ADVERTISEMENTREMOVE AD

राजस्थान:'राइट टू हेल्थ बिल पर 'रार' क्यों, चुनावी साल में गहलोत को कितना फायदा?

Right To Health Bill: राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां राइट टू हेल्थ बिल पारित हुआ है.

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

राजस्थान में "राइट टू हेल्थ" बिल (Right To Health Bill) को लेकर जारी गतिरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है. प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टरों के साथ अब सरकारी चिकित्सक भी इस बिल के विरोध में उतर आये हैं. इस बिल के विरोध में 29 मार्च को पूरे राज्य में मेडिकल सेवाएं बंद रहेंगी. हालांकि, सरकार ने भी रेजिडेंट डॉक्टर्स पर कार्रवाई की तैयारी कर ली है. ऐसे में सवाल है कि आखिर "राइट टू हेल्थ" बिल को लेकर इतना विवाद क्यों हो रहा है?

क्या है "राइट टू हेल्थ" बिल?

  • राइट टू हेल्थ बिल को राजस्थान विधानसभा से 21 मार्च को पास किया गया था.

  • राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां राइट टू हेल्थ बिल पारित हुआ है.

  • सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल इलाज से अब मना नहीं कर सकेंगे.

  • हर व्यक्ति को इलाज की गारंटी मिलेगी.

  • इमरजेंसी की हालत में निजी अस्पतालों को भी फ्री इलाज करना होगा.

  • सरकारी और निजी अस्पतालों में इमरजेंसी में फ्री इलाज के लिए अलग से फंड बनेगा.

  • नोटिफिकेशन जारी होते ही ये बिल कानून बन जायेगा.

  • ये कानून, सरकारी और निजी अस्पतालों के साथ किसी भी तरह के हेल्थ केयर सेंटर पर लागू होगा.

  • किसी भी तरह की हॉस्पिटल स्तर की लापरवाही के लिए जिला और राज्य स्तर पर प्राधिकरण बनेगा. जिसमें सुनवाई होगी.

  • दोषी पाए जाने पर 10 से 25 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

बिल में क्या शामिल किया गया है?

मेडिकल एंड हेल्थ के किसी भी मैथड में रिप्रोडक्टिव हेल्थ, इमरजेंसी मेडिकल ट्रीटमेंट, डायग्नोसिस, नर्सिंग, रिहेबिलिटेशन, हेल्थ रिकवरी, रिसर्च, जांच, इलाज, प्रोसीजर्स और अन्य सर्विसेज मिलने का अधिकार इस बिल में शामिल किया गया है.

डॉक्टर्स क्यों कर रहे बिल का विरोध?

डॉक्टर्स राइट टू हेल्थ बिल को वापस लेने की जिद पर अड़े हैं. उनका कहना है कि जब तक इस बिल को वापस नहीं लिया जाता, तब तक उनका प्रदर्शन जारी रहेगा. डॉक्टरों का कहना है कि अगर ये कानून बनता है तो इससे निजी अस्पतालों के कामकाज में "नौकरशाहों" का दखल बढ़ जाएगा. इसके अलावा डॉक्टरों ने बिल के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है. उनकी मांग है कि उसे ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है.

बिल में क्या हुआ संशोधन?

सुनवाई के लिए बनाये गये प्राधिकरण में पहले स्थानीय जनप्रतिनिधियों को रखे जाने का प्रावधान किया गया था, जो डाक्टर्स के विरोध के बाद हटा लिया गया. अब इसमें केवल चिकित्सकों को ही शामिल किया गया है.

सरकार का क्या तर्क?

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार तमाम विरोध प्रदर्शन के बावजूद बिल को वापस लेने के मूड में नहीं दिख रही है. उसका तर्क है कि ये बिल राज्य में लोगों के स्वास्थ्य अधिकारों को मजबूत करेगा.

बिल किसी भी कीमत पर वापस नहीं होगा. बिल को लाने के पहले डॉक्टरों से बात की गयी थी लेकिन अब वो वादाखिलाफी कर रहे हैं. चिकित्सकों को कोई अधिकार नहीं है कि वो बिल वापस लेने की मांग करें.
परसादी लाल मीणा, स्वास्थ्य मंत्री, राजस्थान

परसादी लाल मीणा ने कहा कि जो चिकित्सक काम नहीं करेंगे, उनके साथ सरकार सख्ती से निपटेगी. इससे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की थी. उन्होंने कहा था कि ये बिल जनता की भलाई के लिए है. ऐसे में भ्रमित होने की जरूरत नहीं है.

हालांकि, डॉक्टर इस मांग पर अड़े हैं कि जब तक बिल वापस नहीं होगा कोई बातचीत नहीं होगी. राजस्थान बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "चिकित्सकों के कामकाज ठप करने से मरीजों को परेशानी हो रही है. सरकार को चाहिए कि गतिरोध जल्द खत्म करे."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिल के क्या हैं राजनीतिक मायने?

दरअसल, राइट टू हेल्थ बिल कांग्रेस पार्टी के 2018 के चुनावी घोषणा पत्र में था. पार्टी ने दावा किया था कि अगर वो राज्य की सत्ता में आती है तो इस बिल को लायेगी. लेकिन चार साल बीतने के बाद अशोक गहलोत सरकार ने बिल को विधानसभा से पास कराया. राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में बिल की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहा है.

वरिष्ठ पत्रकार विवेक श्रीवास्तव ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "सरकार चुनावी वर्ष में लगातार बड़े-बड़े फैसले कर रही हैं, जो सीधा जनता से जुड़े हैं. इसका फायदा भी मिल सकता है."

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो, सरकार चिकित्सकों के प्रदर्शन से बहुत चिंतित नहीं है. एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा कि जनता बिल के समर्थन में हैं और अगर चिकित्सक इसका विरोध लगातार करते हैं तो इसका फायदा सरकार को ही मिलेगा

हालांकि, इस कानून का कांग्रेस पार्टी को राजस्थान में कितना फायदा मिलेगा ये कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन, इतना तय है कि अशोक गहलोत के पिटारे से लगातार बड़े-बड़े ऐलान हो रहे हैं, जिसे चुनावी साल से जोड़कर देखा जा रहा है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×