बठिंडा रेलवे स्टेशन पर कुलियों की भीड़ में गठीले बदन और गोरे-चिट्टे रंग वाला एक कुली बरबस ही आपका ध्यान अपनी तरफ खींचता है- मोहित उर्फ मोने लाल.
पिछले पांच साल से दिन में पढ़ाई और शाम को सवारियों का बोझ ढोते है मोहित.
सीन 1- बठिंडा रेलवे स्टेशन
मोहित के पास इलेक्ट्राॅनिक्स और कम्यूनिकेशन में बी-टेक की डिग्री है. तमाम कोशिशों के बावजूद कोई नौकरी नहीं मिली- न सरकारी, न प्राइवेट.
अपनी लाल कमीज पर कुली का बिल्ला बांधते हुए मोहित ने कहा- प्राइवेट नौकरी में इलेक्ट्राॅनिक्स और कम्यूनिकेशन का जो स्कोप बैंगलोर, दिल्ली, नोएडा वगैरह में है वो यहां नहीं है. यहां इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट में जॉब करनी पड़ती है जिसका एक्सपीरियंस काउंट नहीं होता.
अपनी डिग्री के मुताबिक नौकरी की आस खो चुका मोहित अब चाहता है कि उसे रेलवे के ही ग्रुप ‘डी’ में कोई नौकरी मिल जाए.
मोहित की पत्नी नवीता भी इलेक्ट्राॅनिक्स और कम्यूनिकेशन में एम-टेक है. बठिंडा में प्राइवेट नौकरी मिल नहीं रही सो दोनों बैंक, एसएससी जैसी सरकारी नौकरियों के लिए कोशिश कर रहे हैं लेकिन अब तक दाल वहां भी नहीं गल पाई.
बठिंडा के परसराम नगर में जब हम मोहित के घर पहुंचे तो हिचकिचाते हुए नवीता ने बताया-
दिक्कत ये है कि इतनी अच्छी डिग्री होने के बावजूद हमारे पास कोई नौकरी नहीं है. हमने सरकारी नौकरियों के लिए एग्जाम दिए हैं. प्री क्लीयर हो जाता है लेकिन मेन रह जाता है. पता नहीं क्यों हो रहा है. मेरे पति इतनी स्ट्रगल कर रहे हैं. खुद भी इतना पढे मुझे भी पढ़ा रहे हैं.
नौकरी ते पढ़े लिख्यां णू मिलदी है. मैं तां अनपढ़ हां (साहब, नौकरी तो पढ़े-लिखों को मिलती है. मैं तो अनपढ़ हूं).
एक टूटे-फूटे से ऑटो में बैठी शिंदर कौर ने अपने दिल का हाल मुझे सुनाया, तो उन्हें अंदाजा नहीं था कि अशिक्षित ही नहीं पंजाब में दरअसल पढ़े-लिखों को भी नौकरी के लाले हैं.
सीन 2 - बठिंडा की गलियां
शिंदर कौर पंजाब के बठिंडा शहर की पहली और अकेली महिला ऑटो ड्राइवर हैं. जिस शहर में महिलाओं के लिए नौकरी कोई आम बात नहीं, वहां एक महिला को सड़क पर ऑटो चलाते देखना काफी हैरान कर देने वाला था. आखिर ये नौबत क्यों आई- ये जानने के लिए मैने शिंदर से बातचीत शुरू की. जो कहानी सामने आई वो एक महिला की मजबूरी, समाज की बेरुखी और सरकार की काहिली का आईना है.
13 साल की उम्र में शिंदर की शादी हुई. शादी से चार बच्चे हुए. पति शराब पीकर मारता-पीटता था सो 21 साल की उम्र में उससे तलाक ले लिया. लेकिन किस्मत की मार अभी पूरी नहीं हुई थी. चार में से तीन बच्चों की मौत हो गई. अपनी एक बेटी और बूढ़ी मां के साथ रह रही शिंदर ने पैसा कमाने के लिए मजदूरी शुरू की. गुजारा नहीं चला तो बठिंडा-डबवाली रोड पर ढाबा खोला. बगल से गुजरने वाले हाई-वे पर पुल बन गया और ढाबा ठप हो गया.
नौकरी का कोई ठिकाना नहीं था. लिहाजा भतीजे की सलाह पर शिंदर ने करीब छह महीने पहले ऑटो खरीदा, चालीस हजार के उधार और ढाई लाख के बैंक लोन पर. हर महीने 6 हजार रुपये किस्त जाती है. यानी दिन भर में बामुश्किल पांच सौ रुपये की कमाई हो भी जाए तो दो सौ किस्त में चले जाते हैं.
ऑटो में गुरु नानक देव और गुरु गोबिंद सिंह की तस्वीरें लगी हैं, लेकिन ‘वाहे गुरु जी दी मेहर’ का कोई निशान शिंदर पर नहीं दिखता.
पंजाब में इन दिनों चुनाव प्रचार जोरों पर है. प्रचार में इस्तेमाल हो रहे हर ऑटो को पार्टियां हर रोज एक हजार रुपये तक का किराया देती हैं. शिंदर ने भी अपना ऑटो चुनाव प्रचार में लगाने की कोशिश की. लेकिन हैरानी की बात है कि मेनिफेस्टो में महिलाओं के लिए बड़े-बड़े वादे करने वाली तमाम पार्टियों ने सिर्फ इसलिए शिंदर का ऑटो नहीं लिया, क्योंकि वो एक महिला है.
अपनी इकलौती बेटी की शादी कर चुकी शिंदर बठिंडा की दलित बस्ती, भंगी नगर में अपनी 80 साल की मां के साथ रहती हैं. एक कमरे के उनके घर के बाहर शिरोमणी अकाली दल का झंडा लगा है. शिंदर के मुताबिक झंडा कोई लगा गया होगा, लेकिन वोट किसे जाएगा ये अभी तय नहीं.
पंजाब में तमाम पार्टियां युवाओं के लिए नौकरी और रोजगार के वादे कर रही हैं.
लेकिन उनका जिक्र करते ही मोहित झल्लाते हुए कहते हैं- इलेक्शन का टाइम है सो वादे कर रहे हैं. कांग्रेस ने अपने वक्त में कुछ नहीं किया अब कह रहे हैं कि नौकरी देंगे, भत्ता देंगे. मुझे नहीं लगता. अकाली दल को तो ये नहीं पता कि ग्रुप ‘डी’ होता क्या है? आम आदमी पार्टी भी वैसी ही होगी.
शिंदर, मोहित और नवीता सिर्फ नाम नहीं बल्कि पिछले कुछ सालों में पंजाब के बदले हालात का चेहरा हैं. अस्सी के दशक में आतंकवाद की आग चुका पंजाब देश का सबसे उपजाऊ राज्य है. लेकिन बेरोजगारी के मोर्चे पर पंजाब की हालत खस्ता है.
अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पिछले साल पंजाब में पुलिस कॉन्स्टेबल के 7,418 पदों के लिए इश्तेहार निकाला गया. इस नौकरी के लिए 7 लाख से ज्यादा लोगों ने आवेदन किया. इनमें से डेढ़ लाख ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट थे, जबकि करीब 3000 के पास एमबीए और एमसीए जैसी प्रोफेशनल डिग्रियां थीं.
इसी महीने बठिंडा की जिला अदालत में चपरासी के 34 पदों के लिए 19,000 उम्मीदवारों ने आवेदन किया. उनमें भी भारी तादाद में बी-टेक, एमसीए और पोस्ट ग्रेजुएट शामिल थे.
रोजगार कार्यालय के ये आंकड़े देखने में काफी कम लग सकते हैं लेकिन सच्चाई ये है कि बेरोजगारों की ये गिनती काफी कम करके आंकी गई है.
हैरानी की बात है कि साल 1998 के बाद से पंजाब में बेरोजगारी को लेकर कोई ठोस सर्वे या स्टडी हुई ही नहीं. लेकिन कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि पंजाब में इस वक्त बेरोजगारों की तादाद 75 लाख से ज्यादा है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि पंजाब की रगों में दौड़ रहा नशा भी बेरोजगारी का ही बाई प्रोडक्ट है. यानी अगर सियासी पार्टियां नशे के खिलाफ झंडा बुलंद कर रही हैं, तो उन्हें बेरोजगारी के बारे में पहले सोचना होगा.
पंजाब के 55 फीसदी युवा वोटरों को लुभाने के लिए तमाम पार्टियों ने अपने मेनिफेस्टो में धुआंधार घोषणाएं की हैं.
मेनिफेस्टो में युवाओं पर डोरे
लेकिन इन रस्मी वादों से त्रस्त युवाओं की हताशा गुस्से में बदल रही है. इस नाराजगी की एक बानगी 2014 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिली थी. देखना दिलचस्प होगा कि 4 फरवरी की वोटिंग में ये युवा किस पार्टी को रोजगार देते हैं और किसे बेरोजगार करते हैं.
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