते काफी मजबूत हैं. वैसे भी सोनिया के लंच में जेडीयू के नुमाइंदों के तौर पर शरद यादव और केसी त्यागी मौजूद थे.

दुश्मन का दुश्मन 'दोस्त'

मोदी सरकार के तीन साल के जश्न के मौके पर शायद इन गैर बीजेपी पार्टियों के नेताओं ने समझ लिया है कि अपनी लड़ाइयां तो बाद में लड़ लेंगे, लेकिन फिलहाल तो ‘मोदी-मैजिक’ से टक्कर लेने के लिए हाथ मिलाना जरूरी है. आखिर दुश्मन का दुश्मन 'दोस्त' ही तो होता है.

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