असली शिवसेना (Shiv Sena) की लड़ाई में उद्धव गुट को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. दरअसल उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दाखिल की थी, जिसमें ‘असली शिवसेना’ तय करने वाली चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर रोक की मांग की गई थी. शिवसेना पर जो दूसरा गुट दावा कर रहा है वो एकनाथ शिंदे का गुट है जो फिलहाल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं.
एकनाथ शिंदे के लिए सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला राहत और उद्धव ठाकरे और उनके गुट के लिए किसी आफत से कम नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट को ये फैसला करना था कि क्या चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर रोक लगा दी जाये जो ये तय करने वाला है कि शिवसेना पार्टी, उसका निशान और प्रभुत्व किसका है. मतलब असली शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट है या शिंदे गुट, क्योंकि दोनों ही गुट खुद को असली शिवसेना बता रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, चुनाव आयोग सिंबल मामले पर सुनवाई करने के लिए स्वतंत्र है. आयोग की कार्रवाई पर अब किसी तरह की रोक नहीं होगी.
इस फैसले के तुरंत बाद शिंदे गुट ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का जिक्र किया गय है. और जल्दी चुनाव आयोग से एक्शन लेने की मांग की है.
शिंदे गुट के वकील ने कोर्ट में क्या कहा?
एकनाथ शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने बहस करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि विधानसभा अध्यक्ष की शक्ति केवल विधायक दल के संबंध में है और यह प्रतीक आदेश के तहत चुनाव आयोग की शक्तियों को सीमित नहीं कर सकता है. संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, भारत के चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दलों के संबंध में उत्पन्न होने वाली किसी भी स्थिति से निपटने की शक्तियां हैं.
कौल ने बताया कि 1.5 लाख से अधिक पार्टी सदस्यों ने शिंदे समूह का समर्थन करते हुए चुनाव आयोग को अपना अभ्यावेदन भेजा है.
महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चुनाव आयोग को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
एसजी ने कहा, "यह एक राजनीतिक सवाल है और यह पहली बार नहीं है कि इस तरह का विभाजन हुआ है और यह तय करना है कि कौन सा गुट असली पार्टी है. और ये तय करने के लिए चुनाव आयोग है.
उद्धव गुट के वकील ने कोर्ट में क्या कहा?
उद्धव गुटी की तरफ से सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट के सवाल के जवाब में कहा कि, पूरा मुद्दा ये था, कि शिंदे अयोग्य होने के बाद चुनाव आयोग से संपर्क नहीं कर सकते.
हालांकि पिछली सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अयोग्यता के आरोपों को नकारा था.
कपिल सिब्बल ने दलील दी कि जो विधायक अलग हुए वो शिवसेना के थे. वो अलग होने पर अन्य पार्टी के साथ सरकार बना सकते थे लेकिन शिवसेना पर आधिपत्य के आधार पर सरकार नहीं बना सकते. सिब्बल ने कहा कि विधायक किसी अन्य पार्टी के साथ जाते हैं या अलग होते हैं तो वह पार्टी की सदस्यता खो देते हैं. वह खुद पार्टी पर कब्जा नहीं ले सकते. सिब्बल ने कहा कि पार्टी तोड़ने की स्थिति में वह विधानसभा में पार्टी के सदस्य के तौर पर कैसे आ सकते हैं.
शिवसेना में दो फाड़ और सरकार गिरने से लेकर बनने तक, अब तक महाराष्ट्र में क्या-क्या हुआ?
20 जून को शिवसेना के 15 विधायक 10 निर्दलीय विधायकों के साथ पहले सूरत और फिर गुवाहाटी के लिए निकल गए.
23 जून को शिंदे ने दावा किया कि उनके पास शिवसेना के 35 विधायकों का समर्थन है
25 जून को डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों को सदस्यता रद्द करने का नोटिस भेजा. बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट चले गए.
26 जून को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना, केंद्र, महाराष्ट्र पुलिस और डिप्टी स्पीकर को नोटिस भेजा. बागी विधायकों को कोर्ट से राहत मिली.
28 जून को राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा, देवेंद्र फडणवीस ने इसकी मांग की थी.
29 जून को सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
30 जून को एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने और बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री बनाए गए.
3 जुलाई को विधानसभा के नए स्पीकर ने शिंदे गुट को सदन में मान्यता दे दी. और अगले दिन शिंदे ने विश्वास मत हासिल कर लिया.
4 अगस्त को SC ने कहा- जब तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तब तक चुनाव आयोग कोई फैसला न ले.
4 अगस्त को सुनवाई के बाद मामले की सुनवाई तीन बार टली, यानी 23 अगस्त से पहले 8, 12 और 22 अगस्त को कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया.
23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को ट्रांसफर किया. और चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक लगाई.
27 सितंबर को संविधान पीठ ने शिवसेना पर दावेदारी के मामले में चुनाव आयोग की कार्यवाही से रोक हटाई.
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