राजस्थान राज्यसभा चुनाव (Rajasthan Rajya Sabha Election) 2022 के परिणाम सबके सामने हैं. अशोक गहलोत ने अपने कुशल नेतृत्व का एक बार फिर प्रमाण देकर कांग्रेस आलाकमान को संदेश दे दिया है कि राजस्थान के ‘किंग’ वही हैं. कांग्रेस ने गहलोत की रणनीति से अपने तीनों प्रत्याशियों रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी को जीताकर उच्च सदन में भेजने का रास्ता साफ कर दिया है. गहलोत ने ना सिर्फ अपने खेमे को साधकर रखा बल्कि, बीजेपी में भी सेंधमारी कर दी. बीजेपी में घुसपैठ का नतीजा ही रहा कि प्रमोद तिवारी 41 के जादुई आंकड़े को छूने में कामयाब रहे.
हालांकि, ये पहला मौका नहीं था जब कांग्रेस के बड़े नेता गहलोत के सहारे राज्यसभा की चौखट पर पहुंचे है. इससे पहले भी गहलोत के भरोसे कांग्रेस पार्टी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल को राजस्थान के रास्ते राज्यसभा में भेज चुकी है. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस के वह बड़े नेता जो लगातार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कमजोर होने के चलते संसद नहीं पहुंच सके थे, उन्हें गहलोत ने राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचा दिया है. यानी कि कांग्रेस के जो सबसे महत्वपूर्ण नेता थे, उन्हें सक्रिय रखने में गहलोत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है.
गहलोत ने दिखाया कुशल नेतृत्व, कुनबे को रखा साथ
अशोक गहलोत ने जिस तरह से इस चुनाव में बेहतर रणनीति दिखाते हुए जीत दर्ज की है. उससे गहलोत की जादूगरी साफ नजर आई है. क्योंकि, शुरूआत में जिस तरह से बाहरी प्रत्याशियों की नाराजगी सामने आई, उसके बाद BSP से कांग्रेस में शामिल हुए 4 विधायक मंत्री राजेंद्र गुढ़ा, वाजिब अली, लाखन मीणा और संदीप यादव नाराज हुए. इनके साथ दो कांग्रेस के विधायक गिर्राज मलिंगा और खिलाड़ी बैरवा ने भी नाराजगी जताई. लेकिन, गहलोत ने सभी को साध लिया.
उधर, BTP ने व्हिप जारी कर अपने विधायकों को मतदान से दूर रहने की अपील की थी. बावजूद, गलोत ने बीटीपी के दोनों विधायकों राजकुमार रोत और रामप्रसाद तक अपनी पहुंच बनाए रखी और उन्हें कांग्रेस के पाले में करने में सफल रहे. माकपा ने भी दोनों वोट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ही दिए. 13 निर्दलीय विधायकों में से एकमात्र विधायक बलजीत यादव नाराज चल रहे थे. लेकिन, अंतिम दिन वह भी मान गए. ऐसे में गहलोत ने अपनी जादूगरी से कुनबे के 126 सदस्यों को साधने में कामयाब रहे.
राजस्थान की कांग्रेस सरकार को भी संकट से उबार चुके हैं गहलोत
गहलोत को राजनीति और रणनीति का जादूगर ऐसे ही नहीं कहा जाता है. जहां, ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते मध्य प्रदेश कि कांग्रेस सरकार को मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ तमाम प्रयास के बावजूद नहीं बचा सके, वहीं साल 2020 में राजस्थान में आए सियासी संकट और सचिन पायलट समेत 19 विधायकों की नाराजगी के बावजूद गहलोत अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे. हालांकि, उस समय सियासी गलियारों में खबर उड़ी थी कि गहलोत सरकार सिर्फ वसुंधरा राजे की वजह से बच गई, क्योंकि वसुंधरा राजे ने पीछे से गहलोत का सपोर्ट किया था.
गहलोत के आगे काम ना आई बीजेपी की ट्रेनिंग
बीजेपी ने बकायदा अपने विधायकों के लिए जयपुर में प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया था. विधायकों को कीमती वोट डालने का सही तरीका भी समझाया गया था. कौन सा विधायक किस प्रत्याशी को वोट देगा ये सभी तय किया गया था और जीत की तैयारी पूरी थी. लेकिन, बीजेपी की सारी रणनीति धरी की धरी रह गई. जब बीजेपी की विधायक शोभारानी कुशवाह ने क्रॉस वोटिंग करते हुए कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद तिवारी को वोट दे डाला.
विधायक शोभारानी कुशवाह, वसुंधरा राजे के खेमे की मानी जाती हैं. इन्हीं के एक वोट ने बीजेपी का सारा गणित बिगाड़ कर रख दिया. हालांकि, बीजेपी ने कड़ा कदम उठाते हुए शोभारानी कुशवाह को पार्टी से निलंबित कर दिया.
गहलोत ने कैसे बिगाड़ा बीजेपी का खेल?
गहलोत की रणनीति ने राजनीतिक पंडितों को हैरान कर दिया. कांग्रेस ने मुकल वासनिक और रणदीप सुरजेवाला को 43-43 वोट डलवाने की रणनीति बनाई थी. लेकिन, वासनिक का एक वोट खारिज होने से उन्हें 42 वोट ही मिल सके. लेकिन, गहलोत की रणनीति में हैरान करने वाली बात यह रही कि उन्होंने प्रमोद तिवारी के 41 वोट का जादुई आंकड़ा बीजेपी के क्रॉस वोट के जरिए पूरा करवाया. ऐसे में बीजेपी का एक वोट क्रॉस होने के साथ-साथ कांग्रेसी खेमे में भी एक वोट खारिज हो गया, जो मुकुल वासनिक के हिस्से का वोट था.
कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला को 43, मुकुल वासनिक को 42 और प्रमोद तिवारी को 41 वोट मिले. बीजेपी के घनश्याम तिवाड़ी को 43, जबकि बीजेपी के समर्थन से मैदान में उतरे सुभाष चंद्रा को 30 वोट ही मिले, जो उम्मीद से भी 3 कम थे.
वसुंधरा राजे से अदावत बीजेपी आलाकमान को पड़ी भारी
दरअसल, बीजेपी आलाकमान और वसुंधरा राजे के बीच काफी लंबे समय से अदावत चल रही है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही वसुंधरा राजे और बीजेपी हाईकमान के बीच खटपट की स्थिति बनी हुई है. साल 2018 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली हार के बाद से हाईकमान ने वसुंधरा के प्रति अपना रूख टेढ़ा कर लिया था और वसुंधरा के हाथ से प्रदेश की कमान अपने हाथ में ले ली थी. उसके बाद राजे को प्रदेश की राजनीति से हटाकर बीजेपी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद दे दिया.
इसके बाद कई मुद्दों पर वसुंधरा और आलाकमान के बीच टकराव नजर आया. चाहें प्रदेश अध्यक्ष चुनने की बात हो या किसी मुद्दे पर पार्टी की राय हो, वसुंधरा ने लीक से हटकर ही अपनी राह चुनी. राजनीति पंडितों के बीच यही चर्चा है कि वसुंधरा राजे को साइडलाइन करना बीजेपी के लिए महंगा सौदा साबित होगा. क्योंकि आज भी वसुंधरा की पकड़ राजस्थान में अन्य बीजेपी नेताओं के अपेक्षा सबसे ज्यादा है. ऐसे में अगर बीजेपी को राजस्थान में दोबारा सत्ता की कुर्सी पर बैठना है तो वसुंधरा को प्रदेश की राजनीति में फ्री हैंड देना होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)