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राजद्रोह,AFSPA:जिन कानूनों को हटाना चाहती है कांग्रेस,उन्हें समझें

2019 लोकसभा चुनाव के लिए जारी किए मेनिफेस्टो में कांग्रेस ने की है ये घोषणाएं

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लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कांग्रेस ने अपना मेनिफेस्टो जारी कर दिया है. कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में राजद्रोह कानून को खत्म करने और AFSPA कानून की समीक्षा करने समेत कई वादे किए हैं.

कांग्रेस ने कहा है कि अगर 2019 में उनकी सरकार बनती है तो वो AFSPA कानून की समीक्षा करेंगे और अंग्रेजों के जमाने के राजद्रोह कानून को खत्म करेंगे.

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क्या हैं AFSPA और राजद्रोह कानून

1. AFSPA (Armed Forces Special Power Act)

AFSPA को हिंदी में ‘सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम’ कहा जाता है. ये कानून किसी राज्य या इलाके में तब लागू किया जाता है, जब वहां हालात अशांत हो जाते हैं और विद्रोह या मिलिटेंसी बढ़ जाती है. ऐसे इलाकों में सैन्य सुरक्षा बलों को अतिरिक्त विशेषाधिकार मिलते हैं. इस कानून में आर्म्ड फोर्सेज को तलाशी लेने, गिरफ्तार करने और बल प्रयोग करने की ज्यादा स्वतंत्रता होती है.

भारत में अफस्पा जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्वी राज्यों के कई हिस्सों में लागू किए जा चुके हैं. उत्तर पूर्व के मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय में इसे खत्म किया जा चुका है, लेकिन आंशिक रूप से ये अभी भी कई जगह मौजूद है.

समय-समय पर इन इलाकों में अफस्पा को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध होता रहा है. उत्तर पूर्व के मणिपुर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक अफस्पा का विरोध करते हुए लोग सड़कों पर उतरते हैं. लोगों की शिकायत होती है कि सेना के लोग इस कानून का नाजायज फायदा उठाकर लोगों पर जुल्म करते हैं.

AFSPA के खिलाफ इरोम शर्मिला ने 16 साल किया था अनशन

सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला मणिपुर से हैं. इरोम शर्मिला ने 4 नवंबर, 2000 से अफस्पा के खिलाफ अनशन शुरू किया था, जब कथित रूप से असम राइफल के जवानों ने इंफाल एयरपोर्ट के पास बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रहे 10 लोगों को गोलियों से भून डाला था. इसके बाद से इरोम शर्मिला लगातार AFSPA को मणिपुर से हटाने की मांग कर रही थी. इरोम शर्मिला ने साल 2016 में अफस्पा के हटने के बाद 16 साल बाद अपना अनशन खत्म किया था.

क्या है भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए, जिसे राजद्रोह कहते हैं?

ब्रिटिश राज के दौरान साल 1860 में थॉमस मैकाले ने सेडिशन यानी राजद्रोह का कानून बनाया था. लेकिन पहले ये दंड संहिता यानी पीनल कोड का हिस्सा नहीं था, साल 1870 में इसे दंड संहिता में जोड़ा गया.

मौजूदा समय में इंडियन पीनल कोड की धारा 124A के तहत सेडिशन यानी राजद्रोह को परिभाषित किया जाता है. इस कानून के मुताबिक, अगर कोई भी शख्स मौखिक, लिखित या सांकेतिक रूप से सरकार के खिलाफ नफरत, लोगों को भड़काना या सरकार की अवमानना करता है तो वो इस धारा के तहत राजद्रोही करार दिया जाता है. ये कानून देश के प्रतीकों जैसे संविधान, राष्ट्रीय चिन्ह का अपमान करने पर भी लागू किया जाता है.

9 फरवरी 2016, जेएनयू...कन्हैया कुमार.. कुछ याद आया

साल 2016 के फरवरी महीने में कथित रूप से दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कथित रूप से देशद्रोही नारे लगे थे. इसमें जेएनयू के कई छात्र पकड़े गए. उनमें से एक हैं कन्हैया कुमार. वही कन्हैया जो बेगूसराय से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. खैर...उनको राजद्रोह के तहत गिरफ्तार किया गया और मुकदमा चला. उन पर आरोप हैं कि उन्होंने देशविरोधी नारे लगाए थे. बता दें कि मेनिफेस्टो में राजद्रोह को लेकर कांग्रेस के ऐलान के बाद कन्हैया कुमार ने कांग्रेस के इस कदम का समर्थन किया है.

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी समेत कई अन्य लोगों पर इस कानून के तहत मुकदमे चले थे. मजे की बात ये है कि 150 साल पुराने इस कानून को इसे बनाने वाले ब्रिटेन ने खत्म कर दिया है लेकिन ये आज भी भारतीय दंड संहिता का हिस्सा है.

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