ADVERTISEMENTREMOVE AD

संजय राउत और फडणवीस के बदले रुख, महाराष्ट्र की सियासत में चल क्या रहा है?

Sanjay Raut प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से भी भेंट करने वाले हैं

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

102 दिन की जेल यात्रा के बाद शिवसेना उद्धव बाला साहब ठाकरे (Shivsena Uddav Balasahab Thakare) (एसयूबीटी) गुट के नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) जेल से रिहा हुए हैं.

जेल से रिहाई के बाद उनके राजनीतिक बयान और बदले हुए रुख को बड़ी गंभीरता से देखा जा रहा है. रिहाई के बाद उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) से भेंट की. शरद पवार से की भेंट को वे कृतज्ञता भेंट बताते हैं क्योंकि इस दरमियान शरद पवार उनके परिवार का लगातार हालचाल पूछते रहे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

देवेन्द्र फडणवीस की तारीफ की

राउत के बाहर निकलते ही मीडिया को सुबह-सवेरे नए बयान मिल गए. मीडिया से बात करते समय उन्होंने राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की काफी तारीफ की और कहा कि उन्होंने कुछ अच्छे निर्णय लिए हैं. मुख्य रूप से गरीबों को घर देने और म्हाडा के अधिकारों को वापस करने के निर्णय की उन्होंने प्रशंसा की.

म्हाडा के बारे में उन्होंने कहा कि आघाडी सरकार ने यह फैसला लिया था लेकिन मुझे यह पसंद नहीं था. अब उसके अधिकारों की वापसी का निर्णय अच्छा है. वे उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिलने वाले हैं. वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से भी भेंट करने वाले हैं.

इस भेंट के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मैं सांसद हूं. मेरे भाई यहां विधानमंडल के सदस्य हैं. देश और राज्य की राजनीति के बारे में चर्चा करना, उनसे मिलना मेरा अधिकार है. हाल ही में फडणवीस ने कहा था कि महाराष्ट्र की राजनीति में आई कटुता दूर करने के लिए वे प्रयत्न करेंगे. इस संदर्भ को देखते हुए संजय राउत की फडणवीस से मिलने की इच्छा काफी महत्व रखती है.

महाराष्ट्र के सांस्कृतिक कार्य मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने राउत द्वारा फडणवीस की तारीफ किए जाने पर बड़ी सावधानी पूर्वक प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने राउत के बयान का स्वागत करते हुए कहा कि राज्य में कभी भी राजनीतिक कटुता नहीं थी. पहले के नेता सार्वजनिक मंच पर नीतिगत मुद्दों पर एक दूसरे की आलोचना किया करते थे लेकिन रात में उसी नेता के यहां रुकते थे. लेकिन आज नेताओं के उपहासात्मक नाम रखे जाते हैं और उनकी आलोचना की जाती है. हम ‘मुद्दों’ की जगह ‘गुद्दों’ (मुक्का) पर आ गए हैं.

विरोध के लिए विरोध नहीं करेंगे

जून में शिवसेना में पड़ी फूट के बाद संजय राऊत ने मोर्चा संभाल कर पार्टी से अलग हो कर दूसरा गुट बनाने वाले विधायकों के बारे में काफी कड़े बयान दिए थे. भारतीय जनता पार्टी के बारे में भी उन्होंने काफी कुछ बयान दिए थे लेकिन इस बार मीडिया के सामने उन्होंने कहा कि हम सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं करना चाहते.

जो बातें राज्य, देश और जनता के लिए अच्छी है उनकी तारीफ की ही जानी चाहिए. इस सरकार ने कुछ अच्छे फैसले किए हैं, जिनका मैं स्वागत करता हूं.

राउत के बदले सुरों ने लोगों को इस बात पर विचार करने पर मजबूर कर दिया कि क्या ठाकरे गुट का रवैया बदल रहा है या संजय राउत समझौते के मूड में है या वे पाला बदलने वाले हैं. लोगों के मन में आशंका है कि संजय राऊत अपने कट्टरपंथी रुख में बदलाव ला रहे हैं लेकिन उद्धव ठाकरे इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि यदि संजय राउत को राजनीतिक समझौता करना ही होता तो वे इतने दिन जेल में नहीं गुजारते.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सावरकर, तिलक की याद आयी

किसी के लिए भी जेल यात्रा सुखद नहीं होती और सत्ता सभी प्रकार के सुख भोगने वाले लोगों के लिए तो यह भारी दुखदायी होती है. राउत के लिए भी यह अनुभव कोई खुशगवार नहीं रहा है. कारागृह में रहना कितना तकलीफ दायक होता है इसका अनुभव उन्हें हुआ और इसलिए उन्होंने वीर सावरकर, लोकमान्य तिलक के बारे में कहा कि अब यह लगता है कि वास्तव में उन्होंने किस तरह समय गुजारा होगा.

जेल का एक घंटा 100 दिन के बराबर

जेल के अपने अनुभवों के बारे में उन्होंने कहा कि जेल में आप दीवारों से बातें करते हैं. लोग वर्षों तक जेल में रहते हैं. मैं 100 दिन जेल में रहा लेकिन जेल का एक घंटा 100 दिन के बराबर होता है. वहां सिर्फ दीवारें दिखती हैं.

राउत खुद को ‘युद्ध कैदी’ (वॉर प्रिजनर) मानते हैं. उन्होंने कहा कि जेल में बिताए गए अपने समय का उन्होंने सदुपयोग किया है और दो पुस्तक लिखने की तैयारी की है. उल्लेखनीय है कि आपातकाल के समय जेल गए कई नेताओं ने डायरियां लिखी थी जिनमें लाल कृष्ण आडवाणी की ‘ए प्रिजनर्स स्क्रैपबुक’ और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की ‘मेरी जेल डायरी’ काफी प्रसिद्ध हुई थीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अदालत ने की ईडी की खिंचाई

संजय राऊत को लंबी अदालती लड़ाई के बाद बाहर आने का मौका मिला. उनकी रिहाई का फैसला देते वक्त विशेष न्यायालय के न्यायाधीश एमजी देशपांडे ने ईडी पर कड़ी टिप्पणियां की.

अपने फैसले में अदालत ने ईडी की कार्यप्रणाली पर बड़े प्रश्न चिन्ह खड़े किए. उन्होंने संजय राउत की गिरफ्तारी को ‘अवैध’ बताया. अदालत ने अपने निरीक्षण में कहा कि इस मामले में ईडी मुख्य आरोपियों को भी गिरफ्तार नहीं कर सकी. उनका यह भी कहना था कि इस मामले में ईडी का स्टैंड मुख्य आरोपी को लेकर बदलता रहा है. ईडी की कार्यप्रणाली पर उन्होंने कहा कि संबंधित व्यक्तियों को गिरफ्तार करते समय ईडी ने जो तत्परता दिखाई थी, वैसी तत्परता मुकदमा चलाने के समय दिखाई नहीं दी और पूरा मामला कछुआ गति से चलता रहा था.

यह केस आर्थिक गैर व्यवहार का ना होकर दीवानी स्वरूप का था, इसके बावजूद संजय राउत और प्रवीण राउत को गिरफ्तार किया गया. अदालत का स्पष्ट रूप से कहना था कि मनी लॉड्रिंग के नाम पर निर्दोष लोगों को विवाद में नहीं घसीटा जा सकता. संजय राउत की रिहाई को लेकर ईडी ने हाईकोर्ट में अपील दायर की तब हाईकोर्ट ने भी कहा कि विशेष न्यायालय ने महीना भर दोनों पक्षों की बात सुनकर यह फैसला दिया है. इस फैसले पर हम तुरंत स्टे आर्डर दें, यह मांग आप कैसे कर सकते हैं?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जांच एजेंसियां ‘पालतू जानवर’- उद्धव

​न्यायालय की इस टिप्पणी ने सरकारी जांच एजेंसियों पर बहस को एक बार फिर जीवंत कर दिया है. उद्धव ठाकरे का कहना है कि जांच एजेंसियां पालतू जानवर की तरह व्यवहार कर रही हैं. किसी के पीछे लगने का आदेश मिलने पर वे तुरंत उस पर टूट पड़ती हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने केंद्रीय जांच एजेंसियों का उपयोग कर अनेक पार्टियों को तोड़ा है और कई पार्टियों को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. ठाकरे इससे आगे बढ़कर कहते हैं कि देश की सभी विपक्षी पार्टियों को परेशान किया जा रहा है लेकिन सत्ता के मद में डूबी यह सरकार भूल जाती है कि यदि सभी विरोधी पक्ष एकत्र हुए तो वह कितनी बड़ी ताकत होगी? उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियां सुपारी लेकर काम कर रही हैं इसलिए ईडी और सीबीआई के कार्यालय बंद किए जाने चाहिए .

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोई भी आजाद नहीं करना चाहता ‘पिंजरे में बंद तोते’ को

केंद्रीय जांच एजेंसियों की निष्पक्षता हमेशा संदेह में रही है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र में मनमोहन सिंह सरकार की सत्ता के समय कहा था कि केंद्रीय जांच एजेंसियां ‘पिंजरे में बंद तोता’ है. उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट शब्दों में जांच एजेंसियों को कुत्ता तो नहीं कहा लेकिन ‘पालतू जानवर’ कहकर उनका इशारा उसी ‘जानवर’ से था जो अपने मालिक के संकेत पर सामने वाले पर टूट पड़ता है.

सत्तारूढ़ पक्ष जांच एजेंसियों का अपने हितों के लिए प्रयोग करता है यह बात छिपी नहीं है. जिस समय सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा था. उस वक्त भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की थी. सवाल यह उठता है कि जब आज भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है तो वह केंद्रीय जांच एजेंसियों की हालत में सुधार क्यों नहीं कर रही है. हकीकत यह है कि कोई भी सरकार इस ‘तोते’ को पिंजरे से बाहर निकालना नहीं चाहती है. इस ‘तोते’ का पिंजरे में रहना ही सत्ता के लिए फायदेमंद है. सत्ता में आने वाले किसी भी दल से यह उम्मीद करना कि वह इस ‘तोते’ को आजाद करेगा, सपने के समान है.

(विष्णु गजानन पांडे महाराष्ट्र की सियासत पर लंबे समय से नजर रखते आए हैं. वे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे दी क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×