राजस्थान (Rajasthan) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मंत्रिमण्डल में 12 नए चेहरों को शामिल किया गया है. पहले से मंत्रिमण्डल में शामिल तीन दलित मंत्रियों को प्रमोट किया गया है. मंत्रिमण्डल फेरबदल (cabinet reshuffle) के इस फार्मूले में नए चेहरों को शामिल करने से लेकर प्रमोट हुए पुराने मंत्रियों के पीछे कुछ ना कुछ सियासी समीकरण हैं.
पायलट समर्थकों को जगह, जातिगत हिसाब-किताब पर भी नजर
इन सियासी समीकरण को लेकर आमजनता में तो चर्चा है ही, वहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं के भी अलग-अलग कयास हैं. दरअसल कांग्रेस ने राजस्थान की गुटबाजी खत्म करने के लिए जो ऑपरेशन किया है उसमें कहीं न कहीं पंजाब में लागू किए गए फार्मूले की झलक दिखाई देती है.
राजस्थान में किए गए फैसले को लेकर कांग्रेस आलाकमान ने सख्त रवैया भी दिखाते हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के समर्थकों को भी मंत्रिमण्डल में जगह दिलाई, वहीं जातिगत हिसाब-किताब को सैट करते हुए राजस्थान में पार्टी के मूल वोट बैक रहे दलितवर्ग पर फोकस ज्यादा किया है.
राजस्थान के मंत्रिमण्डल में शायद ऐसा पहली बार हुआ है जबकि दलित समाज से ताल्लुक रखने वाले चार विधायकों को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. वहीं फेरबदल में 4 जाट समाज से आने वाले चेहरों को भी शामिल किया गया है. अब गहलोत मंत्रिमण्डल में 5 मंत्री जाट समाज के हैं. यह दोनों ही जातियां राजस्थान में कांग्रेस का वोट बैंक मानी जाती हैं.
इसके अलावा कांग्रेस आलाकमान ने एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को लागू करते हुए गहलोत मंत्रिमण्डल के तीन प्रमुख चेहरे रहे रघु शर्मा, गोविन्द सिंह डोटासरा और हरीश चौधरी को बाहर भी किया. कांग्रेस आलाकमान की इस सर्जरी के बाद अब राजस्थान मंत्रिमण्डल में 29 मंत्रियों और मुख्यमंत्री को मिला कर 30 संख्या हो गई है. नियामानुसार अब गहलोत मंत्रिमण्डल में कोई स्थान शेष नहीं रहा है.
मंत्रिमंडल में शामिल होने का कनेक्शन
हेमाराम चौधरी- राजस्थान के मारवाड़ इलाके से आते है. हेमाराम चौधरी सचिन पायलट गुट के माने जाते हैं. राजस्व मंत्री हरीश चौधरी भी इसी इलाके से आने वाले जाट नेता हैं. हरीश चौधरी के इस्तीफे के बाद हेमाराम को मंत्री बना कर एक तीर से तीन काम पूरे किए गए.
एक तो हेमाराम पायलट गुट से आते हैं. दूसरा एक तो जाट नेता के बदले जाट नेता को मंत्री बनाया गया है. वहीं तीसरा फैक्टर क्षेत्रीय समीकरणों को साधने के प्रयास किया गया है.
महेन्द्रजीत सिंह मालवीय- राजस्थान के आदिवासी इलाके का बड़ा नाम. गहलोत सरकार में पहले भी मंत्री रहे हुए हैं. अभी हाल ही में हुए उपचुनाव में धारियावद सीट पर बीजेपी को पटखनी देने में अहम भूमिका मालवीय की रही थी.
रामलाल जाट- भीलवाड़ा के कद्दावर जाट नेता हैं. विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की पसंद हैं. साथ ही अशोक गहलोत के विश्वसनीय रहे हैं. पिछली गहलोत सरकार में भी मंत्री रहे थे.
महेश जोशी- विधानसभा में मुख्य सचेतक थे. अशोक गहलोत के बेहद विश्वसनीय माने जाते हैं. गहलोत सरकार पर संकट के समय भाजपा पर हमला करने वाले अहम नेता थे. चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को हटाने के बाद जोशी ही उनके बदले में सबसे अहम चेहरा थे.
विश्वेन्द्र सिंह- गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत करने के आरोप में सचिन पायलट के साथ मंत्रिमण्डल से निकाले गए थे. अब समझौता फार्मूले के तहत फिर से उन्हें शामिल किया गया है.
रमेश मीणा- पायलट गुट के प्रमुख चेहरे. पिछले साल पायलट के साथ ही मंत्रिमण्डल से निकाले गए थे. एक बार फिर से समझौता फार्मूले के तहत मंत्रिमण्डल में शामिल किए गए हैं. मीणा में पकड़ रखने वाले कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं.
शकुंतला रावत- गुर्जर राजनीति के हिसाब से अशोक गहलोत समर्थक चेहरा. महिला होने का भी लाभ मिला.
बृजेन्द्र सिंह ओला- कांग्रेस सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे स्वर्गीय शीशराम ओला के पुत्र पायलट समर्थक माने जाते हैं. समझौते के तहत पायलट गुट की तरफ से ओला का नाम दिया गया था.
मुरारीलाल मीणा- पायलट समर्थक विधायक हैं. जनजाति मीणा समाज से आते हैं.
जाहिदा खान- मेवात इलाका में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा. मुस्लिम समाज से आने वाले विधायकों में सबसे प्रभावीशाली चेहरा.
राजेन्द्र गुढ़ा- बसपा छोड़कर कांग्रेस में छह विधायकों को शामिल करवाने के पीछे के मुख्य सूत्रधार. खुद भी बसपा के टिकट पर चुनाव जीते थे. कई मौकों पर गहलोत के पक्ष में खड़े दिखाई दिए वहीं गहलोत विरोधियों पर निशाना भी साधते रहते हैं.
मास्टर भंवरलाल की जगह दलित वर्ग से ममता भूपेश, टीकाराम जूली प्रमोट, गोविंद मेघवाल. मास्टर भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद गहलोत सरकार में कोई दलित कैबिनेट मंत्री नहीं था. मास्टर भंवरलाल मेघवाल की जगह गोविंद मेघवाल को कैबिनेट मंत्री बनाया है. तीन दलित राज्य मंत्रियों ममता भूपेश, टीकाराम जूली व भजन लाल जाटव को प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बनाया. गोविंद मेघवाल वसुंधरा राजे के पहले कार्यकाल में संसदीय सचिव रह चुके हैं, बाद में वे बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आ गए. तीनों चेहरे अशोक गहलोत के खेमे के माने जाते हैं.
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