वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
महाराष्ट्र में पल-पल बदलते सियासी हालात के बाद आखिरकार उद्धव ठाकरे राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली.
बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला हो या एनसीपी-कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का, ये तमाम फैसले शिवसेना ने सोची समझी रणनीति के तहत लिए हैं. लेकिन शिवसेना की इन तमाम रणनीतियों को तैयार करने में जिस रणनीतिकार की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वो हैं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे.
मुख्यमंत्री पद के लिए उद्धव ठाकरे की सहमति के पीछे भी रश्मि ठाकरे का बड़ा योगदान माना जा रहा है. बता दें, उद्धव ठाकरे के साथ राजभवन में मौजूदगी से लेकर गठबंधन की बैठकों में रश्मि ठाकरे की सक्रिय भूमिका रही है.
काफी पहले से ही रश्मि ठाकरे पर्दे के पीछे से शिवसेना के चाल, चलन, चरित्र को तय करती रहीं हैं. माना जाता है कि रश्मि ठाकरे शिवसेना में पर्दे के पीछे रहकर अपनी पकड़ बनाए रखती हैं. साथ ही उद्धव ठाकरे को सक्रिय राजनीति में लाने के पीछे भी रश्मि ही थीं. आदित्य ठाकरे को चुनाव लड़वाने के पीछे भी रश्मि ठाकरे का ही दिमाग काम कर रहा था.
रश्मि ठाकरे का पार्टी काडर के साथ लगातार जुड़े रहना, पार्टी की महिला विंग में एक्टिव होकर काम करना, राजनीतिक उठापटक के बीच परिवार को संभालने की उनकी कला ने सबका ध्यान आकर्षित किया है.
उद्धव-रश्मि का प्यार और शादी
उद्धव ठाकरे मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ते थे. इसी कॉलेज में पढ़ते वक्त उद्धव की मुलाकात मुंबई के डोंबिवली इलाके में रहने वालीं रश्मि पाटनकर से हुई. इसी वक्त उद्धव और रश्मि का इश्क परवान चढ़ा. बाद में दोनों ने शादी कर ली. उद्धव ठाकरे को राजनीति में खासी दिलचस्पी नहीं थी.
उद्धव ठाकरे वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के शौकीन थे और यही काम उनको सबसे ज्यादा भाता था. उद्धव से शादी के बाद रश्मि पाटनकर ठाकरे परिवार की बहू रश्मि ठाकरे हो गईं. शादी के शुरुआती 2 साल रश्मि और उद्धव ठाकरे परिवार का घर ‘मातोश्री’ छोड़कर एक अलग फ्लैट लेकर रहने लगे. लेकिन फिर बाद में उद्धव और रश्मि मातोश्री लौट आए. परिवार के अंदर भी रश्मि ने अपनी अच्छी पकड़ बनाई.
बाला साहेब की सबसे बड़ी बहू स्मिता ठाकरे की एक जमाने में ठाकरे परिवार में अच्छी पैठ थी. ये दौर था 1995 का, जब पहली बार महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार बनी थी. लेकिन रश्मि के एक्टिव होने बाद स्मिता ठाकरे का जादू धीरे-धीरे कम होता गया.
रश्मि को जाता है उद्धव को राजनीति में लाने का श्रेय
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के शौकीन उद्धव ठाकरे ने कुछ दिनों तक 'चौरंग' नाम से एक एडवर्टाइजमेंट एजेंसी चलाई. लेकिन ये काम ज्यादा वक्त नहीं चला. उद्धव की 40 साल की उम्र तक राजनीति में खास दिलचस्पी नहीं थी और वे सक्रिय राजनीति में भी नहीं थे. इसके बाद 2002 के बीएमसी चुनाव में उद्धव ने खासी भूमिका निभाई और शिवसेना को जीत दिलाई. माना जाता है कि उद्धव को राजनीति में दिलचस्पी लेने के लिए भी रश्मि ने ही प्रेरित किया.
बाल ठाकरे शिवसेना के सर्वेसर्वा थे और सबको ऐसा ही लगता था कि उनके राजनीतिक वारिस तब शिवसेना में सक्रिय रूप से काम करने वाले उनके भतीजे राज ठाकरे होंगे. लेकिन रश्मि ठाकरे की ही सोच थी कि बाल ठाकरे की विरासत उन्हीं के परिवार में रहनी चाहिए. इसके बाद बाल ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को ही अपना वारिस बनाया और शिवसेना की कमान सौंपी.
इसके बाद ठाकरे परिवार में फूट हुई और राज ठाकरे ने घर छोड़ दिया और अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) खड़ी की. बाल ठाकरे को उद्धव के लिए मनाना और परिवार-पार्टी में उद्धव के लिए जगह बनाने में रश्मि ठाकरे की खासी भूमिका मानी जाती है.
नारायण राणे के पार्टी छोड़ने का कारण उद्धव से मनमुटाव बताया जाता है. लेकिन ऐसा भी कहते हैं कि रश्मि ठाकरे ने जिस तरह से उद्धव का समर्थन किया और पार्टी पर धीरे-धीरे पकड़ बनाने लगीं, ये भी बड़ी वजह थी की नारायण राणे ने पार्टी से बगावत कर ली और कांग्रेस में शामिल हो गए.
राजनीति में धीरे-धीरे बढ़ाई सक्रियता
उद्धव ठाकरे खासी उम्र गुजर जाने के बाद राजनीति में आए लेकिन उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने 19 साल की उम्र में मतलब 2010 से ही राजनीति में एक्टिव रहना शुरू कर दिया. आदित्य, ठाकरे परिवार के ऐसे पहले सदस्य हैं, जिन्होंने चुनाव लड़ा है. माना जा रहा है कि आदित्य को विधायकी का चुनाव लड़ाने के पीछे भी रश्मि की ही रणनीति काम कर रही थी. रश्मि ने आदित्य ठाकरे के प्रचार में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.
रश्मि हमेशा शिवसेना के पार्टी काडर से बात करती रहती हैं. पार्टी की महिला इकाई में भी उनकी सक्रिय भूमिका रहती है. रश्मि खुद तो सोशल मीडिया पर एक्टिव नहीं हैं लेकिन उद्धव ठाकरे के ट्टिटर अकाउंट पर नजर डालने पर दिखता है कि वो रश्मि के साथ अपने राजनीतिक कामों को जमकर शेयर करते हैं. मतलब रश्मि भले ही खुद सोशल मीडिया पर न हों लेकिन रणनीति के स्तर पर भी उनकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.
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