71 वर्षीय कांग्रेस नेता त्रिभुवनेश्वर शरण सिंह देव यानी टीएस सिंह देव (TS Singh Deo) को छत्तीसगढ़ का पहला उपमुख्यमंत्री बनाया गया है. बुधवार (28 जून) को दिल्ली में हुई कांग्रेस की बैठक के बाद देव की नियुक्ति के प्रस्ताव पर मुहर लगी. राज्य में विधानसभा चुनाव से 5 महीने पहले कांग्रेस ने टीएस सिंह देव को डिप्टी सीएम बनाकर बड़ा दांव खेला और अब इसको लेकर विश्लेषण किया जा रहा है?
टीएस सिंह देव को क्यों बनाया गया DCM?
फैसला लेने में देर तो नहीं हो गयी?
पार्टी क्या संदेश देना चाहती है?
कांग्रेस का आगे क्या प्लान है?
टीएस सिंह देव को क्यों बनाया गया DCM?
2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक जीत मिली थी. उस वक्त मुख्यमंत्री पद के प्रमुख तौर पर दो उम्मीदवार थे- भूपेश बघेल, जो उस समय प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे, और दूसरा टीएस सिंह देव, जो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे. उम्मीद की जा रही थी कि देव को सीएम बनाया जायेगा लेकिन बाजी बघेल मार ले गये.
कहा जाता है कि बघेल की दावेदारी में सबसे अहम किरदार उनकी जाति ने निभाया था, क्योंकि भूपेश बघेल OBC जाति से आते हैं और राज्य की 47 फीसदी आबादी OBC है, और इनका करीब एक चौथाई सीटों पर प्रभाव है.
उस वक्त कांग्रेस ने टीएस सिंह देव को स्वास्थ्य के साथ चार बड़े मंत्रालय दिये थे, फिर भी बात नहीं बनी. देव के करीबी लोगों का दावा है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने ढाई-ढाई साल का ऑफर दिया था, लेकिन वो हुआ नहीं और वहीं से विवाद बढ़ता गया.
देव ने कई बार अपनी नाराजगी जताई और 2022 जुलाई में ग्रामीण विकास मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, स्वास्थ्य और वाणिज्य कर विभाग उनके पास ही रहा.
इतना ही नहीं, कुछ दिन पूर्व टीएस सिंह देव ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की भी इच्छा जताई थी. उन्होंने कहा था कि इस बार चुनाव लड़ने का मन उस तरह से नहीं कर रहा है, जिस तरह से पहले करता था. इसके बाद से राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गयी थी.
उन्होंने कई बार कांग्रेस नेतृत्व को अपनी इच्छा भी जताई, लेकिन उन्हें आश्वासन ही मिलता रहा. हालांकि, ढाई-ढाई साल वाली बात कभी खुलकर सामने नहीं आयी. लेकिन इन सबके बीच देव कांग्रेस के वफादार बने रहे.
दिल्ली में कांग्रेस से जुड़े एक नेता ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "देव भी सचिन पायलट की तरह बार-बार अपनी दावेदारी ठोंक रहे थे, लेकिन वो पायलट की तरह खुलकर विरोध नहीं कर रहे थे, यही बात उनके पक्ष में गयी."
एक अन्य कांग्रेस नेता ने कहा, "बाबा को वफादारी की दिखावट नहीं, वफादार होने का अवार्ड मिला है, जिस साफगोई से उन्होंने साफ किया था कि कांग्रेस में था, हूं और रहूंगा, उसी दिन उनका मुकाम तय हो गया था."
वरिष्ठ पत्रकार यशवंत धोते ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, " नार्थ और साउथ छत्तीसगढ़ की अधिकतर सीटें आदिवासी बाहुल्य हैं, इसमें सरगुजा और बस्तर भी हैं. बस्तर की 12 और सरगुजा की 14 सीट 2018 में कांग्रेस के खाते में गई थी."
देव की नियुक्ति में 2018 के नतीजे भी काम आये. दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 90 में से 68 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसमें से सरगुजा संभाग की 14 में से 14 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हुआ था. इस पूरे इलाके में देव का प्रभाव माना जाता है. वह सरगुजा के वर्तमान नामधारी महाराजा भी हैं. वो जिस अंबिकापुर सीट से लगातार तीन बार से विधायक हैं, वो भी इसी सरगुजा संभाग में आती है.
माना जा रहा है कि कांग्रेस अपने इस मजबूत गढ़ को गंवाना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने टीएस सिंह देव को आगे किया और डिप्टी सीएम बनाया.
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो, देव को डिप्टी सीएम बनाने के पीछे बघेल के साथ जारी कोल्ड वॉर तो थी ही, साथ ही, राज्य में एक बड़ा धड़ा बार-बार देव को चेहरा बनाने की मांग कर रहा था. ऐसे में पार्टी ने एक तीर से दो निशाने लगाए. एक तो बघेल-देव में सुलह कराने की कोशिश की और दूसरा समर्थकों के विरोध की आवाज को चुनाव तक के लिए दबा दिया.
2-फैसला लेने में देर तो नहीं हो गयी?
विधानसभा चुनाव से 5 महीने पहले कांग्रेस के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं कि पार्टी ने कहीं देर तो नहीं कर दिया. हालांकि, इस पर लोगों की अलग-अलग राय है.
वरिष्ठ पत्रकार ललित राय ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "कांग्रेस अगर ये फैसला थोड़ा पहले ले लेती तो शायद ज्यादा लाभ मिल सकता था, क्योंकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस का मजबूत किला है. बीजेपी यहां मजबूत नजर नहीं आ रही है. पार्टी के पास न चेहरा है और न ही कोई ठोस विजन दिख रहा है."
भूपेश बघेल राज्य में लगातार बीजेपी के राष्ट्रवाद के काउंटर में छत्तीसगढ़ी अस्मिता और लोकल इश्यू की बात कर रहे हैं, जिसका तोड़ बीजेपी के पास फिलहाल नहीं दिख रहा है. क्षेत्रीय अस्मित और लोकल मुद्दे का लाभ कांग्रेस को पहले भी चुनाव में मिला था, और अब हिमाचल और कर्नाटक में भी पॉजिटिव असर दिखा.ललित राय, वरिष्ठ पत्रकार
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, "देव की नाराजगी अगर पहले ही दूर कर दी गई होती तो, अच्छा होता, लेकिन अभी भी सही है. अभी भी चुनाव में समय है, पूरी तरह से राज्य चुनावी मोड में गया नहीं है, ऐसे में पार्टी के फैसले से बड़ा लाभ होगा."
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "हिमाचल के बाद कर्नाटक में मिली जीत ने पार्टी में जोश भर दिया है. शीर्ष नेतृत्व भी समझ रहा है कि राज्यों में जीत तभी मिलेगी, जब स्थानीय नेताओं को एकजुट और आगे कर चुनाव लड़ा जाएगा. ऐसे में पार्टी उसी प्लान पर काम कर रही है."
हालांकि, कुछ जानकार और विपक्षी नेता, इसे हड़बड़ी में लिया गया फैसला करार दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह ने ट्वीट कर लिखा, "डूबने लगी कश्ती तो कप्तान ने कुछ यूं किया, सौंप दी है पतवार आधी दूसरे के हाथ में. बाकी 4 महीने के लिए महाराज जी को बधाई."
वहीं, भूपेश बघेल ने भी ट्वीट कर देव को बधाई दी और कहा कि हम तैयार हैं. बघेल ने ट्वीट कर लिखा, "हैं तैयार हम. महाराज साहब को उपमुख्यमंत्री के रूप में दायित्व के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं."
इस बीच, बघेल के करीबी एक अन्य कांग्रेस नेता ने कहा कि ताम्रध्वज साहू, जो गृह मंत्री और वरिष्ठ ओबीसी नेता हैं, को भी प्रमोट किया जाना चाहिए था. नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “उनकी पदोन्नति से साहू मतदाता प्रसन्न होंगे और बीजेपी अब इस मुद्दे को उठाएगी."
दरअसल, बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव में साहू समाज का कार्ड खेला था. खुद पीएम मोदी ने इसका जिक्र अपने चुनावी कैंपेन में किया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ की अपनी सभाओं में कहा था कि "नामदार गालियां दे रहे हैं. सारे मोदी को चोर कहते हैं. यहां का साहू समाज गुजरात में होता तो उन्हें मोदी कहते हैं. राजस्थान में होता तो राठौर कहते. तो सोचिए, सारे साहू चोर हैं क्या?"
उस वक्त ताम्रध्वज साहू ने कमान संभाली थी और बीजेपी पर काउंटर अटैक किया था. जानकारी के अनुसार, राज्य की 14 फीसदी आबादी साहू समाज (OBC) की है और करीब एक-तिहाई सीटों पर इस जाति का प्रभाव है.
एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, "साहू को आगे न करना कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकता है. 2018 में चुनाव से पहले चर्चा थी कि बघेल या साहू में से कोई एक सीएम बनेगा. जीत के बाद 2 घंटे के लिए साहू को सीएम का लेटर थमा दिया गया था, जश्न भी शुरू हो गया था, लेकिन बाद में सुलह हो गयी और बघेल को मुख्यमंत्री बना दिया गया था."
छत्तीसगढ़ में यूपी-बिहार की तरह जाति की राजनीति नहीं होती है. लेकिन पिछले 6-7 सालों से ट्रेंड बदला है. साहू राज्य में बीजेपी का वोटर माना जाता है. 2018 में उसने बड़ी संख्या में कांग्रेस का साथ दिया था, लेकिन अब वो पार्टी से नाराज है. अगर पार्टी ताम्रध्वज साहू को आगे करती तो कुछ फायदा होगा. ताम्रध्वज के अलावा अब पार्टी के पास कोई दूसरा बड़ा साहू चेहरा नहीं है. ऐसे में बीजेपी इसे चुनाव में मुद्दा बनाएगी.वरिष्ठ पत्रकार
उन्होंने आगे कहा कि इस साल अप्रैल में हुई सांप्रदायिक हिंसा, जिसमें साहू समाज के एक युवक की मौत हो गयी थी, उसके बाद से साहू समाज में नाराजगी है. बीजेपी इसको भुनाने में लगी हुई है.
एक राजनीतिक टिप्पणीकार ने कहा कि कांग्रेस के इस फैसले से बघेल और देव में कुछ हद तक विवाद सुलझ सकता है, लेकिन विरोध के स्वर बहुत नहीं थमेंगे.
3-पार्टी क्या संदेश देना चाहती है?
छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव को डिप्टी सीएम बनाकर कांग्रेस ने साफ संदेश दिया है कि वो चुनाव से पहले किसी तरह की गुटबाजी नहीं चाहती है. उसे किसी भी तरीके से आगामी राज्यों के चुनाव में जीत हासिल करना है.
कांग्रेस ने टीएस सिंह देव उप मुख्यमंत्री बनाकर विकल्प भी पेश किया है, जिससे अगर राज्य में सत्ता विरोधी लहर हो भी तो वो शांत हो जाए.
पार्टी हाईकमान ने ये भी साफ कर दिया कि चुनाव के पहले मुख्यमंत्री नहीं बदले जाएंगे, यानी पार्टी पुराने चेहरों के साथ ही चुनाव में जाएगी और निर्णय आने के बाद कोई फैसला लिया जाएगा.
कांग्रेस नेतृत्व ने ये भी बता दिया की पार्टी के वफादार नेताओं के मान-सम्मान का पूरा ख्याल रखा जाएगा.
4-कांग्रेस का आगे क्या प्लान है?
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो पार्टी जल्द ही छत्तीसगढ़ के संगठन में बदलाव कर सकती है. राहुल गांधी ने 28 जून को हुई बैठक में भी इस ओर इशारा किया है.
पीएल पूनिया के प्रभारी रहते बघेल और देव का विवाद सुलझ नहीं पाया था, लेकिन शैलजा के आने के बाद स्थिति बदली, जिसके बाद देव की बात सुनी गई. जल्द ही और बदलाव देखने को मिल सकता है.यशवंत धोते, वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली कांग्रेस से जुड़े एक नेता ने कहा, "शैलजा रायपुर में ही विवाद सुलझाना चाहती थीं, लेकिन जब बात नहीं बनी तो दिल्ली लाया गया. कांग्रेस हाईकमान को रिपोर्ट मिली थी कि सरकार और संगठन में तालमेल नहीं होने का नुकसान हो सकता है. बघेल के ऊपर आरोप लग रहे थे कि सरकार को दो-तीन लोग मिलकर चला रहा हैं, जिससे छवि खराब हो रही है. ऐसे में पार्टी ने यह निर्णय लिया."
देव के एक करीबी नेता ने कहा, "साढ़े चार साल से जिस तरह से महाराज की छवि खराब करने की कोशिश की गई, वो किसी से छुपी नहीं है. एक विधायक ने देव पर गंभीर आरोप तक लगाये, लेकिन महाराज ने कुछ नहीं कहा. पार्टी ने उसको अब जाकर संज्ञान लिया, अगर पहले ये फैसला लिया होता तो स्थिति और बेहतर हो सकती थी."
इससे पहले पार्टी ने तेलंगाना में प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी के खिलाफ जारी विरोध को भी शांत कराते हुए नेताओं को एकजुट करने की कोशिश की थी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा, "हमारा ध्यान फिलहाल राज्यों के चुनाव पर है. पार्टी इसे किसी भी कीमत पर जीतना चाहती है. हम लोकल मुद्दे, राज्य के नेताओं को सशक्त बनाने और कमजोर तबकों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं. रणनीति के तहत हम इन्हीं सबके के साथ विधानसभा चुनाव में जाएंगे. "
कांग्रेस सूत्रों की मानें तो पार्टी रणनीति के तहत जुलाई में राजस्थान को लेकर भी कुछ चौंकाने वाले निर्णय ले सकती है. इसके बाद एमपी को लेकर भी कुछ बड़ा ऐलान संभव हो सकता है.
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