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तेलंगाना पॉलिटिक्स: कांग्रेस के साथ शर्मिला के संभावित गठबंधन का गणित क्या है?

क्या शर्मिला आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ BRS और BJP के खिलाफ कांग्रेस की संभावनाओं को बढ़ाने में मदद करेंगी?

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तेलंगाना में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव (Telangana Assembly Elections) होने हैं. माना जा रहा है कि YSR तेलंगाना पार्टी की अध्यक्ष और दिवंगत कांग्रेस नेता और संयुक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री YS राजशेखर की बेटी YS शर्मिला रेड्डी के साथ कांग्रेस हाथ मिलाने पर विचार कर रही है.

अफवाहें ये भी हैं साल 2021 में अपनी बनाई नई पार्टी को शर्मिला या तो को खत्म कर देंगी और कांग्रेस में शामिल हो जाएंगी या पार्टी में विलय कर लेंगी. हालांकि, YSRTP के सूत्रों ने क्विंट को बताया कि वो गठबंधन की उम्मीद कर रही हैं.

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YSRTP के एक वरिष्ठ नेता ने क्विंट से कहा, "वह (शर्मिला) YSRTP का विलय नहीं करना चाहतीं या कांग्रेस में शामिल नहीं होना चाहतीं, वह गठबंधन चाहती हैं, लेकिन चर्चा अभी भी चल रही है."

शर्मिला ने हाल ही में पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल सहित बड़े कांग्रेस नेताओं से मुलाकात की, जिसके बाद उन्होंने कथित तौर पर 'गठबंधन' पर चर्चा के लिए YSRTP के सीनियर नेताओं के साथ बैठक की.

YSRTP नेता ने यह भी कहा कि "कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ एक बैठक होने वाली है- और अगले दो दिनों में 'गठबंधन' के संबंध में फैसला होने की संभावना है."

  • आगामी विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के लिए इसका क्या मतलब होगा?

  • क्या शर्मिला सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (BRS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ कांग्रेस की संभावनाएं बढ़ाने में मदद करेंगी?

BRS और तेलंगाना भावना

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन शर्मिला की उम्र 39 साल है. वो पूरे राज्य में अपनी 3,800 किलोमीटर की प्रजा प्रस्थानम पदयात्रा के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं- ये उपलब्धि हाल ही में इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हुई.

हालांकि, सत्तारूढ़ BRS शर्मिला को भड़काऊ नेता मानती है. उन्हे पिछले दो सालों में कई बार गिरफ्तार किया गया है और घर में नजरबंद रखा गया है. हालांकि, आंध्र प्रदेश से संबंधों के कारण BRS उनकी पार्टी को "अप्रत्याशित" भी मानती है.

क्या शर्मिला आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ BRS और BJP के खिलाफ कांग्रेस की संभावनाओं को बढ़ाने में मदद करेंगी?

शर्मिला को पिछले हफ्ते घर में नजरबंद कर दिया गया और गजवेल निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करने से रोक दिया गया था.

(फोटो: X)

एक BRS नेता ने पहले द क्विंट को नाम न छापने की शर्त पर बताया कि "आंध्र मूल" की होने के कारण शर्मिला "तेलंगाना क्षेत्रीय भावना को भड़काएंगी और इससे BRS को मदद मिल सकती है." यही वजह है कि कांग्रेस के कुछ नेता शर्मिला से हाथ मिलाने को लेकर आशंकित हैं.

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क्विंट से बात करते हुए, कांग्रेस की तेलंगाना अभियान समिति के प्रमुख मधु यशकी गौड़ ने कहा कि तेलंगाना कांग्रेस के कुछ नेता चिंतित हैं कि BRS प्रमुख और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव "तेलंगाना भावना का इस्तेमाल ये कहने के लिए करेंगे कि आंध्र का कोई नेता फिर से राज्य पर शासन नहीं कर सकता." गौड़ ने कहा, उन्हें डर है कि ये पार्टी पर उलटा पड़ सकता है.

लेकिन गौड़ ने क्विंट को बताया कि कई अन्य कांग्रेस नेताओं का मानना ​​है कि इस बार तेलंगाना की भावना मतदाताओं को प्रभावित करेगी, इसकी संभावना नहीं है.

"KCR ने खुद ही अपनी पार्टी का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति रख लिया है. वह आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं. वह अब तेलंगाना मुद्दे के चैंपियन नहीं हैं."
मधु याशकी गौड़, कांग्रेस नेता
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गठबंधन या विलय?

हालांकि, ये स्पष्ट नहीं है कि क्या कांग्रेस उनसे पार्टी में शामिल होने, अपनी पार्टी का विलय करने या गठबंधन का विकल्प चुनने की उम्मीद कर रही है.

एक कांग्रेस नेता ने कहा, "अगर शर्मिला कांग्रेस का हिस्सा बनती हैं, तो वो एक राष्ट्रीय पार्टी का हिस्सा हैं. हमें न केवल तेलंगाना, बल्कि आंध्र प्रदेश में भी उनकी जरूरत होगी- क्योंकि YSR का दोनों तेलुगु राज्यों और यहां तक ​​कि कर्नाटक में भी आधार है."

नाम न छापने की शर्त पर एक YSRTP नेता ने कहा, "उन्हें आंध्र प्रदेश में कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने तेलंगाना में पार्टी बनाई. अगर उन्हें आंध्र में कोई दिलचस्पी होती, तो वह ऐसा क्यों करतीं?" इसके अलावा, आंध्र में कांग्रेस के लिए लड़ने का मतलब ये होगा कि शर्मिला को अपने भाई और सीएम जगन मोहन रेड्डी और सत्तारूढ़ YSR कांग्रेस पार्टी से मुकाबला करना पड़ सकता है.

क्या शर्मिला आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ BRS और BJP के खिलाफ कांग्रेस की संभावनाओं को बढ़ाने में मदद करेंगी?

शर्मिला 8 जुलाई को अपने पिता की जयंती  पर पलेरू निर्वाचन क्षेत्र में.

(फोटो: X)

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YSR फैनबेस

शर्मिला की मदद से कांग्रेस का लक्ष्य तेलंगाना में मजबूत YS राजशेखर रेड्डी फैनबेस में सेंध लगाना है. माना जाता है कि साल 2004 में तेलगु देशम पार्टी से सत्ता छिनकर कांग्रेस की वापसी कराने में YS राजशेखर रेड्डी का बड़ा हाथ था.

उनके लोकप्रिय कल्याण याजनाओं ने अभी भी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में एक बेंचमार्क हैं. इसने ही 2009 में सीएम कार्यालय में उन्हें दूसरा कार्यकाल दिलाया था.

गौड़ ने कहा, "YSR एक कट्टर कांग्रेसी हैं, पार्टी के अब तक के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं. शर्मिला खुद कांग्रेस के माहौल में पली-बढ़ी हैं. उन्होंने पहले भी कहा है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना उनके पिता का सपना था."

क्या शर्मिला आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ BRS और BJP के खिलाफ कांग्रेस की संभावनाओं को बढ़ाने में मदद करेंगी?

राजीव गांधी के साथ YS राजशेखर रेड्डी.

(फोटो: X)

हालांकि, पिछले चुनावों में प्रतिद्वंद्वी तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के साथ कांग्रेस के चुनावी गठबंधन के कारण तेलंगाना में YS राजशेखर रेड्डी के वफादारों ने BRS (तब तेलंगाना राष्ट्र समिति) का समर्थन किया था. YSRTP नेता ने कहा कि शर्मिला को अब तेलंगाना में इन YSR वफादारों का समर्थन प्राप्त है.

"हमारे सर्वे के अनुसार, उनका 43 निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभाव है. पिछले दो सालों में YSRTP बढ़ी है. YSR की लगभग 13 साल पहले मृत्यु हो गई, लेकिन तेलंगाना आंदोलन के बाद भी, लोग उन्हें और उनकी नीतियों को नहीं भूले हैं."
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'वोट-बंटवारे से बचना चाहते हैं'

कुछ महीने पहले शर्मिला ने कहा था कि YSRTP अकेले तेलंगाना चुनाव लड़ेगी तो फिर उसने अपना रुख क्यों बदला?

"अगर हम अकेले चुनाव लड़ते हैं, तो हमें 5-10 प्रतिशत वोट मिलने की उम्मीद है, लेकिन इससे केवल BRS को फायदा होगा. शुरू से ही, हमने सरकार और सरकारी नीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है. अब हम अप्रत्यक्ष रूप से उनकी मदद क्यों करेंगे?"

अपने पिता के मतदाता आधार के अलावा, शर्मिला को ईसाई होने के कारण समुदाय से कुछ समर्थन प्राप्त है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार, तेलंगाना की आबादी का 1.37 प्रतिशत है. उनके पति अनिल कुमार तेलंगाना में पादरी हैं.

कुछ समय पहले क्विंट से बात करते हुए, एक सीनियर कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा था कि "शर्मिला एक ईसाई हैं और उन्हें अपने पति का समर्थन प्राप्त है. उनका मानना है कि वो राज्य में ईसाई वोटों को आकर्षित करेंगी. ये वोट, जो वैसे भी बीजेपी को नहीं गए होंगे, कांग्रेस के वोट थे."

इसके अलावा, शर्मिला को दलित ईसाइयों का समर्थन मिलने की उम्मीद है, जो पारंपरिक रूप से राज्य में कांग्रेस के मतदाता हैं. एक कांग्रेस नेता ने क्विंट को पहले बताया था, "तेलंगाना में ईसाइयों का एक बड़ा प्रतिशत अनुसूचित जाति का है. दलित ईसाई वोट उनके पक्ष में जा सकते हैं, भले ही यह एक छोटा प्रतिशत ही क्यों न हो." दूसरे शब्दों में, शर्मिला के अकेले चुनाव लड़ने से BRS या BJP की तुलना में कांग्रेस को अधिक नुकसान होगा.

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