सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में 'जस्टिस फॉर सुशांत' की गुहार लग रही है, इसके बिहार के वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में अहम मायने हैं.
इसकी झलक यहां के नेताओं की प्रतिक्रियाओं में साफ नजर आती है. अभिनेता की रहस्यमय मौत के बाद से BJP सांसद रूपा गांगुली ने हैशटैग 'सीबीआई फॉर सुशांत' के साथ कम से कम सौ ट्वीट किए होंगे.
भले ही सुशांत की जाति वाले लोगों की राज्य में आबादी केवल 4 फीसदी है, लेकिन यहां राजपूतों का एक ऐसा प्रभावशाली समुदाय है, जो चुनावों पर प्रभाव डालने की ताकत रखता है.
राजद के तेजस्वी यादव से लेकर सत्तारूढ़ जेडी-यू के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक सभी ने सुशांत के घर पर उपस्थिति दर्ज कराई. लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान ने तो जांच को सीबीआई को सौंपने की भी मांग की थी.
ऐसे में सवाल यह है कि आखिर क्यों सुशांत की जाति उस राज्य में इतनी अहम है, जहां इसकी आबादी बमुश्किल 4 फीसदी है?
दरअसल, इसके पीछे राजनीतिक कारण से ज्यादा भावनात्मक कारण प्रमुख है. बॉलीवुड के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि 'पद्मावत' फिल्म का करणी सेना द्वारा विरोध किए जाने के बाद सुशांत ने अपनी सरनेम हटाने तक की बात कह दी थी. लेकिन आज बिहार की राजनीतिक रंगभूमि में सुशांत ही राजपूतों का सबसे बड़ा कोई चेहरा हैं, जो कथित रूप से बॉलीवुड सिस्टम का शिकार हुए हैं.
अब यदि राजपूतों की राजनीतिक ताकत का आंकलन करना हो तो बिहार के पिछले चुनावों पर नजर डालें. 2015 के विधानसभा चुनावों के टिकट वितरण में बीजेपी ने ऊंची जाति के 65 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से 30 राजपूत थे. वहीं जेडी-यू, आरजेडी और कांग्रेस के 'महागठबंधन' ने ऊंची जाति के जिन 39 उम्मीदवारों को टिकट दिए थे, उनमें से 12 राजपूत थे.
यहां तक कि सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने वाली राजद ने अपनी बिहार इकाई के लिए अध्यक्ष के रूप में जगदानंद सिंह को चुना, जो कि राजपूत हैं.
पिछले हफ्तों में दो मुख्यमंत्री, बिहार के नीतीश कुमार और हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर सुशांत के पिता से मिलने पहुंचे. केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, BJP सांसद मनोज तिवारी भी सुशांत के घर गए.
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