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उद्धव vs शिंदे: चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना क्यों बताया? ये है 3 वजह

Uddhav vs Shinde: चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि एकनाथ शिंदे का गुट ही असली शिवसेना है.

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महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में लंबे समय से सुर्खियां बटोर रहे उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे (Uddhav Thackeray vs Eknath Shinde) विवाद पर चुनाव आयोग ने अपना फैसला सुना दिया है. चुनाव आयोग ने शुक्रवार, 17 फरवरी को स्पष्ट किया कि एकनाथ शिंदे का गुट ही असली शिवसेना है और उन्हें ही पार्टी के आधिकारिक नाम (शिवसेना) और चिन्ह (तीर और कमान) रखने का अधिकार होगा.

दूसरी तरफ उद्धव खेमे का नाम शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और सिंबल जलती हुई मशाल होगी. इसी नाम और चिन्ह के साथ दोनों महाराष्ट्र में होने वाले उपचुनावों में हिस्सा लेंगे, लेकिन अब सवाल ये कि चुनाव आयोग ने इतना बड़ा फैसला किस आधार पर लिया है और इसकी क्या प्रक्रिया रही है? आइए इसे समझते हैं.

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चुनाव आयोग ने कहा है कि इस मुद्दे को हल करने के लिए 3 लेवल टेस्ट किया गया है, जिसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने 1971 में सादिक अली बनाम चुनाव आयोग के केस में किया था.

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी राजनैतिक पार्टी में 2 गुटों के बीच विवादों को निपटाने के लिए पार्टी के 'संगठनात्मक और विधायिका विंग' के सदस्यों के बहुमत समर्थन टेस्ट के आधार पर फैसला लिया जाएगा. इसके लिए आयोग ने 3 लेवल टेस्ट कराए हैं, जो इस तरह से हैं-

1. पार्टी के संविधान का लक्ष्य, उद्देश्य

एकनाश शिंदे गुट ने तर्क दिया कि अलग-अलग विचारघारा की पार्टी के साथ गठबंधन करके शिवसेना अपने लक्ष्य और उद्देश्य से भटकी है. दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे गुट का कहना है कि पार्टी ने अपने संविधान के अनुच्छेद 5 में उल्लेख किया है कि पार्टी तार्किक धर्मनिर्पेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रीय हितों के लिए समर्प्रित रहेगी.

इसपर आयोग ने कहा कि इस टेस्ट में कोई नतीजा नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि दोनों ही गुटों ने पार्टी के संविधान की अनुपालन का दावा किया है.

2. पार्टी के संविधान का टेस्ट

पार्टी के संविधान पर तर्क देते हुए एकनाथ शिंदे गुट ने कहा कि पार्टी के संविधान के टेस्ट पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, क्योंकि शिवसेना ने इसे अलोकतांत्रिक तरीके से 2018 में संशोधित किया था. दूसरी तरफ उद्धव खेमे ने कहा कि एक पार्टी के अंदर ही एक गुट का खड़ा होना और उसी पार्टी पर दावा करना, ये पार्टी संविधान के दायरे में होना चाहिए था. उन्होंने 2018 में हुए संशोधन को नहीं माना, वे अपनी अलग पार्टी बना सकते हैं.

इसपर आयोग ने पाया कि उद्धव खेमा पार्टी के संविधान पर ज्यादा निर्भरता दिखा रहा है, लेकिन ये अलोकतांत्रिक था.

आयोग ने कहा कि शिवसेना के संविधान में संशोधन के लिए कब चुनाव हुए और कैसे नियुक्तियां हुई, इसके बारे में पार्टी की तरफ से ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई. आयोग ने कहा कि सारी शक्ति एक ही व्यक्ति के हाथों में नहीं होनी चाहिए, ये अलोकतांत्रिक है.

3. बहुमत परीक्षण

चुनाव आयोग ने तीसरे टेस्ट पर कहा कि विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत और चुने हुए सदस्यों की संख्या के लिहाज से बहुमत परीक्षण एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के पक्ष में जाता है.

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तीनों परीक्षण के बाद चुनाव आयोग ने क्या पाया?

  • विधायिका विंग के टेस्ट पर सामने आए संख्यात्मक नतीजों पर किसी भी तरफ से गंभीर प्रतिवाद नहीं आया.

  • शिवसेना के संविधान संशोधन और इसकी प्रक्रिया में लोकतांत्रिक तरीकों का ख्याल नहीं रखा गया.

  • दोनों ही पक्षों की तरफ से संगठन में संख्यात्मक बहुमत का दावा संतोषजनक नहीं था.

  • वर्तमान में विधायिका विंग में संख्यातमक गणना पर ज्यादा भरोसा किया जा सकता है.

  • विधायिका में संख्यात्मक रूप से एकनाथ शिंदे के गुट के पास बहुमत स्पष्ट है. विधायिका में सांसद, विधायक और विधान परिषद के सदस्य शामिल हैं.

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