राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 (Rajasthan Election 2023) को लेकर कांग्रेस काफी एक्टिव हो गयी है. इसी क्रम में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार (6 सितंबर) को विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 8 समितियों का ऐलान किया, जिसमें सचिन पायलट को किसी भी समिति में बड़ी भूमिका नहीं दी गई. अब इस पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या राजस्थान से पायलट को दूर किया जा रहा? और गहलोत-पायलट में कौन भारी है?
किन समितियों का किया गया ऐलान?
कोर कमेटी, समन्वय समिति, प्रचार समिति, मेनिफेस्टो कमेटी, स्ट्रेटजी कमेटी, मीडिया एवं संचार समिति, प्रचार एवं प्रकाशन समिति और प्रोटोकॉल समिति का ऐलान किया गया है.
क्या राजस्थान से पायलट को दूर किया जा रहा?
दरअसल, कोर कमेटी को छोड़ दिया जाए तो अन्य सात समितियों में सचिन पायलट को किसी भी रूप में शामिल नहीं किया गया है. कोर कमेटी में भी संयोजक की भूमिका राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा को दी गई है. इस सूची में सचिन पायलट का नाम पांचवें नंबर पर है. यानी सचिन पायलट को कांग्रेस ने किसी भी बड़ी भूमिका से दूर रखा है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो, ये कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है.
वरिष्ठ पत्रकार ललित राय ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "सचिन पायलट को CWC में शामिल करने का मतलब है कि कांग्रेस उन्हें नेशनल पॉलिटिक्स में लाना चाह रही है. और संभव है कि आने वाले दिनों में उन्हें महासचिव के साथ राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाए."
कांग्रेस से जुड़े एक करीबी सूत्र ने कहा, "सचिन पायलट और शीर्ष नेतृत्व के बीच पर्दे के बीच कुछ बात चल रही है, जिसकी तस्वीर जल्द ही साफ हो सकती है, पायलट के बॉडी लैंग्वेज से भी ऐसा लग रहा है. हालांकि, मौजूदा समय में जो भी हो रहा है उसको देखकर लगता है कि पायलट को विश्वास में जरूर लिया गया होगा."
पिछले कुछ समय में पायलट का कोई बगावती बयान नहीं आ रहा है. वो अब गहलोत पर भी हमला करने से बच रहे हैं. मीडिया में भी पायलट सिर्फ राजस्थान में दोबारा कांग्रेस की सरकार बनाने की बात कह रहे हैं.कांग्रेस सूत्र
वरिष्ठ पत्रकार विवेक श्रीवास्तव ने कहा, "जो भी समितियां बनी हैं, उसका नेतृत्व पीसीसी चीफ करता है. पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं. ऐसे में वो किसी भी समिति का प्रमुख नहीं बनना चाहते होंगे."
हालांकि, ये चर्चा बार-बार होती रही है कि राष्ट्रीय राजनीति में आने से पायलट राजस्थान से दूर हो जाएंगे, जिसको लेकर सचिन खुद पार्टी के भीतर कई बार बात कर चुके हैं. लेकिन पायलट के करीबी लोगों की मानें तो, उनका पूरा फोकस अपने अधिक से अधिक लोगों को चुनाव में टिकट दिलाने पर है.
राजस्थान कांग्रेस के एक नेता ने कहा, "पिछले कुछ समय से प्रदेश में चुनावी माहौल में बदलाव आया है. ऐसे में पार्टी पायलट को पूरी तरीके से राज्य से दूर करने का गलती नहीं करेगी. ये संभव है कि आने वाले दिनों में पायलट को किसी भूमिका में लाया जाए. पायलट के विदेश से लौटने के बाद, इस पर तस्वीर साफ होगी."
गहलोत-पायलट में कौन भारी?
कांग्रेस की तरफ से जारी समितियों की सूची देखने पर साफ पता चलता है कि यहां सीएम अशोक गहलोत अभी सचिन पायलट पर भारी नजर आ रहे हैं.
कांग्रेस ने प्रचार समिति का अध्यक्ष गोविंद राम मेघवाल को बनाया है. मेनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सीपी जोशी को दी गई है. जबकि स्ट्रेटजी कमेटी कमेटी के चीफ हरीश चौधरी होंगे.
मीडिया कमेटी का प्रमुख ममता भूपेश को बनाया गया है. वहीं, प्रचार एवं प्रकाशन समिति का अध्यक्ष मुरारी लाल मीणा हैं, जबकि प्रोटोकॉल समिति का अध्यक्ष प्रमोद जैन भाया को बनाया गया है.
यानी मुरारी लाल मीणा को छोड़ दिया जाए तो सभी गहलोत कैंप के हैं. सीपी जोशी का अपना एक धड़ा है, लेकिन उनका भी गहलोत के साथ संबंध ठीक है. इसके अलावा समिति के सदस्यों में भी 90 प्रतिशत अशोक गहलोत कैंप के लोगों को जगह मिली है.
वरिष्ठ पत्रकार कुमार पंकज ने कहा, "हर पार्टी की अपनी रणनीति होती है. विचारधारा से ज्यादा आज की राजनीति अवसरवादिता पर टिकी है. गहलोत सीनियर नेता हैं, जाहिर हैं कि उनका कद बड़ा है और समर्थन भी ज्यादा है, लेकिन सचिन की भूमिका पर पार्टी जल्द तस्वीर साफ करेगी."
इन सबके बीच, अब भी एक सवाल बरकरार है कि सचिन पायलट और कांग्रेस के बीच क्या खिचड़ी पक रही है. क्योंकि चुनाव में समय कम बचा है, और अगर कांग्रेस और पायलट दोनों ने जल्द अपने इरादे साफ नहीं किये तो, इसका असर विधानसभा चुनाव के नतीजों पर जरूर पड़ सकता है.
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