राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस महागठबंधन का हिस्सा होगी या नहीं, इस सस्पेंस से एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने पर्दा उठा दिया है. पवार ने साफ कर दिया है कि लोकसभा चुनाव में एमएनएस महाराष्ट्र में बन रहे महागठबंधन का हिस्सा नहीं होगी. पवार के इस बयान ने राज ठाकरे को 'जोर का झटका धीरे से' दे दिया है.
एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे और शरद पवार के बीच कई बार मीटिंग हो चुकी है, जिसके बाद पवार पहले ऐसा बयान दे चुके हैं कि मोदी विरोधियों को एकसाथ आने की जरूरत है.
राज ठाकरे के लगातार मोदी विरोधी कार्टून और बयान भी इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि शायद पवार और राज में चुनावी समझौता हो गया, लेकिन चुनाव से ठीक पहले पवार के यू-टर्न ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
5 बड़े कारण, जिसने राज ठाकरे को महागठबंधन में आने से रोका
वजह 1:
सबसे बड़ा कारण है कि कांग्रेस पार्टी का MNS को साथ लेने पर विरोध है. कांग्रेस को लगता है कि राज ठाकरे की छवि उत्तर भारतीय विरोधी है. ऐसे में अगर ठाकरे की पार्टी को महागठबंधन का हिस्सा बनाया गया, तो इसका उत्तर भारत में गलत संदेश जा सकता है.
साथ ही मुंबई में भी, जहां उत्तर भारतीय वोट बड़ी संख्या में हैं, वहां भी इसका नुकसान हो सकता है. शायद यही वजह थी कि कुछ दिनों पहले एमएनएस अध्यक्ष के बेटे अमित की शादी के बुलावे के बावजूद राहुल गांधी शादी में नहीं पहुंचे थे.
वजह 2:
एनसीपी चाहती है कि एमएनएस लोकसभा का चुनाव न लड़े, बल्कि वोटों का बंटवारा रोकने में वो कांग्रेस-एनसीपी का साथ दे. एनसीपी के इस प्रस्ताव के संकेत खुद एनसीपी नेता छगन भुजबल दे चुके हैं, लेकिन एमएनएस को ये प्रस्ताव मंजूर नहीं है. वो चाहती है कि कम से कम 2 सीटें एनसीपी उनके लिए लोकसभा चुनाव में छोड़े.
वजह 3:
राज ठाकरे की विचारधारा प्रो-हिंदुत्व वाली रही है. वो समय-समय पर इसे लेकर बयान देते रहे हैं. ऐसे में महागठबंधन में जिन विचारों के नेताओं को साथ लिया जा रहा है या कोशिश चल रही है, वो राज की एंट्री की वजह से कहीं कांग्रेस-एनसीपी से दूरी न बना लें, इस बात का डर भी पवार के मन में साफ दिखाई देता है.
वजह 4:
राज ठाकरे किसी का नेतृत्व मानने वाले नेताओ में नहीं हैं, ये भी एक बड़ी वजह बताई जा रही है. जानकारों के मुताबिक, कांग्रेस-एनसीपी के नेताओं का कहना है कि राज सामूहिक फैसलों में विश्वास नहीं रखते हैं. ऐसे में अगर उन्हें गठबंधन का हिस्सा बनाया भी जाता है, तो कई मौकों पर इसका नुकसान भी हो सकता है.
वजह 5:
शरद पवार राजनीति में दूर की सोच रखने वाले नेताओं में गिने जाते हैं. राज को महागठबंधन का हिस्सा न बनाने के पीछे पवार की इस सोच को भी बताया जा रहा है. पवार को लगता है कि अगर लोकसभा में एमएनएस को साथ लिया, तो विधानसभा चुनाव के वक्त अगर सभी पार्टियां अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरीं और सत्ता पाने के लिए शिवसेना की मदद लेनी पड़ी, तो एमएनएस को साथ रखना महंगा सौदा साबित हो सकता है, क्योंकि राज और उद्धव के बीच की कटुता जग-जाहिर है.
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